रविवार, 26 जून 2016

संधिवात (आर्थराईटिज) की सरल चिकित्सा

संधिवात (आर्थराईटिज) की सरल चिकित्सा

संधिवात रोग में शरीर के जोडों और अन्य भागों में सूजन आ जाती है और रोगी दर्द से परेशान रहता है। चलने फ़िरने में तकलीफ़ होती है।यह रोग शरीर के तंतुओं में विकार पैदा करता है,प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है,जोड शोथ युक्त हो जाते हैं,हिलने डुलने में कष्ट होता है।कलाई,घुटनों और ऊंगली ,अंगूठे में संधिवात का रोग ज्यादा देखने में आता है। कभी-कभी बुखार आ जाता है।भूख नहीं लगना भी इस रोग का लक्षण है। समय पर ईलाज नहीं करने पर आंखों,फ़ेफ़डों,हृदय व अन्य अंग दुष्प्रभावित होने लगते हैं।
 गठिया को आयुर्वेद में नामदिया कहा जाता है। आधुनिक चिकित्सा के अनुसार खून में यूरिक एसिड की अधिक मात्रा होने से गठिया रोग होता है। भोजन में शामिल खाघ पदार्थों के कारण जब शरीर में यूरिक एसिड अधिक मात्रा में बनता है तब गुर्दे उन्हें खत्म नहीं कर पाते और शरीर  के अलग- अलग जोड़ों में में यूरेट क्रिस्टल जमा हो जाता है। और इसी वजह से जोड़ों में सूजन आने लगती है तथा उस सूजन में दर्द होता है।




गठिया रोग का कारण-
संधिवात के कारण-
1 आनुवांशिक कारण
2 खान-पान की असावधानियां
3 जोडों पर ज्यादा शारीरिक दवाब पडना
4 जोडों का कम या जरूरत से अधिक उपयोग करना
5 स्नायविक तंतुओं में विकार आ जाना और मेटाबोलिस्म में व्यवधान पड जाना।
6 सर्द वातावरण में शरीर रखने का कुप्रभाव
7 बुढापा और हार्मोन का असुंतुलन
8 फास्ट फूड, जंक फूड और डिब्बाबंद खाना खाने से भी गठिया रोग हो सकता है।
9 ज्यादा गुस्सा आने की प्रवृति और ठंठ के दिनों में अधिक सोने की आदत से भी गठिया हो सकता है।
10 आलसी व्यक्ति जो खाना खाने के बाद श्रम नहीं करते हैं उन्हें भी गठिया की शिकायत हो सकती है।
11 वसायुक्त भोजन अधिक मात्रा में खाने से भी गठिया रोग हो सकता है।
12 जिन लोगों को अजीर्ण की समस्या रहती है और अधिक मात्रा में खाना खाते हैं, इस वजह से भी गठिया रोग हो सकता है।
13 वैदिक आयुर्वेद के अनुसार दूषित आम खाने की वजह से भी गठिया रोग हो सकता है।



गठिया रोग का लक्षण-

1 गठिया के लक्षण पैरों और हाथों की उंगलियों में सूजन के रूप में देखे जाते हैं। गठिया के शुरूवाती दौर में शरीर के जोड़ों वाले  हिस्सों में दर्द होने लगता है, और हाथ लगाने से भी दर्द होता है।

2 गठिया के रोगियों को बुखार और कब्ज़ के साथ सिर दर्द भी होता रहता है।

3 जोड़ों में अधिक सूजन और पीड़ा होना।

4 गठिया रोग में रोगी को अधिक प्यास लगती है।

5 गठिया रोग में हाथ-पांवों में छोटी-छोटी गांठें बन जाती है और इलाज में देर होने से यह गंभीर रूप ले सकती है।

गठिया रोग का इलाज संभव है बस इन बातों पर आप ध्यान दें

संधिवात रोगी क्या करें और क्या न करें-

१) सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह है कि रोगी २४ घंटे में  मौसम के अनुसार ४ से ६ लिटर पानी पीने की आदत डालें। शरीर के जोडों में यूरिक एसीड जमा हो जाता है और इसी से संधिवात रोग जन्म लेता है। ज्यादा पानी पीने से ज्यादा पेशाब होगा और यूरिक एसीड बाहर निकलता रहेगा।

२) फ़ल और हरी सब्जीयां अपने आहार में प्रचुरता से शामिल करें।इनमें भरपूर एन्टीओक्सीडेन्ट तत्व होते हैं जो हमारे इम्युन सिस्टम को ताकतवर बनाते हैं।रोजाना ७५० ग्राम फ़ल या सब्जियां या दोनों मिलाकर उपयोग करते रहें।इनका रस निकालकर पियेंगे तो भी वही लाभ प्राप्त होगा।

३)ताजा गाजर का रस और नींबू का रस बराबर मात्रा में मिश्रण कर १५ मिलि प्रतिदिन लें।
४) ककडी का रस पीना भी  संधिवात में लाभकारी है।
५) संधिवात रोगी को चाहिये कि सर्दी के मौसम में धूप में बैठे।
६) शकर का उपयोग हानिकारक होता है।
७) चाय,काफ़ी,मांस से संधिवात रोग उग्र होता है इसलिये जल्दी ठीक होना हो तो इन चीजों का इस्तेमाल न करें।

८)तेज  मसाले,शराब ,तला हुआ भोजन,नमक,शकर ,मिर्च- छोडेंगे तो जल्दी ठीक होने के आसार बनेगे।

