गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

कल्पान्त ध्यान साधना द्वितीय क्रिया

कल्पान्त ध्यान साधना द्वितीय क्रिया

द्वितीय क्रिया - : आप अब लगातार प्रथम क्रिया कर रहे है । ओर आपको बहुत से अनुभव भी हो रहे है। कुछ आत्मजनो को बहुत अच्छे अनुभव हो रहे है। कुछ को कम, पर अनुभव सब कर रहे है। कुछ के शारिरिक रोग कम हो रहे है तो कुछ के। मानसिक रोग, ओर कुछ को आनंद की हल्की सी अनुभूति हुई है, पर कुछ को कुछ समस्याऐ भी आ रही है क्योकि आप पहली बार कुछ अलग कर रहै है जिसमे आपको कुछ करना नही होता है। परन्तु आपकी प्रत्येक समस्या का व जिज्ञासा का पर्सनल समाधान Whatsapp पर किया जा रहा है। अब आप थोड़ा सा आगे बढ़ रहे है द्वितिय क्रिया के लिये , इसमे आपको तेजी से अनुभव होगें।ओर आधिक गहराईयो मे पहुँचकर पहले से हजारो गुना ज्यादा आंनद की अनुभुतियां  प्राप्त होगी। इसमे आपको प्रथम क्रिया को ही करना है पर तीन संकल्पओ को साथ में जोड़ना है
             आपको सबसे पहले एक जगह व समय तय करना है जहाँ आप बिना Disturbing के यह सब कर सके। अब आपको एकही जगह पर खडे होकर जोगिंग शुरू करनी है। 5-15 मिनट तक आप दौड़ सकते है। जिसकी जितनी क्षमता हो उतना करें , जब दौड़ना बस की न रहे तो आप पीठ के बल लेट जाइए और दोनों भुजाओं को शरीर के बगल में रखिए, दोनों हाथ शरीर से 6 इंच दूरी पर हो , तथा हथेलियां उपर की ओर खुली रखें। पैरों को एक दूसरे से थोड़ा दूर कर लें और आखों को बंद कर लीजिए। इसके बाद शरीर को ढीला छोड़ दीजिए।
                   साधना के दूसरा चरण मे प्रवेश करें इसमे आपको तीन संकल्प करने है। प्रथम संकल्प के लिए गहरा श्वास भरे रोके ओर दोहराये कि मे आँख नही खोलूंगा या खोलूंगी,ओर श्वास को निकाल दें, इसे तीन बार करे। फिर दूसरे संकल्प के लिए श्वास भरे रोके ओर दोहरये कि मे मुख से नहीं बोलूंगा या बोलूंगी, ओर श्वास निकाल दें। तीन बार इसे भी दोहराये। इसी प्रकार तीसरे संकल्प के लिए श्वास भरे रोके ओर दोहराये कि मे अब शरीर को नही हिलाऊगा या हिलाऊगी ओर श्वास निकाल दें। इसे भी तीन बार दोहराये। ध्यान रहे इनमे तीसरा संकल्प सबसे महत्वपूर्ण है, पूरी साधना इसी संकल्प पर टिकी हुई है। इस प्रकार पूरी आत्म शक्ति के साथ यह  संकल्प करे ओर तीसरे चरण मे प्रवेश करें। इस अवस्था में ये ध्यान रखिए कि आपको कुछ करना नहीं है ओर कुछ भी हो जाये आपको शरीर को हिलाना नही है।
                       आते हुए विचारों को रोकना नहीं है, ओर आपको किसी विचार पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं करनी है , जो महसूस हो उसे करते रहे पर आपनी बुद्बि का प्रयोग बिलकुल न करें न कुछ करने की कोशिश करें न ही ना करने की , आपको बस आँख बन्द करके लेटे रहना है अगर खुद कुछ हो तो उसे केवल महसूस करना है नहीं तो कुछ नही। 45-60 मिनिट आपको बस ऐसे ही लेटे रहना है। कुछ नही करना है। कभी भी जब समय मिले तब करें, कोई समय न हो तो केवल रात को सोने से पहले करे, जब क्रिया को बन्द करना हो चेतना मे वापस आना हो तो पहले दो गहरी श्वास भरे , हाथ पैर की अंगूलीयो मे हलचल करे, फिर हथेलीयों को रगड़ कर गर्म करें, आँखों पर लगाए, चेहरे पर लगाए, ओर धीरे धीरे आँखें खोलते हुये उठकर बैठ जाये।                                                                                     कोई नियम नही है। कोई बन्धन नही है। पूर्ण स्वतंत्र होकर करें, क्या होगा या कुछ होगा या नही यह न सोचे, बस करें, ओर जिसको कोई अनुभव हो वो पर्सनल मे मैसेज करें, ओर सभी को अपना अनुभव बताते रहना है । जिससे आपका सही मार्गदर्शन कर सकू
                     अगली क्रिया 40-120 दिन के अन्दर मिलेगी तब तक इसको करते रहै। अगर किसी को कुछ समझ न आया हो , कोई शंका हो, तो पर्सनल फोन करके पूछ ले, या मेरे पर्सनल नम्बर पर whatsapp  मैसेज करके पूछ ले,
ऊँ परमात्मा आपको सफलता दे। ओर जो भी सोचकर जो क्रिया को करै वो उसे प्राप्त हो , इसी शुभ आशीष के साथ स्वामी जगतेश्वर आनंद जी

कल्पान्त ध्यान साधना

कल्पान्त ध्यान साधना
ध्यान क्या है। :- ध्यान एक ऐसी कला है जो पूर्णताः विज्ञानिक है। इसमे विस्वास नहीं करना है, न ही विस्वास करने की जरुरत है। उसे केवल ओर केवल करने की जरूरत है। बस तुम उसे करों ओर उसे केवल करके ही जाना जा सकता है। एक ऐसा परम आनंद जो आपको आनंद की सीमाओ से पार ले जाये, एक ऐसी शान्ति जो अन्नत गहरी हो, जहाँ सब कुछ शान्त हो जाता हो, जहाँ फिर कोई भी चाहत बाकी नहीं रहती, ओर जहाँ पहुँचकर फिर सभी दौड़ पूरी हो जाती हैं। वह अवस्था ध्यान की अवस्था हैं।ध्यान हमें उस परम आनंद तक ले जाता है जिसकी हम केवल कल्पना करते है। ओर जब उस आनंद को हम प्रकट कर लेते है तो उसकी व्याख्या शब्दों मे नही कर सकते, इसलिये ध्यान का अनुभव पढ़कर नही केवल करके ही पाया जा सकता है।ध्यान को करने से तुम्हारे भीतर अदभुत प्रेम सौन्दर्य फुटने लगता है। तुम नाचने उठोगें, गाने लगोगें, तुम एक ऐसे प्रेमी बन जाओगे कि सारी सृष्टि ही प्रेममय दिखाई देने लगेगी, ओर यह सब करके ही प्रकट होगा। बस यही ध्यान है।

