शनिवार, 23 जुलाई 2016

मिठास मे घुलता जहर

                                                  मिठास मे घुलता जहर    
चीनी शक्कर हमारंे आहार का अभिन्न अंग बन चुकी है इसके बिना हम मिठास  की कल्पना भी नही कर सकते है हम परोक्ष या अपरोक्ष रुप मंे चीनी का सेवन करते है। शुगर रोगी भी कहते है हम फीकी चाय पीतें है परन्तु वह कितनी चीनी खा रहे है स्वयं भी नही जानते है जैसे चाय, काॅफी नीबू पानी, कोल्डडिंक, आईसक्रीम, मिठाईया, चाकलेट, टाफी, बिस्कुट, केक, रस, ब्रैड, विभिन्न शर्बत व ठडाई आदि अनेंक रुपो मे हम प्रतिदिन चीनी का सेवन कर रहे है। त्यौहारो के नाम पर तो मिठाईयो के भरमार हो जाती है, अनेक रगांे व फलेवर की मिठाईया बजारो मे खूब मिलती है, ओर हम बड़े स्वाद से उनका सेवन करते है परन्तु इस मिठास के साथ कितना रसायन शरीर मे पहँुच रहा है, कोई नही सोचता। यह रसायन शरीर मे पहँुच कर कितने गम्भीर रोगो का निर्माण कर रहे है, इसके बारे मे न तो बनाने वाला ओर न ही खाने वाला सोचता हैं।
    मीठा करने के लिए हम जिस चीनी का प्रयोग आज कर रहे है, उसका पहले यह स्वरुप न था लगभग 1940 तक अरसायनिक शक्कर बनती थी, जिसे भूरी शक्कर या खांडसारी कहा जाता था आज मिठाईयो में प्रयोग होने वाला मावा भी मिलावटी ज्यादा है, ओर ऊपर सें विभिन्न रगंांे का रसायन, इस प्रकार मिठाईयो के द्रारा विभिन्न रसायन शरीर मे जा रहे है      
          चीनी को बनाने मे सल्फर ड्राईआक्साइड, हाइड्रोजन पैराॅक्साईड, फार्मेल्डीहाईट, कैल्शियम आक्साईड, फास्फोरस पेंटाआक्साईड, फास्फोरिक एसिड विभिन्न पाॅलीमर जैसे रसायनो का प्रयोग होता है, जिनकी हल्की सी मात्रा भी शरीर मे पहँुचकर रक्त वाहनियो को सख्त कर देती है। जलन कोलाईटिस जलोदर डायबटीज डिप्रेसन हद्रय रोग आर्थराईटिस जोडो के दर्द विटामिन्स आदि की कमी शरीर मे हो जाती है           
        वनस्पति द्यी बनाते समय तेलो में कास्टिक सोडा वास किया जाता हैं एवं विभिन्न रसायनो के साथ तेलो को उच्चतापमान पर बार-बार गर्म किया जाता है जिससे पाॅलीमार का निमार्ण होता हैं ओर तेल अपचय बन जाता हैं। जिससें खटटी डकारे, गले मे जलन, एसिडिटी, अल्सर्स, अपेन्डिक्स, अस्थमा, हद्रय रोग, बीपी, आर्थराइटिस जैसे रोग पैदा हंै। इसी प्रकार क्रत्रिम फलेवर व  रसायनिक रंगो का प्रयोग मिठाइयो मे किया जाता हैं। जिससे केंन्सर होने के खतरे बढ़ते जा रहे है, ओर नयी नयी बिमारियां पैदा हो रही है।   
         इस प्रकार विभिन्न मिठाईया हमारे जीवन मे चाहे-अनचाहे हजारो रोग पैदा कर रही है। इससे बचने के लिए बनावटी मिठास न लेकर प्राकृतिक मिठास का प्रयोग करे किसमिस, खजूर, विभिन्न फल व ड्राईफुट आदि सीधे व मिलाकर मिठाईया बनाकर भी प्रयोग कर सकते हैं, जो स्वाद के साथ पोष्टिक व स्वास्थ्य भी होंगी। फैसला आपको करना हंै कि अप्राक्रतिक मिठास से कष्टप्रद रोगी जीवन यापन करना है या प्राकृतिक मिठास से आन्नद, प्रसन्ता, अरोग्यता लाकर जीवन को पूर्ण बनाना है            
                                                                                                                   जगतेश्वर                                         

रविवार, 17 जुलाई 2016

रिफाइन तेल

♨♨♨  रिफाइन तेल  ♨♨♨

आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइन तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है | कुछ विदेशी कंपनियों और भारतीय कंपनियाँ इस धंधे में लगी हुई हैं | इन्होने चक्कर चलाया और टेलीविजन के माध्यम से जम कर प्रचार किया लेकिन लोगों ने माना नहीं इनकी बात को, तब इन्होने डोक्टरों के माध्यम से कहलवाना शुरू किया | डोक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्सन में रिफाइन तेल लिखना शुरू किया कि तेल खाना तो सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना, ये नहीं कहते कि तेल, सरसों का खाओ या मूंगफली का खाओ !

अब क्यों, आप सब समझदार हैं, समझ सकते हैं |

ये रिफाइन तेल बनता कैसे हैं ? मैंने देखा है और आप भी कभी देख लें तो बात समझ जायेंगे | किसी भी तेल को रिफाइन करने में 6 से 7 केमिकल का प्रयोग किया जाता है और डबल रिफाइन करने में ये संख्या 12 -13 हो जाती है | ये सब केमिकल मनुष्य के द्वारा बनाये हुए हैं प्रयोगशाला में, भगवान का बनाया हुआ एक भी केमिकल इस्तेमाल नहीं होता, भगवान का बनाया मतलब प्रकृति का दिया हुआ जिसे हम ओरगेनिक कहते हैं | तेल को साफ़ करने के लिए जितने केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं सब Inorganic हैं और Inorganic केमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं और उनका combination जहर के तरफ ही ले जाता है | इसलिए रिफाइन तेल, डबल रिफाइन तेल गलती से भी न खाएं | फिर आप कहेंगे कि, क्या खाएं ?