९) संधिवात रोगी के लिये यह जरूरी है कि हफ़्ते में दो दिन का उपवास करें।
१०) काड लिवर आईल ५ मिलि की मात्रा में सुबह शाम लेने से संधिवात में फ़ोरन लाभ मिलता है।
११) पर्याप्त मात्रा में केल्शियम और विटामिन डी की खुराकें लेते रहें। ये विटामिन भोजन के माध्यम से लेंगे तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
१२) तीन नींबू का रस और ४० ग्राम एप्सम साल्ट आधा लिटर गरम पानी में मिश्रित कर बोतल में भर लें। दवा तैयार है। ५ मिलि दवा सुबह शाम पीयें। यह नुस्खा बेहद कारगर है।
१३) मैने साईटिका रोग में आलू का रस पीने का ईलाज बताया है। संधिवात में भी आलू का रस अशातीत लाभकारी है। २०० मिलि रस रोज पीना चाहिये।
१४) ज्यादा सीढियां चढना हानिकारक है।
१५)अपने काम और विश्राम के बीच संतुलन बनाये रखना जरूरी है।
१६) अदरक का रस पीना संधिवात के दर्द में शीघ्र राहत पहुंचाता है।
१७) अलसी के बीज मिक्सर में चलाकर पावडर बनालें। २० ग्राम सुबह और २० ग्राम शाम को पानीके साथ लें। इसमे ओमेगा फ़ेट्टी एसीड होता है जो इस रोग में अत्यंत हितकर माना गया है।इससे कब्ज का भी निवारण हो जाता है।

१८) सभी प्रकार के वातरोगों में लहसुन का उपयोग करना चाहिए। इससे रोगी शीघ्र ही रोगमुक्त हो जाता है तथा उसके शरीर की वृद्धि होती है।'
कश्यप ऋषि के अनुसार लहसुन सेवन का उत्तम समय पौष व माघ महीना (दिनांक 22 दिसम्बर से 18 फरवरी 2011 तक) है।
प्रयोग विधिः 200 ग्राम लहसुन छीलकर पीस लें। 4 लीटर दूध में ये लहसुन व
50 ग्राम गाय का घी मिलाकर दूध गाढ़ा होने तक उबालें। फिर इसमें 400 ग्राम
मिश्री, 400ग्राम गाय का घी तथा सोंठ, कालीमिर्च, पीपर, दालचीनी, इलायची,
तमालपात्र, नागकेशर,पीपरामूल, वायविडंग, अजवायन, लौंग, च्यवक, चित्रक, हल्दी,
दारूहल्दी, पुष्करमूल, रास्ना,देवदार, पुनर्नवा, गोखरू, अश्वगंधा, शतावरी, विधारा,
नीम, सोआ व कौंचा के बीज का चूर्ण प्रत्येक 3-3 ग्राम मिलाकर धीमी आँच पर
हिलाते रहें। मिश्रण में से घी छूटने लग जाय,गाढ़ा मावा बन जाय तब ठंडा करके
इसे काँच की बरनी में भरकर रखें।
10 से 20 ग्राम यह मिश्रण सुबह गाय के दूध के साथ लें (पाचनशक्ति उत्तम हो तो शाम को पुनः ले सकते हैं।
भोजन में मूली, अधिक तेल व घी तथा खट्टे पदार्थों का सेवन न करें। स्नान व पीने के लिए गुनगुने पानी का प्रयोग करें।
१९) रोज 1 से 2 हरड़ कूटकर उसका चूर्ण बनाकर इसे गुड़ के साथ खाएं।
२०) गिलोय का रस पीने से गठिया रोग में सूजन और दर्द दूर होता है।
२१) देसी घी के साथ गिलोय का रस लेने से गठिया से मुक्ति मिलती है।
२२) एरंड तेल के साथ गिलोय का रस लेने से गठिया खत्म होती है।
२३) तिल को तवे पर भूनने के बाद दूध के साथ पीसकर लेप बनायें और उसे गठिया से होने वाली सूजन पर इसका लेप लगाने से सूजन और दर्द में  राहत मिलती है।
24) अलसी को दूध में पीसकर गठिया की सूजन से प्रभावित हिस्सों में लगाने से सूजन और दर्द में लाभ मिलता है।
२५) गठिया से प्रभावित लोग यदि समुद्र में स्नान करें तो उन्हें गठिया से राहत मिल सकती है।
२६) जैतून के तेल की मालिश करने से गठिया के दर्द में राहत मिलती है।
२७) अदरक के सेवन से भी गठिया रोग कम होता है।

गठिया या संधिवात का घरेलू इलाज
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२८) गठिया या संधिबात का सबसे अछि दावा है मेथी, हल्दी और सुखा हुआ अदरक माने सोंठ , इन तीनो को बराबर मात्रा में पिस कर, इनका पावडर बनाके एक चम्मच लेना गरम पानी के साथ सुभाह खाली पेट तो इससे घुटनों का दर्द ठीक होता है, कमर का दर्द ठीक होता है, देड़ दो महिना ले सकता है ।
२९) एक पेड़ होता है उसे हिंदी में हरसिंगार कहते है, संस्कृत पे पारिजात कहते है, बंगला में शिउली कहते है , उस पेड़ पर छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और फुल की डंडी नारंगी रंग की होती है, रात को फूल खिलते है और सुबह जमीन में गिर जाते है । इस पेड़ के पांच पत्ते तोड़ के पत्थर में पिस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके रोज सुबह खाली पेट पियो तो बीस बीस साल पुराना गठिया का दर्द इससे ठीक हो जाता है ।
येही पत्ते को पिस के गरम पानी में डाल के पियो तो बुखार ठीक कर देता है और जो बुखार किसी दावा से ठीक नही होता वो इससे ठीक होता है ; जैसे चिकनगुनिया का बुखार, डेंगू फीवर, Encephalitis , ब्रेन मलेरिया, ये सभी ठीक होते है ।।                    