आज से कल्पान्त साधना की श्रखला शुरू हो रही है। इसको शुरू करने से पहले यह समझ ले कि यह साधना कोई क्रिया नही है। ओर मे आपको बहुत सहज तरीकों से ध्यान की उन गहराइयो मे ले जाऊगा जिसकी केवल आपने अब तक कल्पना की है। इसके लिए आपको आपनी बुद्वि का प्रयोग बन्द करना है ओर जो मे कहूँ उसको करना शुरू करना है। ओर आपको जो भी अनुभव हो उनको मेरे पर्सनल नम्बर पर ही बताएं, ग्रुप मे नहीं । क्योंकि सबको अपने कर्मो, संस्कारों, मान्यताओं, के अधार के कारण अलग अलग अनुभव होगे। कुछ लोग बहुत तेजी से अनुभव करेंगे कुछ लम्बे समय तक करने के बाद अनुभव करेंगे। ओर आपके अनुभव ही आपका आगे का रास्ता बनायेंगे। अर्थात सबका रास्ता एक तो होगा परन्तु कोई पहले कोई बाद मे पायेगा, इसलिये जो तेजी से आगे बढ़ेगे उन्हें फिर आगे का रास्ता पर्सनल ही दे दूगा।
इसलिये सभी एक बार फिर समझ ले कि ग्रुप मे कोई भी मैसेज न करे , सभी सवाल व अनुभव पर्सनल नम्बर पर ही करें । ओर एक बात आप इस ग्रुप मे जुड़े है तो मेरे बताये रास्ते पर चले जरूर ओर जो न चलना चाहे वो कभी भी ग्रुप छोड़ सकता है।


प्रथम क्रिया- आपको सबसे पहले एक जगह व समय तय करना है जहाँ आप बिना Disturbing के यह सब कर सके। अब आपको एकही जगह पर खडे होकर जोगिंग शुरू करनी है। 5-15 मिनट तक आप दौड़ सकते है। जिसकी जितनी क्षमता हो उतना करें , जब दौड़ना बस की न रहे तो आप पीठ के बल लेट जाइए और दोनों भुजाओं को शरीर के बगल में रखिए, दोनों हाथ शरीर से 6 इंच दूरी पर हो , तथा हथेलियां उपर की ओर खुली रखें। पैरों को एक दूसरे से थोड़ा दूर कर लें और आखों को बंद कर लीजिए। इसके बाद शरीर को ढीला छोड़ दीजिए। इस अवस्था में ये ध्यान रखिए कि आपको कुछ करना नहीं है ओर कुछ भी हो जाये आँखों को बन्द रखना है ओर कुछ नही करना करना है
आते हुए विचारों को रोकना नहीं है, ओर आपको किसी विचार पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं करनी है , जो महसूस हो उसे करते रहे पर आपनी बुद्बि का प्रयोग बिलकुल न करें न कुछ करने की कोशिश करें न ही ना करने की , आपको बस आँख बन्द करके लेटे रहना है अगर खुद कुछ हो तो उसे केवल महसूस करना है नहीं तो कुछ नही। 15-30 मिनिट आपको बस ऐसे ही लेटे रहना है। कुछ नही करना है। कभी भी जब समय मिले तब करें, कोई समय न हो तो केवल रात को सोने से पहले करे, जब क्रिया को बन्द करना हो चेतना मे वापस आना हो तो पहले दो गहरी श्वास भरे , हाथ पैर की अंगूलीयो मे हलचल करे, फिर हथेलीयों को रगड़ कर गर्म करें, आँखों पर लगाए, चेहरे पर लगाए, ओर धीरे धीरे आँखें खोलते हुये उठकर बैठ जाये। कोई नियम नही है। कोई बन्धन नही है। पूर्ण स्वतंत्र होकर करें, क्या होगा या कुछ होगा या नही यह न सोचे, बस करें, ओर जिसको कोई अनुभव हो वो पर्सनल मे मैसेज करें, नही तो जब तक करते रहे जब तक आगे की क्रिया न डालू,
अगली क्रिया 11-21 दिन के अन्दर मिलेगी तब तक इसको करते रहै। अगर किसी को कुछ समझ न आया हो , कोई शंका हो, तो पर्सनल फोन करके पूछ ले, या मेरे पर्सनल नम्बर पर whatsapp  मैसेज करके पूछ ले,
ऊँ परमात्मा आपको सफलता दे। ओर जो भी सोचकर जो क्रिया को करै वो उसे प्राप्त हो , इसी शुभ आशीष के साथ स्वामी जगतेश्वर आनंद जी

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

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सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

बीमारी क्या है? स्वास्थ्य क्या है?

बीमारी क्या है? स्वास्थ्य क्या है?

औषधिशास्त्र, मेडिसिन--आदमी की ऊपर से बीमारियों को पकड़ता है। मेडिटेशन, ध्यान का शास्त्र--आदमी को गहराई से पकड़ता है। इसे ऐसा कह सकते हैं कि औषधि मनुष्य को ऊपर से स्वस्थ करने की चेष्टा करती है। ध्यान मनुष्य को भीतर से स्वस्थ करने की चेष्टा करता है। न तो ध्यान पूर्ण हो सकता है औषधिशास्त्र के बिना और न औषधिशास्त्र पूर्ण हो सकता है ध्यान के बिना। असल में आदमी चूंकि दोनों है--भाषा ठीक नहीं है यह कहना कि आदमी दोनों है, क्योंकि इसमें कुछ बुनियादी भूल हो जाती है।