तो आप शुद्ध तेल खाइए, सरसों का, मूंगफली का, तीसी का, या नारियल का | अब आप कहेंगे कि शुद्ध तेल में बास बहुत आती है और दूसरा कि शुद्ध तेल बहुत चिपचिपा होता है |
हम लोगों ने जब शुद्ध तेल पर काम किया या एक तरह से कहे कि रिसर्च किया तो हमें पता चला कि तेल का चिपचिपापन उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है | तेल में से जैसे ही चिपचिपापन निकाला जाता है तो पता चला कि ये तो तेल ही नहीं रहा, फिर हमने देखा कि तेल में जो बास आ रही है, वो उसका प्रोटीन कंटेंट है, शुद्ध तेल में प्रोटीन बहुत है, दालों में ईश्वर का दिया हुआ प्रोटीन सबसे ज्यादा है, दालों के बाद जो सबसे ज्यादा प्रोटीन है वो तेलों में ही है, तो तेलों में जो बास आप पाते हैं वो उसका Organic content है प्रोटीन के लिए | 4 -5 तरह के प्रोटीन हैं सभी तेलों में, आप जैसे ही तेल की बास निकालेंगे, उसका प्रोटीन वाला घटक गायब हो जाता है और चिपचिपापन निकाल दिया तो उसका Fatty Acid गायब | अब ये दोनों ही चीजें निकल गयी तो वो तेल नहीं पानी है, जहर मिला हुआ पानी |

ऐसे रिफाइन तेल के खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, घुटने दुखना, कमर दुखना, हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं, सबसे खतरनाक बीमारी है, हृदयघात (Heart Attack), पैरालिसिस, ब्रेन का डैमेज हो जाना, आदि, आदि | जिन-जिन घरों में पुरे मनोयोग से रिफाइन तेल खाया जाता है उन्ही घरों में ये समस्या आप पाएंगे, अभी तो मैंने देखा है कि जिनके यहाँ रिफाइन तेल इस्तेमाल हो रहा है उन्ही के यहाँ Heart Blockage और Heart Attack की समस्याएं हो रही है | जब सफोला का तेल लेबोरेटरी में टेस्ट किया, सूरजमुखी का तेल, अलग-अलग ब्रांड का टेस्ट किया तो AIIMS के भी कई डोक्टरों की रूचि इसमें पैदा हुई तो उन्होंने भी इस पर काम किया और कहा “तेल में से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइन में कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है, और उसी को हम खा रहे हैं तो तेल से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रहा है |”

आप बोलेंगे कि तेल के माध्यम से हमें क्या मिल रहा ? मैं बता दूँ कि हमको शुद्ध तेल से मिलता है HDL (High Density Lipoprotin), ये तेलों से ही आता है हमारे शरीर में, वैसे तो ये लीवर में बनता है लेकिन शुद्ध तेल खाएं तब | तो आप शुद्ध तेल खाएं तो आपका HDL अच्छा रहेगा और जीवन भर ह्रदय रोगों की सम्भावना से आप दूर रहेंगे |

अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा विदेशी तेल बिक रहा है | मलेशिया नामक एक छोटा सा देश है हमारे पड़ोस में | वहां का एक तेल है जिसे पामोलिन तेल कहा जाता है, हम उसे पाम तेल के नाम से जानते हैं, वो अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा बिक रहा है, एक-दो टन नहीं, लाखो-करोड़ों टन भारत आ रहा है और अन्य तेलों में मिलावट कर के भारत के बाजार में बेचा जा रहा है | 7 -8 वर्ष पहले भारत में ऐसा कानून था कि पाम तेल किसी दुसरे तेल में मिला के नहीं बेचा जा सकता था लेकिन GATT समझौता और WTO के दबाव में अब कानून ऐसा है कि पाम तेल किसी भी तेल में मिला के बेचा जा सकता है | भारत के बाजार से आप किसी भी नाम का डब्बा बंद तेल ले आइये, रिफाइन तेल और डबल रिफाइन तेल के नाम से जो भी तेल बाजार में मिल रहा है वो पामोलिन तेल है | और जो पाम तेल खायेगा, मैं स्टाम्प पेपर पर लिख कर देने को तैयार हूँ कि वो ह्रदय सम्बन्धी बिमारियों से मरेगा | क्योंकि पाम तेल के बारे में सारी दुनिया के रिसर्च बताते हैं कि पाम तेल में सबसे ज्यादा ट्रांस-फैट है और ट्रांस-फैट वो फैट हैं जो शरीर में कभी dissolve नहीं होते हैं, किसी भी तापमान पर dissolve नहीं होते और ट्रांस फैट जब शरीर में dissolve नहीं होता है तो वो बढ़ता जाता है और तभी हृदयघात होता है, ब्रेन हैमरेज होता है और आदमी पैरालिसिस का शिकार होता है, डाईबिटिज होता है, ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है | रिफ़ाइण्ड तेल की जगह कच्ची घानी तेल या मूंगफ़ली, सरसों, तिल, olive का तेल ही खाएँ !
Dr JP Verma(Swami Jagteswar Anand Ji)       9958502499

चक और उनके बीज मंत्र

चक और उनके बीज मंत्र
🔯1. मूलाधार चक्र :
यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह "आधार चक्र" है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।
🔯मंत्र : "लं"
कैसे जाग्रत करें : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है.! इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यािन लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतरवीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।
🔯2. स्वाधिष्ठान चक्र -
यह वह चक्र लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है, जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है, वह आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।
🔯मंत्र : "वं"
कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती. लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो, तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।
🔯3. मणिपुर चक्र :
नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत "मणिपुर" नामक तीसरा चक्र है, जो दस कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।
🔯मंत्र : "रं"
कैसे जाग्रत करें: आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।
🔯4. अनाहत चक्र
हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही "अनाहत चक्र" है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं.
🔯मंत्र : "यं"
कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और "सुषुम्ना" इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।
प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।
🔯5.विशुद्ध चक्र
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां "विशुद्ध चक्र" है और जो सोलह पंखुरियों वाला है। सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है, तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
🔯मंत्र : "हं"
कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र Iजाग्रत होने लगता है।
प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।
🔯6. आज्ञाचक्र :
भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में "आज्ञा-चक्र" है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है, तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। "बौद्धिक सिद्धि" कह            Dr JP Verma (Swami Jagteswar Anand Ji)               9958502499.             9899410128

चीनी एक जहर है

चीनी एक जहर है
वैज्ञानिक तकनीक के विकास के पूर्व कहीं भी शक्कर खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त नहीं की जाती थी। मीठे फलों अथवा शर्करायुक्त पदार्थों की शर्करा कम-से-कम रूपान्तरित कर उपयुक्त मात्रा में प्रयुक्त की जाती थी। इसी कारण पुराने लोग दीर्घजीवी तथा जीवन के अंतिम क्षणों तक कार्यसक्षम बने रहते थे।