*  अनुसंधान  मे पाया गया है कि संधिवात,गठिया, साईटिका आदि  वात रोगों में  जड़ी - बूटी निर्मित  हर्बल औषधि ज्यादा  प्रभावकारी  सिद्ध  होती है| रोग को जड़ से  निर्मूलन  करती है              
    Dr jp verma 9958502499

http://h.bhealthy.mobi/yogaathome

वातरोग

पहला प्रयोगः दो तीन दिन के अंतर से खाली पेट अरण्डी का 2 से 20 मि.ली. तेल पियें। इस दौरान चाय-कॉफी न लें। साथ में दर्दवाले स्थान पर अरण्डी का तेल लगाकर, उबाले हुए बेल के पत्तों को गर्म-गर्म बाँधने से वात-दर्द में लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः निर्गुण्डी के पत्तों का 10 से 40 मि.ली. रस लेने से अथवा सेंकी हुई मेथी का कपड़छन चूर्ण तीन ग्राम, सुबह-शाम पानी के साथ लेने से वात रोग में लाभ होता है। यह मेथीवाला प्रयोग घुटने के वातरोग में भी लाभदायक है। साथ में वज्रासन करें।
तीसरा प्रयोगः सोंठ के 20 से 50 मि.ली. काढ़े में 5 से 10 ग्राम अरण्डी का तेल डालकर सोने के समय लेने से खूब लाभ होता है। यह प्रयोग सायटिका एवं लकवे में भी लाभदायक है।

https://www.youtube.com/watch?v=hb19IapJ5Zk

संधिवात (Arthritis)

पहला प्रयोगः निर्गुण्डी के 30-40 पत्तों को पीसकर नाभि पर लगाने से एवं 10 से 40 मि.ली. पिलाने से संधिवात में आराम मिलता है।
दूसरा प्रयोगः अडूसे की छाल का 2 ग्राम चूर्ण लेने से तथा महानिंब के पत्तों को उबालकर बाँधने से संधिवात में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः सोंठ के साथ गुडुच का काढ़ा 20 से 50 मि.ली. पीने से संधिवात दूर होता है।

कमर का वातरोग

निर्गुण्डी के 20 से 50 मि.ली. रस में अरण्डी का 2 से 10 मि.ली. तेल मिलाकर पीने से कमर के दर्द में राहत मिलती है। कमर से पाँव तक शरीर को हल्के हाथ से दबाकर सेंक करना, सुप्तवज्रासन, धनुरासन, उत्तानपादासन, अर्धमत्स्यासन आदि करना भी अत्यधिक लाभदायक है। यदि बुखार न हो और भूख अच्छी लगती हो तो मालिश भी कर सकते हैं।


पैरों का वात (सायटिका)

पहला प्रयोगः सरसों के तेल में सोंठ व कायफल की छाल गर्म करके मालिश करने से अथवा पीड़ित भाग पर अरण्डी का तेल लगाकर ऊपर से थोड़े गर्म किये हुए अरण्डी के पत्ते रखकर पट्टी बाँधने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः लहसुन की 10 कलियों को 100 ग्राम पानी एवं 100 ग्राम दूध में मिलाकर पकायें। पानी जल जाने पर लहसुन खाकर दूध पीने से सायटिका में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः निर्गुण्डी के 40 ग्राम हरे पत्ते अथवा 15 ग्राम सूखे पत्ते एवं 5 ग्राम सोंठ को थोड़ा कूटकर 350 ग्राम पानी में उबालें। 60-70 ग्राम पानी शेष रहने पर छानकर सुबह-शाम पीने से सायटिका में लाभ होता है।


आमवात (गठिया) (Gout)

इसमें जोड़ों में दर्द व सूजन रहती है। शरीर में संचारी वेदना होती है अर्थात दर्द कभी हाथों में होता है तो कभी पैरों में । इस रोग में अधिकांशतः उपचार के पूर्व लंघन आवश्यक है तथा  प्रात: पानी प्रयोग एवं रेत या अँगीठी (सिगड़ी) का सेंक लाभदायक है। 3 ग्राम सोंठ को 10 से 20 मि.ली. (1-2 चम्मच) अरण्डी के तेल के साथ खायें।
पहला प्रयोगः 250 मि.ली. दूध एवं उतने ही पानी में दो लहसुन की कलियाँ, 1-1 चम्मच सोंठ और हरड़ तथा 1-1 दालचीनी और छोटी इलायची डालकर पकायें। पानी जल जाने पर वही दूध पीयें।
दूसरा प्रयोगः 'पानी प्रयोग' के अलावा निम्नलिखित चिकित्सा करें।
पहले तीन दिन तक उबले हुए मूँग का पानी पियें। बाद में सात दिन तक सिर्फ उबले हुए मूँग ही खायें। सात दिन के बाद पंद्रह दिन तक केवल उबले हुए मूँग एवं रोटी खायें।
सुलभ हो तो एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति अपनायें।
औषधियाँ- सिंहनाद गुगल की 2-2 गोली सुबह, दोपहर व शाम पानी के साथ लें।
'चित्रकादिवटी' की 2-2 गोली सुबह-शाम अदरक के साथ 20 मि.ली. रस व 1 चम्मच घी के साथ लें।


कंपवात

निर्गुण्डी की ताजी जड़ एवं हरे पत्तों का रस निकाल कर उसमें पाव भाग तिल का तेल मिलाकर गर्म करके सुबह-शाम 1-1 चम्मच पीने से तथा मालिश करते रहने से कंपवात, संधियों का दर्द एवं वायु का दर्द मिटता है। स्वर्णमालती की 1 गोली अथवा 1 ग्राम कौंच का पाउडर दूध के साथ लेने से लाभ होता है।