मनुष्य हजारों वर्षों से इस तरह सोचता रहा है कि आदमी का शरीर अलग है और आदमी की आत्मा अलग है। इस चिंतन के दो खतरनाक परिणाम हुए। एक परिणाम तो यह हुआ कि कुछ लोगों ने आत्मा को ही मनुष्य मान लिया, शरीर की उपेक्षा कर दी। जिन कौमों ने ऐसा किया उन्होंने ध्यान का तो विकास किया, लेकिन औषधि का विकास नहीं किया। वे औषधि का विज्ञान न बना सके। शरीर की उपेक्षा कर दी गई। ठीक इसके विपरीत कुछ कौमों ने आदमी को शरीर ही मान लिया और उसकी आत्मा को इनकार कर दिया। उन्होंने मेडिसिन और औषधि का तो बहुत विकास किया, लेकिन ध्यान के संबंध में उनकी कोई गति न हो पाई। जब कि आदमी दोनों है एक साथ। कह रहा हूं कि भाषा में थोड़ी भूल हो रही है, जब हम कहते हैं--दोनों है एक साथ, तो ऐसा भ्रम पैदा होता है कि दो चीजें हैं जुड़ीं हुई।


नहीं, असल में आदमी का शरीर और आदमी की आत्मा एक ही चीज के दो छोर हैं। अगर ठीक से कहें तो हम यह नहीं कह सकते कि बॉडी-सोल, ऐसा आदमी है। ऐसा नहीं है। आदमी साइकोसोमेटिक है, या सोमेटोसाइकिक है। आदमी मनस-शरीर है, या शरीर-मनस है।

मेरी दृष्टि में, आत्मा का जो हिस्सा हमारी इंद्रियों की पकड़ में आ जाता है उसका नाम शरीर है और आत्मा का जो हिस्सा हमारी इंद्रियों की पकड़ के बाहर रह जाता है उसका नाम आत्मा है। अदृश्य शरीर का नाम आत्मा है, दृश्य आत्मा का नाम शरीर है। ये दो चीजें नहीं हैं, ये दो अस्तित्व नहीं हैं, ये एक ही अस्तित्व की दो विभिन्न तरंग-अवस्थाएं हैं।

असल में दो, द्वैत, डुआलिटी की धारणा ने मनुष्य-जाति को बड़ी हानि पहुंचाई। सदा हम दो की भाषा में सोचते रहे और मुसीबत हुई। पहले हम सोचते थे: मैटर और एनर्जी। अब हम ऐसा नहीं सोचते। अब हम यह नहीं कहते कि पदार्थ अलग और शक्ति अलग। अब हम कहते हैं, मैटर इज़ एनर्जी। अब हम कहते हैं, पदार्थ ही शक्ति है। सच तो यह है कि यह पुरानी भाषा हमें दिक्कत दे रही है। पदार्थ ही शक्ति है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है। कुछ है, एक्स, जो एक छोर पर पदार्थ दिखाई पड़ता है और दूसरे छोर पर एनर्जी, शक्ति दिखाई पड़ता है। ये दो नहीं हैं। ये एक ही ऊर्जा, एक ही अस्तित्व के दो छोर हैं।

ठीक वैसे ही आदमी का शरीर और उसकी आत्मा एक ही अस्तित्व के दो छोर हैं। बीमारी दोनों छोरों में किसी भी छोर से शुरू हो सकती है। शरीर के छोर से शुरू हो सकती है और आत्मा के छोर तक पहुंच सकती है। असल में जो शरीर पर घटित होता है, उसके वाइब्रेशंस, उसकी तरंगें आत्मा तक सुनी जाती हैं।

इसलिए कई बार यह होता है कि शरीर से बीमारी ठीक हो जाती है और आदमी फिर भी बीमार बना रह जाता है। शरीर से बीमारी विदा हो जाती है और डॉक्टर कहता है कि कोई बीमारी नहीं है और आदमी फिर भी बीमार रह जाता है और बीमार मानने को राजी नहीं होता कि मैं बीमार नहीं हूं। चिकित्सक के जांच के सारे उपाय कह देते हैं कि अब सब ठीक है, लेकिन बीमार कहे चला जाता है कि सब ठीक नहीं है। इस तरह के बीमारों से डॉक्टर बहुत परेशान रहते हैं, क्योंकि उनके पास जो भी जांच के साधन हैं वे कह देते हैं कि कोई बीमारी नहीं है।

लेकिन कोई बीमारी न होने का मतलब स्वस्थ होना नहीं है। स्वास्थ्य की अपनी पाजिटिविटी है। कोई बीमारी का न होना सिर्फ निगेटिव है। हम कह सकते हैं कि कोई कांटा नहीं है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि फूल है। कांटा नहीं है, इससे सिर्फ इतना ही पता चलता है कि कांटा नहीं है। लेकिन फूल का होना कुछ बात और है।

लेकिन चिकित्सा-शास्त्र अब तक, स्वास्थ्य क्या है, इस दिशा में कुछ भी काम नहीं कर पाया है। उसका सारा काम इस दिशा में है कि बीमारी क्या है। तो अगर चिकित्सा-शास्त्र से हम पूछें--बीमारी क्या है? तो वह परिभाषा करता है, डेफिनीशन करता है। उससे पूछें कि स्वास्थ्य क्या है? तो वह धोखा देता है। वह कहता है, जब कोई बीमारी नहीं होती तो जो शेष रह जाता है वह स्वास्थ्य है। यह धोखा हुआ, यह परिभाषा नहीं हुई। क्योंकि बीमारी से स्वास्थ्य की परिभाषा कैसे की जा सकती है? यह तो वैसे ही हुआ जैसे कांटों से कोई फूल की परिभाषा करे। यह तो वैसे ही हुआ जैसे कोई मृत्यु से जीवन की परिभाषा करे। यह तो वैसे ही हुआ जैसे कोई अंधेरे से प्रकाश की परिभाषा करे। यह तो वैसे ही हुआ जैसे कोई स्त्री से पुरुष की परिभाषा करे या पुरुष से स्त्री की परिभाषा करे।

नहीं, चिकित्सा-शास्त्र अब तक नहीं कह पाया--व्हाट इज़ हेल्थ? स्वास्थ्य क्या है? वह इतना ही कह सकता है--व्हाट इज़ डिज़ीज? बीमारी क्या है? स्वभावतः, उसका कारण है। उसका कारण यही है कि चिकित्सा-शास्त्र बाहर से पकड़ता है। बाहर से बीमारी ही पकड़ में आती है। वह जो भीतर है मनुष्य का आंतरिक अस्तित्व, वह जो इनरमोस्ट बीइंग, वह जो भीतरी आत्मा, स्वास्थ्य सदा वहीं से पकड़ा जा सकता है।