आजकल लोगों में भ्रांति बैठ गई है कि सफेद चीनी खाना सभ्य लोगों की निशानी है तथा गुड़, शीरा आदि सस्ते शर्करायुक्त खाद्य पदार्थ गरीबों के लिए हैं। यही कारण है कि अधिकांशतः उच्च या मध्यम वर्ग के लोगों में ही मधुमेह रोग पाया जाता है।
चीनी एक जहर है जो अनेक रोगोँ का कारण है । चीनी बनाने की प्रक्रिया मेँ गंधक का सबसे अधिक प्रयोग होता है । गंधक माने पटाखोँ का मसाला ।.गंधक अत्यंत कठोर धातु है जो शरीर मेँ चला तो जाता है परंतु बाहर नहीँ निकलता, चीनी कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाती है जिसके कारण हृदयघात या हार्ट अटैक आता है .चीनी शरीर के वजन को अनियन्त्रित कर देती है जिसके कारण मोटापा होता है.चीनी रक्तचाप या ब्लड प्रैशर को बढ़ाती है ।.चीनी ब्रेन अटैक का एक प्रमुख कारण है.चीनी की मिठास को आधुनिक चिकित्सा मेँ सूक्रोज़ कहते हैँ जो इंसान और जानवर दोनो पचा नहीँ पाते. चीनी बनाने की प्रक्रिया मेँ तेइस हानिकारक
रसायनोँ का प्रयोग किया जाता है. चीनी डाइबिटीज़ का एक प्रमुख कारण है.चीनी पेट की जलन का एक प्रमुख कारण है.चीनी शरीर मे ट्राइ ग्लिसराइड को बढ़ाती है.चीनी पेरेलिसिस अटैक या लकवा होने का एक प्रमुख कारण है, चीनी बनाने की सबसे पहली मिल अंग्रेजोँ ने 1868 मेँ लगाई
थी । उसके पहले भारतवासी शुद्ध देशी गुड़ खाते थे और कभी बिमार नहीँ पड़ते थे ।

श्वेत चीनी शरीर को कोई पोषक तत्त्व नहीं देती अपितु उसके पाचन के लिए शरीर को शक्ति खर्चनी पड़ती है और बदले में शक्ति का भण्डार शून्य होता है। उलटे वह शरीर के तत्वों का शोषण करके महत्व के तत्वों का नाश करती है। सफेद चीनी इन्स्युलिन बनाने वाली ग्रंथि पर ऐसा प्रभाव डालती है कि उसमें से इन्स्युलिन बनाने की शक्ति नष्ट हो जाती है। फलस्वरूप मधुप्रमेह जैसे रोग होते हैं।
शरीर में ऊर्जा के लिए कार्बोहाइड्रेटस में शर्करा का योगदान प्रमुख है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि परिष्कृत शक्कर का ही उपयोग करें। शक्कर एक धीमा एवं श्वेत विष (Slow and White Poison) है जो लोग गुड़ छोड़कर शक्कर खा रहे हैं उनके स्वास्थ्य में भी निरन्तर गिरावट आई है ऐसी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट है।
ब्रिटेन के प्रोफेसर ज्होन युडकीन चीनी को श्वेत विष कहते हैं। उन्होंने सिद्ध किया है कि शारीरिक दृष्टि से चीनी की कोई आवश्यकता नहीं है। मनुष्य जितना दूध, फल, अनाज और शाकभाजी उपयोग में लेता है उससे शरीर को जितनी चाहिए उतनी शक्कर मिल जाती है। बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि चीनी से त्वरित शक्ति मिलती है परन्तु यह बात बिल्कुल भ्रमजनित मान्यता है, वास्तविकता से बहुत दूर है।
चीनी में मात्र मिठास है और विटामिन की दृष्टि से यह मात्र कचरा ही है। चीनी खाने से रक्त में कोलेस्टरोल बढ़ जाता है जिसके कारण रक्तवाहिनियों की दीवारें मोटी हो जाती हैं। इस कारण से रक्तदबाव तथा हृदय रोग की शिकायत उठ खड़ी होती है। एक जापानी डॉक्टर ने 20 देशों से खोजकर यह बताया था कि दक्षिणी अफ्रीका में हब्शी लोगों में एवं मासाई और सुम्बरू जाति के लोगों में हृदयरोग का नामोनिशान भी नहीं, कारण कि वे लोग चीनी बिल्कुल नहीं खाते।
अत्यधिक चीनी खाने से हाईपोग्लुकेमिया नामक रोग होता है जिसके कारण दुर्बलता लगती है, झूठी भूख लगती है, काँपकर रोगी कभी बेहोश हो जाता है। चीनी के पचते समय एसिड उत्पन्न होता है जिसके कारण पेट और छोटी अँतड़ी में एक प्रकार की जलन होती है। कूटे हुए पदार्थ बीस प्रतिशत अधिक एसिडिटी करते हैं। चीनी खानेवाले बालक के दाँत में एसिड और बेक्टेरिया उत्पन्न होकर दाँतों को हानि पहुँचाते हैं। चमड़ी के रोग भी चीनी के कारण ही होते हैं। अमेरिका के डॉ. हेनिंग्ट ने शोध की है कि चॉकलेट में निहित टायरामीन नामक पदार्थ सिरदर्द पैदा करता है। चीनी और चॉकलेट आधाशीशी का दर्द उत्पन्न करती है।
अतः बच्चों को पीपरमेंट-गोली, चॉकलेट आदि शक्करयुक्त पदार्थों से दूर रखने की सलाह दी जाती है। अमेरिका में 98 प्रतिशत बच्चों को दाँतों का रोग है जिसमें शक्कर तथा इससे बने पदार्थ जिम्मेदार माने जाते हैं।
परिष्कृतिकरण के कारण शक्कर में किसी प्रकार के खनिज, लवण, विटामिन्स या एंजाइम्स शेष नहीं रह जाते। जिससे उसके निरन्तर प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियाँ एवं विकृतियाँ पनपने लगती हैं।
अधिक शक्कर अथवा मीठा खाने से शरीर में कैल्शियम तथा फासफोरस का संतुलन बिगड़ता है जो सामान्यतया 5 और 2 के अनुपात में होता है। शक्कर पचाने के लिए शरीर में कैल्शियम की आवश्यकता होती है तथा इसकी कमी से आर्थराइटिस, कैंसर, वायरस संक्रमण आदि रोगों की संभावना बढ़ जाती है। अधिक मीठा खाने से शरीर के पाचन तंत्र में विटामिन बी काम्पलेक्स की कमी होने लगती है जो अपच, अजीर्ण, चर्मरोग, हृदयरोग, कोलाइटिस, स्नायुतन्त्र संबंधी बीमारियों की वृद्धि में सहायक होती है।
शक्कर के अधिक सेवन से लीवर में ग्लाइकोजिन की मात्रा घटती है जिससे थकान, उद्वग्निता, घबराहट, सिरदर्द, दमा, डायबिटीज आदि विविध व्याधियाँ घेरकर असमय ही काल के गाल में ले जाती हैं।
लन्दन मेडिकल कॉलेज के प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. लुईकिन अधिकांश हृदयरोग के लिए शक्कर को उत्तरदायी मानते हैं। वे शरीर की ऊर्जाप्राप्ति के लिए गुड़, खजूर, मुनक्का, अंगूर, शहद, आम, केला, मोसम्मी, खरबूजा, पपीता, गन्ना, शकरकंद आदि लेने का सुझाव देते .चीनी से मिश्री पे आएँ और मिश्री से गुड़ पे आएँ
 