वायु के सर्वरोग

पहला प्रयोगः काली मिर्च का 1 से 2 ग्राम पाउडर एवं 5 से 10 ग्राम लहसुन को बारीक पीसकर भोजन के समय घी-भात के प्रथम ग्रास में हमेशा सेवन करने से वायु रोग नहीं होता।
दूसरा प्रयोगः 5 ग्राम सोंठ एवं 15 ग्राम मेथी का चूर्ण 5 चम्मच गुडुच (गिलोय) के रस में मिश्रित करके सुबह एवं रात्रि को लेने से अधिकांश वायु रोग समाप्त हो जाते हैं।
तीसरा प्रयोगः यदि वायु के कारण मरीज का मुँह टेढ़ा हो गया हो तो अच्छी किस्म के लहसुन की 2 से 10 कलियों को तेल में तलकर शुद्ध मक्खन के साथ मिलाकर, बाजरे की रोटी के साथ थोड़ा नमक डालकर खाने से मरीज का मुँह ठीक हो जाता है।            
  Dr jp verma 9958502490


बरगद वरदान है जीवन में - Banyan's full blessing in life-

बरगद पूरा वरदान है जीवन में -
बरगद पूरा वरदान है जीवन में - Banyan's full blessing in life-
प्रकृति का एक वरदान है 'बरगद' ये कभी नष्ट नहीं होता है बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है इसकी शाखाओं से जड़ें निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एवं स्तंभ बन जाती हैंबरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है-बरगद(Banyan) के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं-
आइये जाने इसके क्या प्रयोग है-
बाल के लिए प्रयोग-
बरगद की जड़- 25 ग्राम
जटामांसी का चूर्ण- 25 ग्राम
गिलोय का रस- 2 लीटर
तिल का तेल- 400 मिलीलीटर
उपरोक्त सभी चीजो को आपस में मिलाकर एक साथ धूप में रख दे जब इसमें पानी जैसा सूख जाए तब बचे हुए तेल को छान लें इस तेल की मालिश से गंजापन दूर होकर बाल आ जाते हैं और बाल झड़ना बंद हो जाते हैं-
अन्य कुछ अदभुत प्रयोग-
बरगद की जटा और काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर खूब बारीक पीसकर सिर पर लगायें-इसके आधा घंटे बाद कंघी से बालों को साफ कर ऊपर से भांगरा और नारियल की गिरी दोनों को पीसकर लगाते रहने से बाल कुछ दिन में ही घने और लंबे हो जाते हैं-
बरगद के कड़े हरे शुष्क पत्तों के 10 ग्राम दरदरे चूर्ण को 1 लीटर पानी में पकायें, चौथाई बच जाने पर इसमें 1 ग्राम नमक मिलाकर सुबह-शाम पीने से हर समय आलस्य और नींद का आना कम हो जाता है-
बरगद के पत्तों की 20 ग्राम राख को 100 मिलीलीटर अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करते रहने से सिर के बाल उग आते हैं या बरगद के साफ कोमल पत्तों के रस में, बराबर मात्रा में सरसों के तेल को मिलाकर आग पर पकाकर गर्म कर लें, इस तेल को बालों में लगाने से बालों के सभी रोग दूर हो जाते हैं-
दही के साथ बड़ को पीसकर बने लेप को जले हुए अंग पर लगाने से जलन दूर होती है- जले हुए स्थान पर बरगद की कोपल या कोमल पत्तों को गाय के दही में पीसकर लगाने से जलन कम हो जाती है-
नाक में बरगद के दूध की 2 बूंदें डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है- 3 ग्राम बरगद की जटा के बारीक पाउडर को दूध की लस्सी के साथ पिलाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है-
बिवाई की फटी हुई दरारों पर बरगद का दूध भरकर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में वह ठीक हो जाती है-
बरगद के लाल रंग के कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर पीसकर रख लें फिर आधा किलो पानी में इस पाउडर को 1 या आधा चम्मच डालकर पकायें, पकने के बाद थोड़ा सा बचने पर इसमें 3 चम्मच शक्कर मिलाकर सुबह-शाम चाय की तरह पीने से जुकाम और नजला आदि रोग दूर होते हैं और सिर की कमजोरी ठीक हो जाती है-


(सरवाईकल,साईटिका,स्लिपडिस्क का उपचार 3 दिन में संभव’)
(DIABETES(मधुमेह) Cure IN 7 Days) 
 Dr J P Verma (Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki, NDDY & Md Spiritual Healing) Mob- 9958502499, 9899410128