इसलिए हिंदी का स्वास्थ्यशब्द बहुत अदभुत है। अंग्रेजी का हेल्थशब्द स्वास्थ्यका पर्यायवाची नहीं है। हेल्थ तो हीलिंग से बना है, उसमें बीमारी जुड़ी है। हेल्थ का तो मतलब है हील्ड--जो बीमारी से छूट गया। स्वास्थ्य का मतलब यह नहीं है कि जो बीमारी से छूट गया। स्वास्थ्य का मतलब है जो स्वयं में स्थित हो गया--दैट वन हू हैज रीच्ड टु हिमसेल्फ, वह जो अपने भीतर गहरे से गहरे में पहुंच गया। स्वस्थ का मतलब है, स्वयं में जो खड़ा हो गया। इसलिए स्वास्थ्य का मतलब हेल्थ नहीं है।

असल में दुनिया की किसी भाषा में स्वास्थ्य के मुकाबले कोई शब्द नहीं है। दुनिया की सभी भाषाओं में जो शब्द है वे डिज़ीज या नो-डिज़ीज के पर्यायवाची हैं। स्वास्थ्य की धारणा ही हमारे मन में बीमार न होने की है। लेकिन बीमार न होना जरूरी तो है स्वस्थ होने के लिए, पर्याप्त नहीं है; इट इज़ नेसेसरी बट नॉट इनफ--कुछ और भी चाहिए।

वह दूसरे छोर पर वह जो हमारे भीतर हमारा अस्तित्व है, वहां से कुछ हो सकता है। बीमारी बाहर से शुरू हो, तो भी भीतर तक उसकी प्रतिध्वनियां पहुंच जाती हैं। अगर मैं शांत झील में एक पत्थर फेंक दूं, तो जहां पत्थर गिरता है, चोट वहीं पड़ती है, लेकिन तरंगें दूर झील के तटों तक पहुंच जाती हैं, जहां पत्थर कभी नहीं पड़ा।

ठीक जब हमारे शरीर पर कोई घटना घटती है, तो तरंगें आत्मा तक पहुंच जाती हैं। और अगर चिकित्सा-शास्त्र सिर्फ शरीर का इलाज कर रहा है, तो उन तरंगों का क्या होगा जो दूर तट पर पहुंच गईं? अगर हमने पत्थर फेंका है झील में और हम उसी जगह पर केंद्रित हैं जहां पत्थर गिरा और पानी में गड्ढा बना, तो उन तरंगों का क्या होगा जो कि पत्थर से मुक्त हो गईं, जिनका अपना अस्तित्व शुरू हो गया?

जब एक आदमी बीमार पड़ता है तो शरीर चिकित्सा के बाद भी बीमारी से पैदा हुई तरंगें उसकी आत्मा तक प्रवेश कर जाती हैं। इसलिए अक्सर बीमारी लौटने की जिद्द करती है। बीमारी की लौटने की जिद्द उन तरंगों से पैदा होती है जो उसकी आत्मा के अस्तित्व तक गूंज जाती हैं और जिनका चिकित्सा-शास्त्र के पास अब तक कोई उपाय नहीं है। इसलिए चिकित्सा-शास्त्र बिना ध्यान के सदा ही अधूरा रहेगा। हम बीमारी ठीक कर देंगे, बीमार को ठीक न कर पाएंगे। वैसे डाक्टर के हित में है यह कि बीमार ठीक न हो। बीमारी भर ठीक होती रहे, बीमार लौटता रहे!

दूसरा जो छोर है, वहां से भी बीमारी पैदा हो सकती है। सच तो यह है कि मैंने कहा कि वहां बीमारी है ही, जैसे मनुष्य है। जैसा मनुष्य है, वहां एक टेंशन है ही भीतर। जैसा मैंने कहा कि कोई पशु इस तरह डिस-ईज्ड नहीं है, इस तरह रेस्टलेस नहीं है, इस तरह बेचैन और तनाव में नहीं है। उसका कारण है--कि किसी पशु के मस्तिष्क में बिकमिंग का, होने का कोई खयाल नहीं है। कुत्ता कुत्ता है। उसे होना नहीं है। आदमी को आदमी होना है, है नहीं। इसलिए हम किसी कुत्ते से यह नहीं कह सकते कि तुम थोड़े कम कुत्ते हो। सब कुत्ते बराबर कुत्ते होते हैं। लेकिन किसी आदमी से संगत रूप से कह सकते हैं कि आप थोड़े कम आदमी हैं।

आदमी पूरा पैदा नहीं होता। आदमी का जन्म अधूरा है। सब जानवर पूरे पैदा होते हैं। आदमी अधूरा पैदा होता है। कुछ काम है जो उसे करना पड़ेगा, तब वह पूरा हो सकता है। वह जो पूरा न होने की स्थिति है, वह उसकी डिज़ीज़ है। इसलिए वह चैबीस घंटे परेशान है।

ऐसा नहीं है, आमतौर से हम सोचते हैं कि एक गरीब आदमी परेशान है, क्योंकि गरीबी है। लेकिन हमें पता नहीं कि अमीर होने से परेशानी का तल बदलता है, परेशानी नहीं बदलती। सच तो यह है कि गरीब इतना परेशान कभी होता ही नहीं जितना अमीर परेशान हो जाता है। क्योंकि गरीब को एक तो जस्टीफिकेशन होता है परेशानी का--कि मैं गरीब हूं। अमीर को वह जस्टीफिकेशन भी नहीं रह जाता। अब वह कारण भी नहीं बता सकता कि मैं परेशान क्यों हूं? और जब परेशानी अकारण होती है, तब परेशानी भयंकर हो जाती है। कारण से राहत मिलती है, कंसोलेशन मिलता है, क्योंकि कारण से यह भरोसा होता है कि कल कारण को अलग भी कर सकेंगे। लेकिन जब कोई बीमारी अकारण खड़ी हो जाती है तब कठिनाई शुरू हो जाती है।

इसलिए गरीब मुल्कों ने बहुत दुख सहे हैं; जिस दिन वे अमीर होंगे उस दिन उनको पता चलेगा कि अमीर मुल्कों के अपने दुख हैं। हालांकि मैं पसंद करूंगा, गरीब के दुख की बजाय अमीर का दुख ही चुनने योग्य है। जब दुख ही चुनना हो तो अमीर का ही चुनना चाहिए। लेकिन तीव्रता बेचैनी भी बढ़ जाएगी। आदमी परेशान है। वह नई परेशानी खोज लेता है। वह जो उसके भीतर एक अस्तित्व है, वह चैबीस घंटे मांग कर रहा है उसकी जो नहीं है। जो है, वह रोज बेकार हो जाता है। जो मिल जाता है, वह बेकार हो जाता है। जो नहीं है, वह आकर्षित करता है। वह जो नहीं है, उसको पाने की निरंतर चेष्टा है।