चीनी के संबंध में वैज्ञानिकों के मत -

"हृदयरोग के लिए चर्बी जितनी ही जिम्मेदार चीनी है। कॉफी पीने वाले को कॉफी इतनी हानिकारक नहीं जितनी उसमें चीनी हानि करती है।"
प्रो. ज्होन युडकीन, लंदन।
"श्वेत चीनी एक प्रकार का नशा है और शरीर पर वह गहरा गंभीर प्रभाव डालता है।"
प्रो. लिडा क्लार्क
"सफेद चीनी को चमकदार बनाने की क्रिया में चूना, कार्बन डायोक्साइड, कैल्शियम, फास्फेट, फास्फोरिक एसिड, अल्ट्रामरिन ब्लू तथा पशुओं की हड्डियों का चूर्ण उपयोग में लिया जाता है। चीनी को इतना गर्म किया जाता है कि प्रोटीन नष्ट हो जाता है। अमृत मिटकर विष बन जाता है।
सफेद चीनी लाल मिर्च से भी अधिक हानिकारक है। उससे वीर्य पानी सा पतला होकर स्वप्नदोष, रक्तदबाव, प्रमेह और मूत्रविकार का जन्म होता है। वीर्यदोष से ग्रस्त पुरुष और प्रदररोग से ग्रस्त महिलाएँ चीनी का त्याग करके अदभुत लाभ उठाती हैं।"
डॉ. सुरेन्द्र प्रसाद
"भोजन में से चीनी को निकाले बिना दाँतों के रोग कभी न मिट सकेंगे।"
डॉ. फिलिप, मिचिगन विश्वविद्यालय
"बालक के साथ दुर्व्यवहार करने वाला माता-पिता को यदि दण्ड देना उचित समझा जाता हो तो बच्चों को चीनी और चीनी से बनी मिठाइयाँ तथा आइसक्रीम खिलाने वाले माता पिता को जेल मे ही डाल दिना चाहिए।"
फ्रेंक विलसन

पैरों और टांगों में नसों का ऐंठना फूलना व सूजना

पैरों और टांगों में नसों का ऐंठना फूलना व सूजना - टांगों में ऐंठन - नस पर नस का चढ़ जाना - मांस-पेशियाँ में दर्द होना जैसे कि पिंडली में (टांग के पीछे) - माँस-पेशियों की ऐंठन :
कई लोगों को रात में सोते समय टांगों में एंठन की समस्या होती है। नस पर नस चढ़ जाती है। कई लोगों को टांगों और पिंडलियों में मीठा - 2 दर्द सा भी महसूस होता है। पैरों में दर्द के साथ ही जलन, सुन्न, झनझनाहट या सुई चुभने जैसा एहसास होता है।

कारण :
1 - अनियंत्रित मधुमेह (रक्त में शक्कर का स्तर)
2 - शरीर में जल, रक्तमें सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम स्तर कम होने
3 - पेशाब ज्यादा होने वाली डाययूरेटिक दवाओं जैसे लेसिक्स सेवन करने के कारण शरीर में जल, खनिज लवण की मात्रा कम होने
4 - मधुमेह, अधिक शराब पीने से, किसी बिमारी के कारण कमजोरी, कम भोजन या पौष्टिक भोजन ना लेने से, 'Poly-neuropathy' या नसों की कमजोरी।
5 - कुछ हृदय रोगी के लिये दवायें जो कि 'Beta-blockers' कहलाती हैं, वो भी कई बार इसका कारण होती हैं।
6 - कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवा सेवन करने से.
7 - अत्यधिक कठोर व्यायाम करने, खेलने, कठोर श्रम करने से.
8 - एक ही स्थिति में लंबे समय तक पैर मोड़े रखने के कारण और पेशियों की थकान के कारण हो सकता है।
9 - पैर की धमनियोंकी अंदरूनी सतह में कोलेस्ट्रॉल जमा होने से, इनके संकरे होने (एथ्रीयो स्कोरोसिस) के कारण रक्त प्रवाह कम होने पर,
10 - पैरों की स्नायुओं के मधुमेह ग्रस्त होने
11 - अत्यधिक सिगरेट, तंबाकू, शराब का सेवन करने, पोष्क तत्वों की कमी, संक्रमण से।



घरेलू उपचार :
1 - आराम करें। पैरों को ऊंचाई पर रखें।
2 - प्रभाव वाले स्थान पर बर्फ की ठंडी सिकाई करे। सिकाई 15 मिनट, दिन में 3-4 बार करे।
3 - अगर गर्म-ठंडी सिकाई 3 से 5 मिनट की (दोनों तरह की बदल-2 कर) करें तो इस समस्या और दर्द - दोनों से राहत मिलेगी।
4 - आहिस्ते से ऎंठन वाली पेशियों, तंतुओं पर खिंचाव दें, आहिस्ता से मालिश करें।
5 - वेरीकोज वेन के लिए पैरों को ऊंचाई पर रखे, पैरों में इलास्टिक पट्टी बांधे जिससे पैरों में खून जमा न हो पाए।
6 - यदि आप मधुमेह या उच्च रक्तचाप से ग्रसित हैं, तो परहेज, उपचार से नियंत्रण करें।
7 - शराब, तंबाकू, सिगरेट, नशीले तत्वों का सेवन नहीं करें।
8 -सही नाप के आरामदायक, मुलायम जूते पहनें।
9 - अपना वजन घटाएं। रोज सैर पर जाएं या जॉगिंग करें। इससे टांगों की नसें मजबूत होती हैं।
10 - फाइबर युक्त भोजन करें जैसे चपाती, ब्राउन ब्रेड, सब्जियां व फल। मैदा व पास्ता जैसे रिफाइंड फूड का सेवन न करें।
11 - लेटते समय अपने पैरों को ऊंचा उठा कर रखें। पैरों के नीचे तकिया रख लें, इस स्थिति में सोना बहुत फायदेमंद रहता है।
भोजन :
12 - भोजन में नीबू-पानी, नारियल-पानी, फलों - विशेषकर मौसमी, अनार, सेब, पपीता केला आदि शामिल करें।
13 - सब्जिओं में पालक, टमाटर, सलाद, फलियाँ, आलू, गाजर, चाकुँदर आदि का खूब सेवन करें।
14 - 2-3 अखरोट की गिरि, 2-5 पिस्ता, 5-10 बादाम की गिरि, 5-10 किशमिश का रोज़ सेवन करें।
15 - अगर आप मांसाहारी हैं तो मछली का सेवन लाभदायक है।