10 ग्राम बरगद के कोमल हरे रंग के पत्तों को 150 मिलीलीटर पानी में खूब पीसकर छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर सुबह-शाम 15 दिन तक सेवन करने से दिल की घड़कन सामान्य हो जाती है-बरगद के दूध की 4-5 बूंदे बताशे में डालकर लगभग 40 दिन तक सेवन करने से दिल के रोग में लाभ मिलता है-
कमर दर्द में बरगद़ के दूध की मालिश दिन में 3 बार कुछ दिन करने से कमर दर्द में आराम आता है- बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से कमर दर्द से छुटकरा मिलता है- कमर दर्द में बरगद के पेड़ का दूध लगाने से लाभ होता है-
बरगद के पेड़ के फल को सुखाकर बारीक पाउडर लेकर मिश्री के बारीक पाउडर मिला लें- रोजाना सुबह इस पाउडर को 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन से वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन आदि रोग दूर होते हैं-
यदि आप नियमित सूर्योदय से पहले बरगद़ के पत्ते तोड़कर टपकने वाले दूध को एक बताशे में 3-4 बूंद टपकाकर खा लें-एक बार में ऐसा प्रयोग 2-3 बताशे खाकर पूरा करें- हर हफ्ते 2-2 बूंद की मात्रा बढ़ाते हुए 5-6 हफ्ते तक यह प्रयोग जारी रखें- इसके नियमित सेवन से शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, स्वप्नदोष, प्रमेह, खूनी बवासीर, रक्त प्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं और यह प्रयोग बलवीर्य वृद्धि के लिए भी बहुत लाभकारी है-
बताशे में बरगद के दूध की 5-10 बूंदे डालकर रोजाना सुबह-शाम खाने से नपुंसकता दूर होती है-
बरगद के पके फल को छाया में सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें- इस चूर्ण को बराबर मात्रा की मिश्री के साथ मिलाकर पीस लें- इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दूध से नियमित रूप से सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में यौन शक्ति में बहुत लाभ मिलता है-
3-3 ग्राम बरगद के पेड़ की कोंपले (मुलायम पत्तियां) और गूलर के पेड़ की छाल और 6 ग्राम मिश्री को पीसकर लुगदी सी बना लें फिर इसे तीन बार मुंह में रखकर चबा लें और ऊपर से 250 ग्राम दूध पी लें- 40 दिन तक खाने से वीर्य बढ़ता है और संभोग से खत्म हुई शक्ति लौट आती है-
बरगद के दूध की पहले दिन 1 बूंद 1 बतासे डालकर खायें, दूसरे दिन 2 बतासों पर 2 बूंदे, तीसरे दिन 3 बतासों पर 3 बूंद ऐसे 21 दिनों तक बढ़ाते हुए इसी तरह घटाना शुरू करें- इससे प्रमेह और स्वप्न दोष दूर होकर वीर्य बढ़ने लगता है-
बरगद के फल छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें- गाय के दूध के साथ यह 1 चम्मच चूर्ण खाने से वीर्य गाढ़ा व बलवान बनता है-
25 ग्राम बरगद की कोपलें (मुलायम पत्तियां) लेकर 250 मिलीलीटर पानी में पकायें- जब एक चौथाई पानी बचे तो इसे छानकर आधा किलो दूध में डालकर पकायें- इसमें 6 ग्राम ईसबगोल की भूसी और 6 ग्राम चीनी मिलाकर सिर्फ 7 दिन तक पीने से वीर्य गाढ़ा हो जाता है-
बरगद के दूध की 5-7 बूंदे बताशे में भरकर खाने से वीर्य के शुक्राणु बढ़ते है-
बरगद की जटा के साथ अर्जुन की छाल, हरड़, लोध्र व हल्दी को समान मात्रा में लेकर पानी में पीसकर लेप लगाने से उपदंश के घाव भर जाते हैं-
बरगद का दूध उपदंश के फोड़े पर लगा देने से वह बैठ जाती है- बड़ के पत्तों की भस्म (राख) को पान में डालकर खाने से उपदंश रोग में लाभ होता है-
बरगद के पत्तों से बना काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 2-3 बार सेवन करने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है- यह काढ़ा सिर के भारीपन, नजला, जुकाम आदि में भी फायदा करता है-
बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर बने लेप को रोजाना सोते समय स्तनों पर मालिश करके लगाते रहने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है-
बरगद की जटा के बारीक अग्रभाग के पीले व लाल तन्तुओं को पीसकर लेप करने से स्तनों के ढीलेपन में फायदा होता है-
4 ग्राम बरगद की छाया में सुखाई हुई छाल के चूर्ण को दूध की लस्सी के साथ खाने से गर्भपात नहीं होता है-
बरगद की छाल के काढ़े में 3 से 5 ग्राम लोध्र की लुगदी और थोड़ा सा शहद मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गर्भपात में जल्द ही लाभ होता है-
योनि से रक्त का स्राव यदि अधिक हो तो बरगद की छाल के काढ़ा में छोटे कपड़े को भिगोकर योनि में रखें- इन दोनों प्रयोग से श्वेत प्रदर में भी फायदा होता है-
बरगद की कोपलों के रस में फोया भिगोकर योनि में रोज 1 से 15 दिन तक रखने से योनि का ढीलापन दूर होकर योनि टाईट हो जाती है-
पुष्य नक्षत्र और शुक्ल पक्ष में लाये हुए बरगद की कोपलों का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-स्राव काल में प्रात: पानी के साथ 4-6 दिन खाने से स्त्री अवश्य गर्भधारण करती है या बरगद की कोंपलों को पीसकर बेर के जितनी 21 गोलियां बनाकर 3 गोली रोज घी के साथ खाने से भी गर्भधारण करने में आसानी होती है-
बड़ की जटा के अंकुर को घोटकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से सभी प्रकार की उल्टी बंद हो जाती है-
20 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर रक्तप्रदर वाली स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है- स्त्री या पुरुष के पेशाब में खून आता हो तो वह भी बंद हो जाता है-
10 ग्राम बरगद की जटा के अंकुर को 100 मिलीलीटर गाय के दूध में पीसकर और छानकर दिन में 3 बार स्त्री को पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है-
बरगद के दूध की 5-7 बूंदे बताशे में भरकर खाने से रक्तप्रदर मिट जाता है-
बरगद के पत्ते, सौंठ, पुरानी ईंट के पाउडर, गिलोय तथा पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप करने से भगन्दर के रोग में फायदा होता है-