इस पूरे होने की आतुरता से सारे धर्म पैदा हुए। और यह जानना उपायोगी होगा कि एक दिन धर्मगुरु और चिकित्सक पृथ्वी पर एक ही आदमी था। धर्मगुरु ही चिकित्सक था, पुरोहित ही चिकित्सक था। वह जो प्रीस्ट था, वही डाक्टर था। और आश्चर्य न होगा कि कल फिर स्थिति वही हो जाए। थोड़ा सा फर्क होगा। अब जो चिकित्सक होगा वही पुरोहित हो सकता है! सवाल सिर्फ शरीर का नहीं है। बल्कि यह भी साफ होना शुरू हो गया है कि अगर शरीर बिलकुल स्वस्थ हुआ तो मुसीबतें बहुत बढ़ जाएंगी, क्योंकि पहली दफे भीतर के छोर पर जो रोग हैं, उनका बोध शुरू हो जाएगा।

हमारे बोध के भी तो कारण होते हैं। अगर मेरे पैर में कांटा गड़ा होता है तो मुझे पैर का पता चलता है। जब तक कांटा पैर में न हो, पैर का पता नहीं चलता। और जब पैर में कांटा होता है तो मेरी पूरी आत्मा एरोड हो जाती है, तीर बन जाती है पैर की तरफ। वह सिर्फ पैर को ही देखती है, कुछ और नहीं देखती--स्वाभाविक। लेकिन पैर से कांटा निकल जाए, फिर भी आत्मा कुछ तो देखेगी। भूख कम हो जाए, कपड़े ठीक मिल जाएं, मकान व्यवस्थित हो जाए, जो पत्नी चाहिए वह मिल जाए आदि-आदि 


मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016

प्राकर्ति ही उपचारक है

प्राकर्ति ही उपचारक है। 

प्रत्येक मनुष्य के अन्दर एक अद्भुत शक्ति होती है। जिससे वह जीवन यापन करता है। ओर जब तक वो शक्ति काम करती है, हम स्वास्थ्य रहेते है। इस शक्ति को ईस्वर, परमात्मा, आत्मा, आदि नमो से जाना जाता है। वोही हमारे शरीर को चलती है, रोगी करती है, ओर फिर स्वाश्थ्य प्रदान करती है।
जब हमारी गलत आदतों की वजह से व अप्राकृतिक आहार के कारण शरीर में विजातीय तत्व जमा हो जाते है, तो प्राकृति स्वयं उनको निकलकर उपचार करती है। अगर हम प्राकृति के कार्यो में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं डाले तो वह हमारे शरीर को स्वस्थ कर देती है।



कोई भी दवा रोगी को ठीक नहीं करती है। ठीक तो प्राकृति को ही करना होता है। जब हड्डी टूट जाती है, तो एक जगह रोकने से फिर से जुड जाती है। ऐसे ही जब पेट खराब होता है, तो दस्त या उल्टी लगती है, ओर पेट सही हो जाता है। इस प्रकार सभी रोंगों का उपचार प्राकृति खुद करती है। हमको केवल प्राकृति के उपचार के तरीके को समझकर उसका सहयोग करना मात्र है, ओर जेसे ही हम उसके उपचार में सहयोग करते है हम निरोगी हो जाते है। इस प्रकार जिसको हम रोंग कहेते है वो प्राकृति का उपचार है।

प्राकर्तिक चिकित्सा

भारत मे पहली बार  प्राकर्तिक चिकित्सा का सर्टिफिकेट कोर्स
स्वास्थ्य क्रांति -: आज 21वीं सदी का एक दशक बीत चुका है। आने वाला समय जरूरी है, स्वास्थ्य क्रांति के लिए, स्वास्थ रहने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति में होती है। और हम स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता के शुरुआती दौर में हैं। क्योंकि अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि हम जो पसंद कर रहे हैं, वह हमारे शरीर पर व स्वास्थ्य पर क्या असर डाल रहा है, और जो हमें लाभकारी है, वह क्या है। हम वही स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने जा रहे हैं। हम लोगों को उनके स्वास्थ्य के प्रति सहयोगी प्राकृतिक उपचार, खानपान, दिनचर्या, रात्रि चर्या, आदि को इस कोर्स के द्वारा विस्तार से बताएंगे। साथ ही साथ हम उन गलतियों का भी एहसास कराएंगे, जिसके कारण हमारा शरीर रोगी होता जा रहा है। हम बीमार कैसे हो रहे हैं। ओर कैसे हम दीर्घ स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं। यह सब इस कोर्स में बताएंगे।

आज हम इस युग में एक नई स्वास्थ्य क्रांति करने जा रहे हैं। जिसमें आप शामिल होकर अग्रणी भूमिका निभाऐगें। आज सरकार स्वास्थ्य पर एक अच्छा खासा बजट देती है। परंतु क्या वह स्वास्थ्य पर खर्च हो रहा है। यह सोचनीय विषय है। जो खर्च हम बीमार होने पर स्वस्थ होने के लिए कर रहे हैं, वह स्वस्थ रहने पर (रोगी ही न हो पर) क्यों नहीं कर रहे। आज स्वास्थ्य के नाम पर किया जाने वाला खर्च बीमारीयों पर सामान्य से कैंसर तक प्रतिक्रियात्मक उत्पाद एवं सेवाएं उपलब्ध कराना है। यह उत्पाद बीमारी के लक्षणों को खत्म करते हैं या फिर दवा देते हैं। परन्तु बीमारी खत्म नही हो पाती ओर दवाईयां बन्द करने के कुछ समय बाद दुबारा वही लक्षण पैदा हो जाते है। या फिर कुछ रोंगो मे (मधुमेह, बीपी, ह्रदय रोंगो में) हम जीवन भर दवाईयां खाते है ओर रोंग खत्म होने की जगह बढ़ते जाते है। साथ-साथ दवाईयां भी बढ़ती जाती है।