चिकित्सक से परामर्श लें :
पैरों में दर्द के साथ सूजन, लाली हो और बुखार आ रहा हो, पैर नीला या काला हो गया हो या फिर पैर ठंडा या पीला पड़ गया हो और घरेलू उपचार से राहत नहीं मिल पा रही हो, तो ऎसी स्थिति में चिकित्सक से सलाह लेना जरूरी है।

पैरों के तलवों पर एक्यूप्रेशर रोलर करनें से दर्द से राहत मिलती है। इस क्रिया में पैरों को रोलर पर रखकर धीरे-धीरे घुमाएं। यह क्रिया दिन में 5-7 बार करनी चाहिए। इसे दो मिनट तक करना पर्याप्त रहता है। रोलर करने से पहले तलवों पर हल्का पाउडर लगाएं। इससे एक्यूप्रेशर आसानी से होगा।

मालिश : पैरों को दबाने या मालिश करने से आराम मिलता है। मालिश करते समय दोनों पैरों के तलवों की ओर अंगूठे के बिल्कुल नीचे पड़ने वाले बिंदु पर दबाव दें। अब पैरों के ऊपर छोटी उंगली के नीचे पड़ने वाले तीन बिंदुओं पर दबाव दें। पैरों के नीचे एड़ी पर पड़ने वाले तीन मास्टर बिंदुओं पर प्रेशर दें।
मालिश के लिए कोई भी तेल काम में लिया जा सकता है। दिन में दो-तीन बार 15-15 सेकंड तक प्रेशर करें और मालिश करें। 2-3 सप्ताह में आपको आराम मिलने लगेगा।

बचाव :
1- खून में ग्लूकोस की मात्रापर नियंत्रण रखें - यानी की मधुमेह को नियंत्रित रखें.
2- मध्यम - तीव्रता के व्यायाम करें, जिससे पेशियां, हडि्डयां मजबूत हों और जोड़ लचीले।
3 - संतुलित भोजन का सेवन करें।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

ओरा या आभामंडल

ओरा (आभामंडल)
हर व्यक्ति के पीछे अपना आभामंडल होता है, आभामंडल को अंग्रेजी में ओरा कहते हैं। वर्तमान दौर में ओरा विशेषज्ञों का महत्व भी बढ़ने लगा है। देवी या देवताओं के पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है उसे ही ओरा कहा जाता है। दरअसल 'ओरा' किसी व्यक्ति और वस्तु के भीतर बसी ऊर्जा का वह प्रवाह है जो प्रत्यक्ष तौरपर खुली आँखों से कभी दिखाई नहीं देता हैं। उसको सिर्फ महसूस किया जा सकता हैं।
           हम खुद अनुभव करते हैं। कि कुछ लोगों से मिलकर हमें आत्मिक शांति का अनुभव होता है तो कुछ से मिलकर उनसे जल्दी से छुटकारा पाने का दिल करता है, क्योंकि उनमें बहुत ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा होती है। दरअसल ओरा से ही किसी व्यक्ति की सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को पहचाना जाता है।
          लेकिन जब हम किसी वस्तु के नजदीक जाते हैं। या मान लो कि कुछ दिनों के लिए बहार घुमने जाते हैं। तो होटल में जो भी कमरा बुक करवाते हैं।, हो सकता है कि वहाँ घुसते ही आपको सुकून महसूस नहीं हो। हालाँकि घर जैसा सुकून तो कहीं नहीं मिलता। फिर भी कुछ कमरे ऐसे होते हैं। जो डरावने से महसूस होते हैं। तो समझ लें की वहाँ नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह घना होता है।
           ध्यान के माध्यम से ओरा के सही प्रवाह को जाना जा सकता है। ओरा विद्या भी एक ऐसी विद्या है जिसमें कोई भी व्यक्ति अपने आध्यात्मिक चक्रों को कुछ इस प्रकार जागृत कर देता है कि उससे निकलने वाली शक्तियों का प्रवाह सामने वाले व्यक्ति के शरीर तक पहुँच सकता है।

ओरा क्या है : प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के चारों और इलेक्ट्रॉनिक मैग्नेटिक फिल्ड का अस्तित्व छाया हुआ है जिसे 'ओरा' कहते हैं। ओरा प्रत्येक व्यक्ति का अपना अलग अलग होता हैं। यह शरीर  का सुरक्षा कवच होता हैं। ओरा का क्षेत्र व्यक्ति के शरीर पर तीन इंच से लेकर 20 से 50 मीटर तक की लंबाई तक हो सकता है। इतना ही नहीं 'ओरा' सजीव व्यक्तियों से लेकर निर्जीव व्यक्ति, जानवर, पे़ड-पौधे व सभी वस्तुओं का भी होता है। ओरा व्यक्ति के आभामंडल को कहते हैं। हर व्यक्ति का अपना एक प्रभाव होता है और उसमें इस ओरा का खास महत्व होता है। स्वयं को प्रभावशाली बनाने के लिए ओरा का प्रभावी होना आवश्यक है।
      
        जीव-अजीव सभी के इर्द-गिर्द एक प्रकाश का घेरा होता है, जानवर, पे़ड-पौधे, इन्सान (आदमी-औरत), वस्तु, पदार्थ सबके इर्द-गिर्द एक प्रकाश पुंज होता है जो हमें नंगी आँखों से नहीं दिखाई देता परंतु वैज्ञानिक यंत्रों से इसे देखा जा सकता है। इसका फोटोग्राफ लिया जा सकता है और इसके प्रभाव क्षेत्र को नापा जा सकता है।

       अपने सभी देवी देवता या संत महात्मा की तस्वीर में सिर के चारों ओर सफेद प्रकाश का घेरा देखा होगा यह उनका ओरा क्षेत्र हैं। लेकिन यह केवल सिर पर ही नहीं होता बल्कि पूरे शरीर के चारों तरफ होता हैं। और यही उसका अपना ऊर्जा क्षेत्र हैं। प्रत्येक पदार्थ इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन से बना होता हैं। यानी (नेगेटिव विधुत अणु + पॉजेटिव विधुत अणु) ये कण निरंतर  गतिमान रहेते हैं। जड़ पदार्थ में इनमें गति कम होती हैं। जीवित में ज्यादा सक्रिय व  कम्पायमान रहते हैं। इसलिए पेड़ पौधों जानवरों व व्यक्तियों में ऊर्जा क्षेत्र को आसानी से देखा जा सकता हैं।
    