20 ग्राम बरगद की छाल को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, पकने पर आधा पानी रहने पर छानकर उसमें 10-10 ग्राम गाय का घी और चीनी मिलाकर गर्म ही खाने से कुछ ही दिनों में बादी बवासीर में लाभ होता है-
बरगद के 25 ग्राम कोमल पत्तों को 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर खूनी बवासीर के रोगी को पिलाने से 2-3 दिन में ही खून का बहना बंद होता है बवासीर के मस्सों पर बरगद के पीले पत्तों की राख को बराबर मात्रा में सरसों के तेल में मिलाकर लेप करते रहने से कुछ ही समय में बवासीर ठीक हो जाती है-
बरगद की सूखी लकड़ी को जलाकर इसके कोयलों को बारीक पीसकर सुबह-शाम 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ रोगी को देते रहने से खूनी बवासीर में फायदा होता है- कोयलों के पाउडर को 21 बार धोये हुए मक्खन में मिलाकर मरहम बनाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से बिना किसी दर्द के दूर हो जाते हैं-
खून निकलता है- उसे खूनी दस्त कहते हैं- इसे रोकने के लिए 20 ग्राम बरगद की कोपलें लेकर पीस लें और रात को पानी में भिगोंकर सुबह छान लें फिर इसमें 100 ग्राम घी मिलाकर पकायें- पकने पर घी बचने पर 20-25 ग्राम तक घी में शहद व शक्कर मिलाकर खाने से खूनी दस्त में लाभ होता है-
बरगद के दूध को नाभि के छेद में भरने और उसके आसपास लगाने से अतिसार (दस्त) में लाभ होता है- 6 ग्राम बरगद की कोंपलों को 100 मिलीलीटर पानी में घोटकर और छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से और ऊपर से मट्ठा पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं-
बरगद की छाया मे सुखाई गई 3 ग्राम छाल को लेकर पाउड़र बना लें और दिन मे 3 बार चावलों के पानी के साथ या ताजे पानी के साथ लेने से दस्तों में फायदा मिलता है- बरगद की 8-10 कोंपलों को दही के साथ खाने से दस्त बंद हो जाते हैं-
20 ग्राम बरगद की छाल और इसकी जटा को बारीक पीसकर बनाये गये चूर्ण को आधा किलो पानी में पकायें, पकने पर अष्टमांश से भी कम बचे रहने पर इसे उतारकर ठंडा होने पर छानकर खाने से मधुमेह के रोग में लाभ होता है-
लगभग 24 ग्राम बरगद के पेड़ की छाल लेकर जौकूट करें और उसे आधा लीटर पानी के साथ काढ़ा बना लें- जब चौथाई पानी शेष रह जाए तब उसे आग से उतारकर छाने और ठंडा होने पर पीयें- रोजाना 4-5 दिन तक सेवन से मधुमेह रोग कम हो जाता है- इसका प्रयोग सुबह-शाम करें-
कूठ व सेंधानमक को बरगद के दूध में मिलाकर लेप करें, तथा ऊपर से छाल का पतला टुकड़ा बांध दें, इसे 7 दिन तक 2 बार उपचार करने से बढ़ी हुआ गांठ दूर हो जाती है- गठिया, चोट व मोच पर बरगद का दूध लगाने से दर्द जल्दी कम होता है-
बरगद के पेड़ के दूध को फोड़े पर लगाने से फोड़ा पककर फूट जाता है-
लगभग 5 ग्राम की मात्रा में बड़ के दूध को सुबह-सुबह पीने से आंव का दस्त समाप्त हो जाता है-
लगभग 3 ग्राम से 6 ग्राम बरगद की जटा का सेवन करने से उल्टी आने का रोग दूर हो जाता है-
30 ग्राम वट की छाल को 1 लीटर पानी में उबालकर गरारे करने से मुंह के छाले खत्म हो जाते हैं-
घाव में कीड़े हो गये हो, बदबू आती हो तो बरगद की छाल के काढ़े से घाव को रोज धोने से इसके दूध की कुछ बूंदे दिन में 3-4 बार डालने से कीड़े खत्म होकर घाव भर जाते हैं-
बरगद के दूध में सांप की केंचुली की राख मिलाकर और उसमें रूई भिगोकर नासूर पर रखें- दस दिन तक इसी प्रकार करने से नासूर में लाभ मिलता है-
अगर घाव ऐसा हो जिसमें कि टांके लगाने की जरूरत पड़ जाती है- तो ऐसे में घाव के मुंह को पिचकाकर बरगद के पत्ते गर्म करके घाव पर रखकर ऊपर से कसकर पट्टी बांधे, इससे 3 दिन में घाव भर जायेगा, ध्यान रहे इस पट्टी को 3 दिन तक न खोलें-
फोड़े-फुन्सियों पर इसके पत्तों को गर्मकर बांधने से वे शीघ्र ही पककर फूट जाते हैं-
बरगद के आधा किलो पत्तों को पीसकर, 4 किलो पानी में रात के समय भिगोकर सुबह ही पका लें- एक किलो पानी बचने पर इसमें आधा किलो सरसों का तेल डालकर दोबारा पकायें, तेल बचने पर छानकर रख लें, इस तेल की मालिश करने से गीली और खुश्क दोनों प्रकार की खुजली दूर होती है-
बरगद की पेड़ की टहनी या इसकी शाखाओं से निकलने वाली जड़ की दातुन करने से दांत मजबूत होते हैं-
कीड़े लगे या सड़े हुए दांतों में बरगद का दूध लगाने से कीड़े तथा पीड़ा दूर हो जाती है-