परंतु आज जरूरत है ऐसे स्वास्थ्य, ऐसे उत्पाद, और सेवाओं की जिससे हम बीमार ही ना पड़े। हमारी बढ़ती उम्र का असर धीमा हो जाए, और कोई भी बीमारी शुरुआती दौर में ही खत्म हो जाए। यह तभी संभव है, जब हमें पता हो, कि बीमारी कैसे पैदा हो रही है। हम कैसे उसको रोक सकते हैं। कैसे हम उससे बच सकते हैं। वह कौन से तरीके हैं, जो जीवन को आरामदायक एवं आनंदित बना सकते हैं। जिनसे हम जीवन की गुणवत्ता व दीर्घ आयु प्राप्त कर सकते है।
बीमा कंपनियां भी आज स्वास्थ्य बीमा कर रही हैं। कि अगर बीमार हो गए, तो पैसा हम देंगे, नई-नई दवाइयों के आने से क्या रोग रुक रहे हैं। आज जितने हास्पिटल बढ़ रहे हैं, उतने ही मरीज भी तैयार हो रहे हैं क्यों, क्योंकि हम बीमारी के बाद स्वास्थ्य के बारे में सोचते हैं। स्वस्थ रहने पर उसे स्थाई रखने की कोशिस नही करते, और जानबूझकर उसे बिगड़ने देते हैं। या यूं कहें कि रोगों का पता हमें शुरू से होता है। जब रोग पहली दस्तक देता है। तो हम जानते हैं कि शरीर में कुछ असहज हो रहा है। परंतु हम उस असहजता को नजरअंदाज करते जाते हैं। और जब वह रोंग बड़ा बनकर उभरता है। तो ठीक होना चाहते हैं क्यों। क्योंकि हमें जानकारी नहीं है। यही है स्वास्थ क्रांति, कि हम स्वस्थ रहने की ओर अग्रसर हो, ना कि रोगों को ठीक करने के लिऐ।



आज प्राकृतिक चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, सुजोक, जल चिकित्सा, मड चिकित्सा, योग चिकित्सा, रेकी हीलिंग, जैसी 150 से भी जायेंदा वैकल्पिक चिकित्सा अपना अस्तित्व बनाने में लगी हुई है। जो मनुष्य को स्वास्थ्य प्रदान कर रही है। लोगों में दिन-प्रतिदिन जागरुकता बढ़ रही है, और यह स्वास्थ्य चेतना भी हमारे जीवन को निश्चित रूप से बदलने में सक्षम होगी। हमें आज जरुरत है पंचतत्व को जानने की, उनके प्रयोग की, हमारा शरीर पूर्ण रूप से पंच तत्वों के सहयोग व ऊर्जा (आत्मा चेतना आदि) के सहयोग से बना है। और उसी की कमी या अधिकता से रोगी भी होता है। हम कोर्स में प्रत्येक तत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे और उनकी पूर्ति कैसे करनी है, कमी होने पर क्या क्या रोग होते हैं, अधिक होने पर क्या क्या रोग होते हैं। उनका संतुलन कैसे रख सकते हैं। यदि हमने यह जान लिया तो निश्चित ही हम स्वास्थ्य रक्षक बन जाएंगे स्वयं के भी और दूसरों के भी, इसके लिए आज से ही स्वास्थ्य क्रांति की ओर बड़े और जन स्वास्थ्य रक्षक बने तथा दूसरों को भी स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करें यही उद्देश्य है इस स्वास्थय क्रांति का इस प्राकृत चिकित्सा के कोर्स का।

प्राकर्तिक चिकित्सा

भारत मे पहली बार  प्राकर्तिक चिकित्सा का सर्टिफिकेट कोर्स

" कल्पांत रेकी साधना कोर्स की सफलता के बाद अब प्राकर्तिक चिकित्सा में 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स Whatsapp ओर Hike पर "
हम आपको प्राकर्तिक चिकित्सा का 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स करा रहे हैं। जिसमे आप स्वयं के डाक्टर बन जाते है। ओर सभी साध्य व असाध्य रोंगों का उपचार बिना दवा के प्राकर्तिक तरीके से कर पायेंगें। आपके लिये कुछ सवाल

1. क्या आपका घर मैडिकल स्टोर बनता जा रहा है ? (हाँ/नही)
2. क्या आपके दिन की शुरूआत दवाईयों से होती है ? (हाँ/नही)
3. क्या आप दवाईयाँ खाकर ठीक नही हो रहें है ? (हाँ/नही)
4. क्या आपके रोग बढ़तें जा रहें है ? (हाँ/नही)
5. क्या आप कम खाते हुए भी मोटे होते जा रहें है ? (हाँ/नही)
6. क्या आपका योग करते हुऐ भी बी पी सन्तुलित नही हो पा रहा है ? (हाँ/नही)
7. क्या आपका तनाव बढ़ता जा रहा है ? (हाँ/नही)
8. क्या तीनो समय खाना खाने के बाद भी आपको कमजोरी महसूस होती है ? (हाँ/नही) 
9. क्या दिन-प्रतिदिन हास्पिटलों व बिमारियों की संख्या बढ़ रही है ? (हाँ/नही
10. क्या दैनिक जीवन में हम जहरीले रसायनों व खाद्वो का प्रयोग कर रहें है ? (हाँ/नही)
11. क्या आज प्रत्येक खाद्व पदार्थो मे मिलावटें बढ़ती जा रही है ? (हाँ/नही)
12. क्या हमारें शरीर को जरूरी पोषक तत्वो (विटामिन,खनिज तत्व,आदि) की पूर्ती नही हो पा रही है ? (हाँ/नही) 
13. क्या आपकी रोग प्रतिरोध क्षमता कम होती जा रही है ? (हाँ/नही)
14. क्या आप कम उम्र मे भी बुड़े नजर आने लगें है ? (हाँ/नही)
15. क्या आपको लगता है कि जिन रोगो सें आप जूझ रहें हे उन्हें ठीक नही कर पायेंगें ? (हाँ/नही) 
16. क्या आप वजन कम करने के प्रति गंभीर है ? (हाँ/नही)
17. क्या आपकी एक अच्छे स्वस्थ मे रूचि है ? (हाँ/नही)
18. क्या आप दवाईयो को जीवन मे कम करना चाहते है ? (हाँ/नही)
19. क्या आप क्रोध, भय, चिन्ता, तनाव से मुक्त व ऊर्जावान जीवन जीना चाहते है ? (हाँ/नही)
20. क्या आपको लगता है कि आप अपने रोगो को ठीक नही कर पायेगे ? (हाँ/नही)
21. क्या आप अपने स्वस्थ को केवल 1 घंण्टा देने के लिऐ तैयार है ? (हाँ/नही)

यदि आपके अधिकतर सवालो का जबाव (हाँ) है। तो आप हमारे प्राकर्तिक चिकित्सा का सर्टिफिकेट कोर्स करें। जिसमे आपको इन सब सवालो के जबाव व अधिक स्वस्थ रहने के तरीको के बारे में जान पायेंगें, ओर आप स्वयं स्वस्थ रहकर परिवार को स्वस्थ रख पायेगें।