ओरा की ऊर्जा -: शरीर क्या है? मनुष्य क्या है? प्राचीन काल से भौतिक शास्त्री यह कहते आये हैं कि बुनियादी स्तर से देखें तो हमारा यह  शरीर शुद्ध रूप से सिर्फ एक ऊर्जा है।  भौकिशास्त्री ने शरीर के बहुस्तरीय ऊर्जा क्षेत्र के अस्तित्व को सिद्ध किया है। इसे  प्रभा-मण्डल, आभा-मण्डल या ओरा कहते हैं। इन्होंने वर्षों तक शोध करके इस ऊर्जा-चिकित्सा (Aura Healing)  से दैहिक और भावनात्मक विकारों के उपचार की कला को विकसित किया है।
           हमारा शरीर एक बड़े ऊर्जा पिण्ड  या ओरा में स्थित रहता है, इसी ऊर्जा पिण्ड के द्वारा हम स्वास्थ्य, रोग आदि समेत जीवन की यथार्थता का अनुभव करते हैं।  इसी ऊर्जा से हमें स्वचिकित्सा या निरामय रहने का सामर्थ्य मिलता है। समस्त रोगों की उत्पत्ति इसी ऊर्जा पिण्ड से होती है।  प्राचीन काल से आधायात्मिक चिकित्साविद् और आयुर्वेदाचार्य  इस के बारे चर्चा करते आये हैं, परन्तु इसका वैज्ञानिक दृष्टि से सत्यापन हाल ही के वर्षों में हुआ है।
           इस आभा-मण्डल में सात चक्र समेत कई परतें होती हैं। इसकी किसी भी परत या चक्र में कोई गड़बड़, असंतुलन या अवरोध आने से वह भौतिक देह में प्रतिबिम्बित और एकत्रित हो जाती है, जिससे भावनात्मक या दैहिक रोग हो जाता है। हर व्यक्ति चाहे तो अपने देखने और सुनने की क्षमता और सीमा को बढ़ा सकता है।  आज ऐसी तकनीक और व्यायाम विकसिक हो चुके हैं, जिससे व्यक्ति अपना आभामण्डल देख सकता है, ओर अपने ग्रहणबोध का विस्तार करके  आध्यात्मिक चिकित्सा को समझ सकता है।  ।  


 

                                  ओरा व रोग
मनुष्य का ऊर्जा क्षेत्र हमेशा ब्रह्माण्ड से ऊर्जा ग्रहण करता है। शरीर में रोग आने से पहले हमारे शरीर के ओरा में वह बहुत पहेले आ चुका होता हैं। ओर ओरा का कलर चेंज होने लगता हैं। यह ओरा कवच हमारे शरीर में रोगों को, नेगेटिव ऊर्जा को आने से रोकता हैं। हमारी देह, मन और भावना का अस्तित्व इसी ऊर्जा के कारण है। प्रभा-मण्डल हमारा आवरण है जो हमारे आंतरिक ऊर्जा पिण्ड और बाहरी देह को लपेट कर रखता है।  हमारे चक्र इस ऊर्जा आवरण के छिद्र हैं जो शरीर में बाहर से अन्दर और अन्दर से बाहर इस अनंत ऊर्जा के प्रवाह और परिवहन को संतुलित रखते हैं।
           यही ऊर्जा क्षेत्र आरोग्य और रोग के कारक हैं। यह जरूरी है कि हम रोग को गहराई से समझें।  हम विश्लेषण करें कि  इस रोग का क्या अभिप्राय है? यह क्या कहना चाह रहा है? रोग हमारे शरीर की तरफ से एक सन्देश हो सकता है, 'देखो शरीर में कुछ गलत चल रहा है। तुम अपने ही अन्तरमन को सुन नहीं पा रहे हो, कुछ बहुत ही जरूरी बात को अनदेखा कर रहे हो।'  कई बार आरोग्य प्राप्ति के लिए चिकित्सक की औषधि लेने से ज्यादा इसी बात को समझने और बदलने की जरूरत होती है।

              व्यक्ति की प्रत्येक भावना का, संकल्प का, व मानसिक  स्थिति का प्रभाव तुरंत ओरा पर पड़ता हैं। और वह जैसी भावना करता हैं। ओरा उसी से घटता बढ़ता जाता हैं। साधारणतया किसी भी रोग व्याधि के दो प्रकार होते हैं। 1.बाहरी कारण 2.आंतरिक कारण, आंतरिक कारणों सें मानसिक रोग होते हैं। जैसे नकारात्मकता, चिंतन, क्रोध, घ्रणा, अहंकार, बदले की भावना, कटुता, असुरक्षा की भावना, असफलता, किसी अनभिग्य वस्तु का डर, अपराध बोध, लालच आदि, बाहरी कारणों में दूषित वातावरण कीटाणु विषाणु, आहार बिहार, दिनचर्या आदि का असुंतलन होता हैं। आज विज्ञान इस बात को मानता हैं। कि 90 % बीमारियाँ मन  के कारण से होती हैं। और हम शरीर का इलाज करते रहते हैं। जिससे रोग खत्म नहीं हो पाता हैं।

      

ओरा के सात रंगो की व्याख्या
ओरा में सात रंग होते है जो कभी एक जैसी स्थिति में नहीं होते। जैसे हर एक का DNA अलग होता है, इसी तरह आभा मण्डल अथवा Aura भी अलग-अलग होता है। आभा मण्डल की सात रंगों की स्थिति कहीं ज्यादा गहरी कहीं हल्की, उसकी मोटाई कहीं कम कहीं ज्यादा, कहीं नियमित कहीं अनियमित एवं इन्सान की स्थिति व भावों के अनुसार बदलती  रहती है। ओरा के रंगों के द्वारा हमें निम्नलिखित सामान्य जानकारी मिलती  हैं। रंग, आकार और रंगों के संयोजन ओरा की व्याख्या में अहम  भूमिका निभाते हैं। बाईं ओर के ओरा से महिला की निष्क्रिय ऊर्जा इंगित होती हैं। जबकि दाईं ओर के ओरा से पुरुष की सक्रिय ऊर्जा का पता चलता हैं। जिस ओर का ओरा अधिक चमकीला होता हैं, उस का प्रभाव व्यक्ति में अधिक पाया जाता हैं। रंगों की  व्याख्या बच्चों पर लागू नहीं होती हैं।