http://h.bhealthy.mobi/yogaathome 

10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम कालीमिर्च इन तीनों को खूब बारीक पाउडर बनाकर मंजन करने से दांतों का हिलना, मैल, बदबू आदि रोग दूर होकर दांत साफ हो जाते हैं-
दांत के दर्द पर बरगद का दूध लगाने से दर्द दूर हो जाता है- इसके दूध में एक रूई की फुरेरी भिगोकर दांत के छेद में रख देने से दांत की बदबू दूर होकर दांत ठीक हो जाते हैं तथा दांत के कीड़े भी दूर हो जाते हैं-
अगर किसी दांत को निकालना हो तो उस दांत पर बरगद का दूध लगाकर दांत को आसानी से निकाला जा सकता है-
बरगद के पेड़ की जटा से मंजन करने से दांतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं बरगद की कोमल लकड़ी की दातुन से पायरिया खत्म हो जाता है-
बरगद का दूध दांतों में लगाने, मसूढ़ों पर मलने से उनका दर्द दूर हो जाता है बरगद की छाल के काढ़े से कुछ समय तक रोजाना गरारे करने से दांत मजबूत हो जाते हैं-
बरगद के पेड़ का दूध निकालकर दांतों लगाने से दांतों का दर्द खत्म हो जाता है-
बरगद की छाल को पीसकर दांतों के नीचे रखें- इससे दांतों का दर्द खत्म हो जाता है-
दमा के रोगी को बड़ के पत्ते जलाकर उसकी राख 240 मिलीग्राम पान में रखकर खाने से लाभ मिलता है-
बरगद के पत्तों पर घी चुपड़कर बांधने से सूजन दूर हो जाती है-
गठिया के दर्द में बरगद के दूध में अलसी का तेल मिलाकर मालिश करने से लाभ मिलता है-


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कैल्शियम की कमी ? - एक बेहद असरदार प्रयोग - हड्डियाँ बन जाएँगी फौलाद

कैल्शियम की कमी ?
- एक बेहद असरदार प्रयोग - हड्डियाँ बन जाएँगी फौलाद :

आज के समय में अधिकतर लोग शरीर में कैल्शियम की कमी से जूझ रहे है .कैल्शियम की कमी के कारण शरीर में दर्द लगातार बना रहता है .. महिलाओं में यह समस्या ज्यादा पायी जाती है ..तरह तरह की कैल्शियम की टेबलेट्स खाकर भी समस्या का समाधान नहीं होता ..इन्ही समस्याओं के निवारण के लिए एक बेहद असरदार प्रयोग पर आज चर्चा की जाएगी.

सामग्री--- (1) हल्दीगाँठ 1 किलोग्राम (2) बिनाबुझा चूना 2 किलो

विधि – सबसे पहले किसी मिट्टी के बर्तन में चूना डाल दें .अब इसमें इतना पानी डाले की चूना पूरा डूब जाये ..पानी डालते ही इस चूने में उबाल सी उठेगी ..जब चूना कुछ शांत हो जाए तो इसमें हल्दी डाल दें और किसी लकड़ी की सहायता से ठीक से मिक्स कर दे ..
इस हल्दी को लगभग दो माह तक इसी चूने में पड़ी रहने दे .. जब पानी सूखने लगे तो इतना पानी अवश्य मिला दिया करे की यह सूखने न पाए ....
दो माह बाद हल्दी को निकाल कर ठीक से धो लें और सुखाकर पीस ले और किसी कांच के बर्तन में रख लें .



सेवन विधि---
(1) वयस्क 3 ग्राम मात्रा गुनगुने दूध में मिलाकर दिन में दो बार

(2) बच्चे – 1 से 2 ग्राम मात्रा गुनगुने दूध में मिलाकर दिन में दो बार

लाभ -- कुपोषण, बीमारी या खानपान की अनियमितता के कारण शरीर में आई कैल्शियम की कमी बहुत जल्दी दूर हो जाती है और शरीर में बना रहने वाला दर्द ठीक हो जाता है
.
ये दवा बढ़ते बच्चों के लिए एक अच्छा bone टॉनिक का कामकरती है और लम्बाई बढ़ाने में बहुत लाभदायक है

टूटी हड्डी न जुड़ रही हो या घुटनों और कमर में दर्द तो अन्य दवाओं के साथ इस हल्दी का भी प्रयोग बहुत अच्छे परिणाम देगा

सावधानी --- ..जिन्हें पथरी की समस्या है वो न लें ...
(सरवाईकल,साईटिका,स्लिपडिस्क का उपचार 3 दिन में संभव’)


(DIABETES(मधुमेह) Cure IN 7 Days) 

 Dr J P Verma (Md-Acu, BPT, C.Y.Ed, Reiki, NDDY & Md Spiritual Healing) Mob- 9958502499, 9899410128



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Physiotherapy, Acupressure, Naturopathy, Yoga, Pranayam, Meditation, Reiki.Spiritual & Cosmic Healing, Treatment Available At Home Visit By Appointment In

Diet Therapy

Diet Therapy
Diet play an important role in our life. To do any kind of work we require energy which will be provided by our diet we consumed. 99% caused of disease is present our diet so to be healthy one should take balanced diet. A balanced diet should contain all type of carbohydrate, Protein, Vitamins & minerals, lacking any of these may lead to health related problems.  
Natural Diet :- Food Intake should comprise of Cereals, pulses, grains, raw & boiled vegetables, sprouts, fruits/vegetables juices.  
Avoid :- Dairy product, fried foods, deep fry dishes, non-vegetarian items, spice & junk food like bakery items and other variety of fast food.
  