आज एलोपैथी के उपचार से हम अपनी जीवनी शक्ति को खोते जा रहे है, ओर इतनी मेडिसन लेते हुए भी स्वस्थ नहीं हो पा रहे है, ओर रोंग ठीक होने की जगह बड़ते जा रहे है, दवाईयां कम होने की जगह निरंतर बढती जा रही है, दवाईयों व रोंगों से छुटकारा पाने के लिये प्राकर्तिक चिकित्सा का कोर्स बनाया गया है, हमारा शरीर पांच पंचतत्व व छठा चेतन तत्व (आत्म तत्व) से मिलकर बना है, ओर इन्ही तत्वों के द्वारा हम शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ रख सकते है, हमारे शरीर में वो जीवनी शक्ति है जिसके द्वारा हम स्वयं रोंगों को ठीक कर सकते है, प्राकर्तिक चिकित्सा हमें वो जीवन शेली देती है जिससे हम रोंगों को तो ठीक करते ही है साथ ही साथ आने वाले रोंगों से भी बच जाते है, ओर एक बार कोर्स करके आप लाखो रूपये की सर्जरी व दवाईयों से बच जायेंगें।

इस कोर्स में प्राकर्तिक चिकित्सा का इतिहास क्या है, प्राकर्तिक चिकित्सा क्या है, प्राकर्तिक चिकित्सा के सिद्धांत क्या है, पंच तत्व क्या है, उनसे किस प्रकार चिकित्सा की जाती है, असाध्य रोंगों का उपचार बिना दवा के केसे करे, विभिन्न स्त्री, पुरुष, बच्चों के रोंग व सामान्य रोंगों के लक्षण कारण व उपचार, जल तत्व चिकित्सा, वायु तत्व चिकित्सा, आकाश तत्व चिकित्सा, मिटटी तत्व चिकित्सा, अग्नि तत्व चिकित्सा के बारे में विस्तार से जानेंगें। 

यह पूरा कोर्स Whatsapp ओर Hike पर होगा। हम आपको नोट्स भेजेंगे और आपको निरंतर उनको पढ़ना होगा। 6 महीने बाद आपको एक एग्जाम पेपर पीडीऍफ़ में दिया जायेगा उसको हल करके मुझे कोरियर करना होगा, ओर आपको प्राकर्तिक चिकित्सा का सर्टिफिकेट आपके पते पर भेंज दिया जायेंगा। जो आत्मजन कोर्स करना चहाते है उन्है 5100 रू जमा करने होगें। रू जमा करते ही आपको एक फार्म पीडीएफ मे दिया जायेंगा। आपको उसे डाउनलोड कर भरकर तीन फोटो के साथ कोरियर करना होगा। ओर साथ ही आपका कोर्स शुरू कर दिया जायेगा।

कोर्स पूरा होने के बाद जो आत्मजन प्रयोगात्मक ट्रेनिग की इच्छा रखते है उन्हें एक दिवसीय ट्रेनिग हमारे केंद्र कल्पांत सेवाश्रम मुरादनगर गाजियाबाद पर 1000 रू जमा कर प्रदान की जाएगी।

अधिक जानकारी के लिए "9958502499" पर संपर्क करें

हमारा उद्देश्य -:  आज विश्व में एलोपेथिक इलाज की पद्धति, वैज्ञानिक अनुसंधान, निदान तकनीकी और औषधियों (अंग्रेजी) ने यूं तो मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का साहस जुटाया है, और आकस्मिक बीमारियों व दुर्घटनाओं के आपातकालीन ईलाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को भी साबित किया है। बाल मृत्यु दर को कम किया है। महिलाओं की प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु दर को भी घटाया है। असाध्य और गंभीर रोंगों से शायद एलोपैथी मुक्ति तो नहीं दिला सकी परंतु उस पर नियंत्रण अवश्य प्राप्त किया है। मनुष्य की औसत आयु को बढ़ाने में भी एलोपैथिक औषधिय इलाज लाभदायक सिद्ध हो रहे हैं, वही रोंगों को दीर्घकालिक व आसाध्य बनाने में अपनी नकारात्मक भूमिका अदा करना भी शायद एलोपैथिक चिकित्सक की अपनी मजबूरी है।

खानपान, जीवन शैली के असिमित बदलावों मैं आज मात्र भारतीय नागरिकों को ही नहीं वरन संसार के संपूर्ण मानव जाति को तमाम ऐसे विभिन्न रोगों से ग्रस्त कर लिया है जिसका निदान किसी भी पद्धति मैं नहीं है। जेसे (केंसर व एडस)। दुधारु पशुओं को दिए जाने वाले हार्मोन, पशु चारे में उपलब्ध केमिकल, विषैले रसायन, फल, सब्जी व अन्न में लगी खाद पेस्टिसाइड कीटनाशक, कीटाणुनाशक, फुई फफूंद नासक अपने विषैले साइड इफेक्ट मानव शरीर पर दिन-प्रतिदिन डाल रहे हैं। यातायात के साधन, उच्च शिक्षा, पक्के बहु मंजिला मकान, दो पहिऐ व चार पहिया वाहन और टेलीविजन से जुड़ी विलासिता ने भारतीय शहरी नागरिकों को दिनप्रतिदिन मानव श्रम से दूर कर दिया है, जिससे शरीर के समस्त हड्डी के जोड़ व  मांसपेशियों के साथ तंत्रिका तंत्र भी शिथिल होता जा रहा है। जिसके कारण रक्त  परिसंचरण तंत्र, शवसन तंत्र, पाचन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, ज्ञान इन्द्विय तंत्र, जननेद्विय तंत्र व चिंतन तंत्र को दूषित कर दिया है। बाकी बचा हुआ नुकसान वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण ने शरीर में विसंगतियो को उत्पन्न कर पूरे मानव शरीर के सिस्टम को अस्त-व्यस्त कर दिया है और अधिकांश युवा अवस्था से ही किसी न किसी जटिल रोंग से (मधुमेह, ह्रदय, व सैक्स रोंग) जीवन यापन कर रहे हैं। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति जो बिना रसायनिक औषधियों पर या यूँ कहे बिना औषधियों पर आधारित है, उसका महत्ब दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इसी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक चिकित्सा का यह कोर्स तैयार किया गया है। इसको करके आप स्वयं को व परिवार को स्वास्थ्य प्रदान कर सकते है।