1.लाल रंग -: लाल रंग से इच्छा शक्ति, जीवन शक्ति, जीतने के लिए शक्ति, सफलता, अनुभव, कार्य की तीव्रता, नेतृत्व की शक्ति, साहस, जुनून, कामुकता, व्यावहारिकता का खेल, संघर्ष, प्रतियोगिता, बल का प्यार, संपत्ति के लिए इच्छा, साहस की भावना, अस्तित्व वृत्ति का पता चलता हैं। अधिकतर युवा अवस्था में (16-25 वर्ष के बीच के युवा) ओरा  चमकदार लाल रंग का होता  हैं।
2.ऑरेंज रंग -: ऑरेंज रंग से रचनात्मकता, भावनात्मकता, आत्मविश्वास, एक खुले दोस्ताना तरीके, सुशीलता, अंतर्ज्ञान या दूसरों को महसूस करने संबंधित क्षमता. का पता चलता हैं कई प्रतिभाशाली बिक्री कर्ता, उद्यमियों, और जनता के साथ निपटने वाले व्यापारी लोगो का ओरा नारंगी ऑरेंज रंग का होता हैं।

3.पीला रंग -: पीला रंग से नए विचारों, खुशी, गर्मी, विश्राम, हास्य और मज़ा, आशावादीता, बुधिता, खुलेपन की धूप और उत्साह, हंसमुख, उज्ज्वल, महान भावना. बेहिचक व्यापकता, समस्याओं और प्रतिबंध की रिहाई, संगठन के लिए प्रतिभा, आशा और उम्मीद, प्रेरणा का पता चलता हैं। पीले ओरा वाले लोंग सभी लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। और स्वाभाविक रूप से खुद को महान बनाने के लिये दूसरों का समर्थन करते हैं। पीले रंग के ओरा वाले में सूरज की तरह विकीर्ण और जटिल अवधारणाओं का विश्लेषण करने के लिए एक महान क्षमता हो सकती हैं।

4.हरा रंग -: हरे रंग से दृढ़ता, जिम्मेदारी और सेवा की दृढ़ता, धैर्य, समझ, स्वयं मुखरता, उच्च आदर्शों और आकांक्षाओं के लिये समर्पण, काम और कैरियर पर उच्च मूल्य वाला, सम्मान और व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए महत्वाकांक्षी इच्छा, गहराई से ध्यान केंद्रित करने वाला और अनुकूलनीयता का पता चलता हैं। विकास की और दुनिया में सकारात्मक बदलाव बनाने पर ध्यान केंद्रित करने वाले, अपने माता पिता को समर्पित, सामाजिक कार्यकर्ता, सलाहकारों, मनोवैज्ञानिकों, जैसे व्यक्तियों का ओरा हरे रंग का हैं।
5.नीला रंग -: नीले रंग से भावना की गहराई, भक्ति, निष्ठा, विश्वास, संवाद करने की इच्छा, व्यक्तिगत संबंधों पर काफी महत्व रखना, मित्रता रखना, सपने देखने वाले, या कलात्मक क्षमता वाले, खुद से पहले दूसरों की जरूरतों पूरी करने वाले, अंदर की ओर ध्यान केंद्रित करने वाले, एकांतप्रिये, गैर प्रतिस्पर्धा वाले, गतिविधियों का आनंद लेने वाले, ग्रहणशील और इच्छा शक्ति वाले, शांति, प्रेम और दूसरों के साथ रिश्तों में स्नेह बनाने वाले, सहज, भावनात्मक रूप से संवेदनशील हो लोंगों का पता चलता  हैं। वे एक शांत वातावरण में रहेने वाले होते हैं। यह सत्य, न्याय और सभी में सुंदरता की तलाश करते हैं। कलाकारों, कवियों, लेखकों, संगीतकारों, दार्शनिकों, गंभीर छात्रों, आध्यात्मिक चाहने वालों, लोगों का ओरा नीले रंग का मिलता हैं।

6.बैंगनी रंग -: बैंगनी रंग वाले जादुई क्षमता , असीमित मानसिक क्षमता, असामान्य करिश्मे और आकर्षण वाले, अपने सपनों को बनाने के लिए असामान्य क्षमता वाले, या भौतिक संसार में प्रकट अपनी इच्छाओं, आकर्षण और खुशी दूसरों के लिए चाहने वाले, आसानी से चेतना के उच्च स्तरो के साथ जुड़ने वाले, दूसरों के सनकीपन की सहिष्णुता वाले, चंचल. संवेदनशील और दयालु होते हैं। बैंगनी रंग वाले लोग दूसरों में कोमलता और दया की सराहना करते हैं।  विशेष रूप से व्यावहारिक नहीं होते हैं। वे अपने स्वयं के निर्माण के लिए एक सपनों की दुनिया में जीना पसंद करते हैं। बैंगनी रंग मनोरंजन करने वाले, फिल्मी सितारों, स्वतंत्र विचारक, दूरदर्शी, क्रांतिकारी, व्यक्तियों का मिलता हैं। इनमे चुंबकीय शक्ति होती हैं। गहरे बैंगनी रंग वाला व्यक्ति आध्यात्मिकता की गहराईयों में पहुचता हैं।

7.सफेद रंग -: सफेद रंग वाले आध्यात्मिक, प्रेरित करने वाले, परमात्मा या आध्यात्मिक दुनिया को स्वीकार करने की क्षमता वाले, सब के साथ विलय होने वाले, सांसारिक मामलों या महत्वाकांक्षाओं से उदासीन होते हैं। इन्हें रोशनी, अलौकिक ज्ञान, परमात्मा से प्रेम, शांति, आनंद, अपनी ही मस्ती में मस्त रहना पसंद होता हैं। तीव्रता से ध्यान लगाने वाले, सही संत महात्मा, साधु, योगीजन, सामाजिक कार्यकर्ताओं का ओरा सफेद रंग का पाया जाता हैं।


 

