गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

कल्पान्त ध्यान साधना द्वितीय क्रिया

कल्पान्त ध्यान साधना द्वितीय क्रिया

द्वितीय क्रिया - : आप अब लगातार प्रथम क्रिया कर रहे है । ओर आपको बहुत से अनुभव भी हो रहे है। कुछ आत्मजनो को बहुत अच्छे अनुभव हो रहे है। कुछ को कम, पर अनुभव सब कर रहे है। कुछ के शारिरिक रोग कम हो रहे है तो कुछ के। मानसिक रोग, ओर कुछ को आनंद की हल्की सी अनुभूति हुई है, पर कुछ को कुछ समस्याऐ भी आ रही है क्योकि आप पहली बार कुछ अलग कर रहै है जिसमे आपको कुछ करना नही होता है। परन्तु आपकी प्रत्येक समस्या का व जिज्ञासा का पर्सनल समाधान Whatsapp पर किया जा रहा है। अब आप थोड़ा सा आगे बढ़ रहे है द्वितिय क्रिया के लिये , इसमे आपको तेजी से अनुभव होगें।ओर आधिक गहराईयो मे पहुँचकर पहले से हजारो गुना ज्यादा आंनद की अनुभुतियां  प्राप्त होगी। इसमे आपको प्रथम क्रिया को ही करना है पर तीन संकल्पओ को साथ में जोड़ना है
             आपको सबसे पहले एक जगह व समय तय करना है जहाँ आप बिना Disturbing के यह सब कर सके। अब आपको एकही जगह पर खडे होकर जोगिंग शुरू करनी है। 5-15 मिनट तक आप दौड़ सकते है। जिसकी जितनी क्षमता हो उतना करें , जब दौड़ना बस की न रहे तो आप पीठ के बल लेट जाइए और दोनों भुजाओं को शरीर के बगल में रखिए, दोनों हाथ शरीर से 6 इंच दूरी पर हो , तथा हथेलियां उपर की ओर खुली रखें। पैरों को एक दूसरे से थोड़ा दूर कर लें और आखों को बंद कर लीजिए। इसके बाद शरीर को ढीला छोड़ दीजिए।
                   साधना के दूसरा चरण मे प्रवेश करें इसमे आपको तीन संकल्प करने है। प्रथम संकल्प के लिए गहरा श्वास भरे रोके ओर दोहराये कि मे आँख नही खोलूंगा या खोलूंगी,ओर श्वास को निकाल दें, इसे तीन बार करे। फिर दूसरे संकल्प के लिए श्वास भरे रोके ओर दोहरये कि मे मुख से नहीं बोलूंगा या बोलूंगी, ओर श्वास निकाल दें। तीन बार इसे भी दोहराये। इसी प्रकार तीसरे संकल्प के लिए श्वास भरे रोके ओर दोहराये कि मे अब शरीर को नही हिलाऊगा या हिलाऊगी ओर श्वास निकाल दें। इसे भी तीन बार दोहराये। ध्यान रहे इनमे तीसरा संकल्प सबसे महत्वपूर्ण है, पूरी साधना इसी संकल्प पर टिकी हुई है। इस प्रकार पूरी आत्म शक्ति के साथ यह  संकल्प करे ओर तीसरे चरण मे प्रवेश करें। इस अवस्था में ये ध्यान रखिए कि आपको कुछ करना नहीं है ओर कुछ भी हो जाये आपको शरीर को हिलाना नही है।
                       आते हुए विचारों को रोकना नहीं है, ओर आपको किसी विचार पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं करनी है , जो महसूस हो उसे करते रहे पर आपनी बुद्बि का प्रयोग बिलकुल न करें न कुछ करने की कोशिश करें न ही ना करने की , आपको बस आँख बन्द करके लेटे रहना है अगर खुद कुछ हो तो उसे केवल महसूस करना है नहीं तो कुछ नही। 45-60 मिनिट आपको बस ऐसे ही लेटे रहना है। कुछ नही करना है। कभी भी जब समय मिले तब करें, कोई समय न हो तो केवल रात को सोने से पहले करे, जब क्रिया को बन्द करना हो चेतना मे वापस आना हो तो पहले दो गहरी श्वास भरे , हाथ पैर की अंगूलीयो मे हलचल करे, फिर हथेलीयों को रगड़ कर गर्म करें, आँखों पर लगाए, चेहरे पर लगाए, ओर धीरे धीरे आँखें खोलते हुये उठकर बैठ जाये।                                                                                     कोई नियम नही है। कोई बन्धन नही है। पूर्ण स्वतंत्र होकर करें, क्या होगा या कुछ होगा या नही यह न सोचे, बस करें, ओर जिसको कोई अनुभव हो वो पर्सनल मे मैसेज करें, ओर सभी को अपना अनुभव बताते रहना है । जिससे आपका सही मार्गदर्शन कर सकू
                     अगली क्रिया 40-120 दिन के अन्दर मिलेगी तब तक इसको करते रहै। अगर किसी को कुछ समझ न आया हो , कोई शंका हो, तो पर्सनल फोन करके पूछ ले, या मेरे पर्सनल नम्बर पर whatsapp  मैसेज करके पूछ ले,
ऊँ परमात्मा आपको सफलता दे। ओर जो भी सोचकर जो क्रिया को करै वो उसे प्राप्त हो , इसी शुभ आशीष के साथ स्वामी जगतेश्वर आनंद जी

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