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

संयोग विरुध आहार

*कुछ सूत्र जो याद रखे.....!* *एक साथ नहीं खानी चाहिए:*

⚫-चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए। दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है।

⚫-सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी।

⚫-दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही ,नमक, इमली, खरबूजा, बेल, नारियल, मूली, तोरई, तिल ,तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।

⚫-दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए।

⚫-गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए।

⚫-ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं।

⚫-शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं।

⚫-खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी , कटहल कभी नहीं।

⚫-घी के साथ बराबर मात्र1 में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा।

⚫-तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं।

⚫-चावल के साथ सिरका कभी नहीं।

⚫-चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं।

⚫-खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं।

*कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे:*

⚫-खरबूजे के साथ चीनी

⚫-इमली के साथ गुड

⚫-गाजर और मेथी का साग

⚫-बथुआ और दही का रायता

⚫-मकई के साथ मट्ठा

⚫-अमरुद के साथ सौंफ

⚫-तरबूज के साथ गुड

⚫-मूली और मूली के पत्ते

⚫-अनाज या दाल के साथ दूध या दही

⚫-आम के साथ गाय का दूध

⚫-चावल के साथ दही

⚫-खजूर के साथ दूध

⚫-चावल के साथ नारियल की गिरी

⚫-केले के साथ इलायची

*कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण हम ज्यादा बहुत ज्यादा खा लेते हैं। ऎसी चीजो के बारे में बताते हैं जो अगर आपने ज्यादा खा ली हैं तो कैसे पचाई जाएँ ----*

⚫-केले की अधिकता में दो छोटी इलायची

⚫-आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और गुड

⚫-जामुन ज्यादा खा लिया तो ३-४ चुटकी नमक

⚫-सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम

⚫-खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत

⚫-तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग

⚫-अमरूद के लिए सौंफ

⚫-नींबू के लिए नमक

⚫-बेर के लिए सिरका

⚫-गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो ३-४ बेर खा लीजिये

⚫-चावल ज्यादा खा लिया है तो आधा चम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये

⚫-बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च

⚫-मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये

⚫-बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं

⚫-खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये

⚫-मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं

⚫-इमली या उड़द की दाल या मूंगफली या शकरकंद या जिमीकंद ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये

⚫-मुंग या चने की दाल ज्यादा खाये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये

⚫-मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये

⚫-घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं

⚫-खुरमानी ज्यादा हो जाए तो ठंडा पानी पीयें

⚫-पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये

*अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये ,८०% बीमारियों से बचे.

नवरात्रों में उपवास का महत्व

नवरात्रों में उपवास का महत्व
            भारत वर्ष मे सभी धर्मो मे उपवास को महत्वपूर्ण माना गया हैं। हिन्दु धर्म में वर्ष मे दो बार नवरात्र व महीने मे एकादशी अमावस्या व पूर्णिमा व्रत रखे जाते हैं, इसके अलावा कुछ लोग साप्ताहिक व्रत भी रखते हैं। उपवास दो शब्दो से मिलकर बना हैं, उप-ऊपर या समीप एवं वास-निवास करना अर्थात आत्म स्थित स्वं में स्थित होना उपवास हैं। उपवास के समय जीवनी शक्ति जो परमात्मा का अंश हैं बिना किसी रूकावट के सुचारू रूप से कार्य करती हैं तथा शरीर व मन दोनो की शुधि होती हैं।
        प्राचिन समय मे उपवास स्वास्थ्य प्राप्ति के लिये बनाये गये थें। फिर हमारें ऋषि मुनियों ने इन्हें धर्म के साथ जोंड़ दिया जिससे आस्था के साथ लोगो को स्वास्थ्य लाभ मिलता रहें, परन्तु आज के समय मे मनुष्य ने उपवास को स्वार्थ सिधि का साधन मान लिया हैं। साथ ही यह केवल परम्परा व रिवाज बन कर रहे गये हैं।
         क्योंकि आज उपवास के नाम पर कुटू आटा, आलू की पकोड़ी, इत्यादि गरिष्ट पदार्थ ओर अब तो फास्ट फूड भी सेवन किया जाता हैं, जिससे स्वास्थ्य खराब हो जाता हैं। स्वाद के लिये विभिन्न प्रकार के व्यंजन प्रयोग करे जाते हैं। परन्तु यदि हम स्वास्थ्य की दृष्टि से नवरात्रों का पालन करें तो दैवीय शक्ति तो प्राप्त होगी ही ओर शरीर का शोधन भी हो जायेगा
        हमारें ऋषि मुनियों ने उपवास को नवरात्रो के साथ इसी लिये जोंड़ा जिससे छः महीने तक भोजन करने से हमारे शरीर मे जो दूषित पदार्थ इक्ठठे होते हैं वह नौ दिन के उपवास से शरीर के बहार निकल जायें ओर शरीर उस विष से उत्पन्न होने वाले रोगो से बच जाये।
       ओर इन दिनो होने वाले हवन यज्ञ से घर का वातावरण भी शुद्ध हो जाता हैं तथा उपवास करने से शरीर के पाचन संस्थान को भी विश्राम मिल जाता हैं। जिससे पाचन अंगों को शक्ति प्राप्त होती हैं व उदर सबंधी सभी रोग ठीक हो जाते हैं ओर सात्विक विचारो की वृद्वि होती हैं जिससे हम अन्नत आंनद प्राप्त करते हैं व उस दैवीय शक्ति को प्राप्त कर अपनी इच्छाओ को भी पूरा कर लेते हैं।
       उपवास का सही तरीका केवल पानी का सेवन करना हैं यदि हमें उदर रोग हैं तो गर्म पानी का प्रयोग करें अगर कमजोरी, एनिमिया, शुगर, या बृद्व अवस्था हो तो या तो उपवास करे ही नही या किसी डाक्टर की देखरेख मे फलो का रस, फल, डाई फुट, आदि के उचित प्रयोग के द्वारा करे जिससे स्वास्थ्य भी प्राप्त हो एवं आंनद भी मिले।
       साथ में उचित विश्राम व शिथिलीकरण के साथ चिदआकाश धारणा के द्वारा दैवी की आराधना कर उसे प्रकट कर अध्यात्मिक लाभ प्राप्त करे एवं सत्य का अनुभव कर आनंद को प्राप्त करें ओर शारीरिक, मानसिक, आत्मिक शान्ति को प्राप्त हो।

                                                                    (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी Mob.9958502499)