           रेंकी ऊर्जा उपचार में रोगी की भूमिका क्या है?
सबसे पहले तो रोगी में ठीक होने की जबर्दस्त इच्छा होनी चाहिये। यदि आप वास्तव में रोगमुक्त होना चाहते हो तो चिकित्सक के लिए आपका उपचार करना सरल हो जाता है। कुछ लोगों को रोग होता ही इसीलिए है कि वे अपना जीवन त्यागने के लिए ईश्वर से नियमित विनती करते रहते हैं कि वे जीवन के झमेलों से बहुत आहत हो चुके होते हैं और जीना दुश्वार हो चला है। यदि आप ठीक होना ही नहीं चाहते तो ऊर्जा-उपचार में व्यर्थ पैसा और समय मत गंवाइये, शरीर व मन इस उपचार को ग्रहण नहीं करेगा। जब आप ठीक होना चाहते हो, जब आप अपने रोग के प्रत्यक्ष होना चाहते हो और ऊर्जा ग्रहण करने के लिए अपने शरीर के पट खोल देते हो, तभी चिकित्सक आपका रोग दूर कर पाता है। आपको अपने उपचार का साक्षी और सहयोगी बनना पड़ता है। इसका तात्पर्य यह है कि आप चिकित्सक की सलाह को आंख बन्द करके मानने की जगह अपने विवेक से हर बात का मूल्यांकन करते हैं और अपने उपचार में आप उसकी हर संभव मदद भी करते हैं। तभी आपका शरीर, मन और भावना उपचार को सहज ग्रहण करता है।  
        यदि आपने अपने रोग और उसके जनन में अपनी भागीदारी को स्वीकार कर लिया है तो समझ लीजिये कि रोग निवारण की दिशा में आप अपना पहला कदम बढ़ा चुकें हैं। रोग के उपचार के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप यह मान जायें कि इसके लिए आप कितने जिम्मेदार थे। जब  आप समझ जाते हैं कि आपकी बीमारी आपको क्या सन्देश देना चाहती है तो उससे मुक्त होना आसान हो जाता है। जब तक आप यह समझते रहते हैं कि यह रोग आपको ऐसे ही अकस्मात हो गया है तब तक इलाज मुश्किल होता है।

यह रेंकी ऊर्जा चक्र-तंत्र कैसे कार्य करता है?

मनुष्य का आभा-मण्डल उसके स्थूल शरीर में फैला और समाया रहता है तथा शरीर, मन और आत्मा को एकाकार करके रखता है। यह हमेशा गतिशील रहता है आभा-मण्डल के छिद्रों (चक्र) द्वारा स्पन्दन ऊर्जा का आवागमन निरन्तर चलता रहता है। उसके कर्म, विचार तथा भावना और साथ में वातावरण तथा जीवनशैली (व्यायाम भोजन, निद्रा आदि) के आधार पर शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। यदि जीवन प्रेम और आनन्द से परिपूर्ण है तो अपार ऊर्जा का प्रवाह होता है तथा जीवन निरामय हो जाता है। यह प्रेम की शक्ति है जो चक्रों को खोल देती है और ऊर्जा का बहाव उन्मुक्त होता है। तथा जब वह भय, अहंकार, नकारात्मकता या स्वार्थ के वश में  हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव थम जाता है। तब ऊर्जा प्रवाह में असन्तुलन और रुकावट के कारण शरीर तथा मन में रोग जन्म लेता है। इस रुकावट से शरीर के कुछ हिस्सों को ऊर्जा प्रवाह रुक जाता है। लेकिन क्योंकि शरीर में कई चक्र होते हैं इसलिए रुकावट होने के बाद भी तन और मन को कुछ ऊर्जा तो मिलती रहती है। लेकिन रुकावट की जगह शरीर में गड़बड़ हो जाती है। ऊर्जा के प्रवाह में लम्बे समय तक रुकावट होने से छोटा या बड़ा रोग जैसे कैंसर तक हो जाता है। इस स्थिति में उसे अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने और रेंकी ऊर्जा चिकित्सा लेने से रोंगों से मुक्ति मिल जाती हैं।


ओरा की सफाई
रेंकी हमारे शरीर मन आत्मा तीनों पर समान रूप से कार्य करती हैं। हमारे मन के दूषित होने से हमारा ओरा दूषित हो जाता हैं। और फिर रोग शरीर में पनपने लगते हैं। तो ओरा की सफाई कैसे करें यह जानना जरुरी हैं। और रेंकी देने से पहले भी ओरा की सफाई जरुर कर लेनी चाहिए जिससे अधिक लाभ की आशा होती हैं।
        ओरा की सफाई के लिए रोगी को कुर्सी पर सीधा बैठा ले या योगामेट, बेड, मेज पर सीधा लिटा ले। एक बर्तन में पानी रख ले, अब दोनों हथेंलियों को कप की तरह बनाएं और सिर के ऊपर 2-6 इंच की दूरी पर रखे और वहां से धीरे-धीरे संकल्प करते हुए कि मैं इस व्यक्ति (नाम) की नेगेटिव एनर्जी को अपने हाथों में ले रहा हूँ ओर ऐसा संकल्प करते हुए हाथों को सिर से पैर तक लाकर मुठी बंद कर ले, और विचार करें कि इस व्यक्ति की नेगेटिव ऊर्जा मेरी मुट्ठी में आ गई हैं। और अब उस मुट्ठी को पानी की ओर करके नेगेटिव एनर्जी को पानी में जाने का आदेश दे ओर मुठी झटक कर खोल दें। 3-7 या 21 बार तक ऐसा कर सकते हैं। रोगी के ओरा के अनुसार या नेगेटिव ऊर्जा के अनुसार, सफाई करने के बाद अपने हाथों को साफ दुसरे पानी से धो लें और जिस पानी में एनर्जी डाली हैं। उसे बहा दें और बर्तन को साफ पानी से धो कर रख दें। बैठे हुए व्यक्ति की सफाई भी इसी प्रकार करे। यदि किसी स्थान की मकान, दुकान की सफाई करनी हैं। तो यही क्रिया करो और फिर अपने संकलप के द्वारा मकान के चारों ओर हथेंली को घुमाते हुए नेगेटिव एनर्जी को हाथों में लेकर पानी में छोड़े। उसके बाद वहां पर कपूर जला कर दो लोंग उस में डाल दे जिससे वहां से नेगेटिव ऊर्जा समाप्त हो जाएगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार हो जाएगा

 ओरा कवच
ओरा की सफाई के बाद आप रोगी के चारों और ओरा कवच का निर्माण करें क्योंकि ओरा से आपने नेगेटिव ऊर्जा को हटाया हैं। अगर वहां उसका सुरक्षा कवच तैयार नहीं करेंगे तो फिर वहां नेगेटिव ऊर्जा आ जाएगी।
     इसके लिए मध्यमा और तर्जनी अंगुली से तीन बार आज्ञा चक्र को टच करें फिर दोनों अंगुलियों से क्लोक वाइज दाएं से बाएं घूमाते हुए (शरीर से 3 इंच दूरी पर) सर से पैरो तक 7 चक्कर अपने इष्ट मंत्र का जाप करते हुए या गुरु मंत्र का जाप करते हुए लगा कर फिर आज्ञा चक्र पर जाकर 3 बार टच करते हुए कवच को पूरा कर दे। ओर माथे पर हाथ रखकर संकल्प करे कि अब कोई भी नेगेटिव शक्ति इस कवच का भेदन नहीं कर सकती और सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दे। जिस कार्य के लिए  भी आप हीलिंग दे रहे हैं।