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vgkj ,oa uspqjy o gcZy FkSjsih (VªhVesaUV ,oa Vªsfuax lsaUVj)

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Massage therapy

Massage therapy
  Massage also called as manipulate therapy where manipulation all Body part by giving different type of movement.  
 Massage having its effect on all the system of body like blood circulation, glandular system. Muscular system is greatly influenced by massage therapy. During massage blood flow to the muscles will increase to a greater intensity thereby improving all the function of muscles & strengthening them. 
It is found that when massage is given Red blood cell Count is increase in superficial blood vessel, this shows oxygenated blood supply for skin, thereby enhancing functional activity of skin. Numerous variety of herbal & aromatic oil used for massage.  
 Analgesic effect of massage useful in treating painful disorders like Neuralgic, Arthritis headache lumbar spondylosis Cervical spondylosis, myalgia etc.

Treatment of Incurable Diseases Without  Any  Medicine

21 century Treatment Methods Acupressure Therapy, Su-jok Therapy, Reflexology  Therapy, Physio Therapy, Naturopathy Therapy, Yoga Therapy, Pranayam Therapy, Meditation Therapy, Sadhana Therapy, Subconscious Mind Therapy, Massage Therapy, Colour Therapy, Magnetic Therapy, Diet & nutrition Therapy, Natural & Harbal Therapy, Reiki Healing, Pranic Healing, Psychic Healing, Spiritual Healing, Touch Healing Therapy,  Cosmic Healing, And Other Alternative Therapy

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Mud Therapy

Mud Therapy
  Mud is a part of our body as human body is made up of five elements Air, Water, Earth, Fire & Space. Mud is obtained from earth, when mud is applied on the body for the purpose of treatment it fulfills the requirement of earth element in our body.  
  Mud also has got many medicinal values it contain minerals like zinc, selenium ,sulfur, etc. so it can be used for skin disease, mud stimulates the sweat glands there by helping in elimination of toxins. Mud therapy is one of the best way to erase the effect of aging from the skin. 
 For the purpose of therapy mud can be applied in two ways:-  
  • Local Application 
  • General Application
  Local :- In this form of application, mud is applied to the particular part of the body to get desired effect. It can be applied in the form of packs or direct application to the part can be made eg:- Daily application of mud to the abdomen, regulates the function of abdominal organs there by improving digestion.
General Application:- In this form of application, mud is applied all over the body to get generalized effect. Mud also has got cooling property, it can be applied in skin irritation, burning sensation of palms & fat. During fever if mud is applied to the abdomen for two times a day helps to reduce the temperature.  
     Indication: Obesity,Yypertension, Insomnia, Burning sole and feet ,  
   
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Diseases of Digestive Systems - Constipation, Appendicitis,   Jaundice, Anemia, Piles, Acidity, Colitis, Obesdity & Lean

Respiratory Dieseases - Cough, Asthma, Comman Colds, Sinusitis

Hearts Circulatary Diseases - High Blood Prassure (Hypertension), Low Blood Prassure (Hypotension), Cardiac Weakness, Palpitation of Heart

 Orthopadics Diseases - Cervical Spondylosis,  Arthritis, Osteoarthritis,  Gouty, Arthritis,  Ankylosis Spondylitis

 Pain Diseases Gout,  Headache,  Swelling,  Deafness,  Shoulder Pain,  Neck Pain,  Knee Pain,  Back Bone Pain,  Back Pain,  Tennis Elbow, Legs & Hands Pain,  Sciatica,  Slippdise,  Migraine,  Lumbago,  Neuralgia,   Soft Tissue & Muscular Rhewmatism,  Muscular Pain,  Stiffnes And All Joint Pain

Mental Diseases Hysteria,  Depression,  Anxiety, Neurosis, Vertigo,  Insomnia,  Parkinsonism,  Paralysis,  Hemiplegia,  Mental Tension,  Phobia, Migraine , Headache,  Mania,  Insanity  Shock,  Mental Restlessness

 Sexlogy Diseases - Night Discharge , Rapid Ejaculation,  Impotency, Hydrocele,   Spermatorrhoea,  Lass of Sexual Desire

Gynaecalogical Diseases - Amenorrhoea, Dysmenorrhoea,  Hypomenorrhoea,  Menorrhagia, Leucorrhoea , Menopause,  Backache in Women,  Metrorrhagia,  Anaemia,  Menstruation Diseases,  Vaginitis,  Menstruation Cycle Problems,  Hair Loss,  Thyroid Problems

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Meditation

Meditation
 "Thought less state of mind known as meditation "
Meditation is communion with the Inner self. It is the mean of expending our consciousness, transcending the external being and becoming one with the infinite source of light & wisdom. Meditation is discovering oneself. It is that state when the mind becomes free from the awareness of subjective & objective experience. Meditation induce a deep state of rest which encourages the repair & improves health of all the cells & tissues of the body. Meditation is one which act on the mental level and help to overcome all the mental problems such as fear, stress, tension, anxiety etc.
 
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C53,  Sector 15 Vasundra, Avash Vikash Markit, Near Pani Ki Tanki

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Yogic Therapy

Yogic Therapy
 "Cessation of thought-wave is yoga"
yoga is a method by which one can develop one's inherent power in a balanced manner.
The science of yoga and its technique have now suit to modern sociological need and life style. 
experts of various branches of medicine are realizing the role of these technique in prevention of disease, cure of disease and promotion of health.
The practice of yoga prevent and cure psychosomatic disorder/disease and improves individual' s resistance and ability to fight stressful situation.

Yoga is a spiritual science which has been gifted to us by our ancient Sages for the final emancipation . Yoga is a curative and preventive measure for human suffering. The life of man is full of pleasure, pains, stress, strain. Man is affected by environments, social structures, competition & never ending struggles. He is affected within himself by anxieties, worries, desires, lust, anger, greed, aversion hatred, temptation & so on. Yogic method gives the maximum & the minutest techniques for the curve of solid body for mind. Therapy is a treatment. "Treatment for a disorderly mental & Physical condition or diseases with remedial agent of techniques
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