शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

ओरा या आभामंडल

ओरा (आभामंडल)
हर व्यक्ति के पीछे अपना आभामंडल होता है, आभामंडल को अंग्रेजी में ओरा कहते हैं। वर्तमान दौर में ओरा विशेषज्ञों का महत्व भी बढ़ने लगा है। देवी या देवताओं के पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है उसे ही ओरा कहा जाता है। दरअसल 'ओरा' किसी व्यक्ति और वस्तु के भीतर बसी ऊर्जा का वह प्रवाह है जो प्रत्यक्ष तौरपर खुली आँखों से कभी दिखाई नहीं देता हैं। उसको सिर्फ महसूस किया जा सकता हैं।
           हम खुद अनुभव करते हैं। कि कुछ लोगों से मिलकर हमें आत्मिक शांति का अनुभव होता है तो कुछ से मिलकर उनसे जल्दी से छुटकारा पाने का दिल करता है, क्योंकि उनमें बहुत ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा होती है। दरअसल ओरा से ही किसी व्यक्ति की सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को पहचाना जाता है।
          लेकिन जब हम किसी वस्तु के नजदीक जाते हैं। या मान लो कि कुछ दिनों के लिए बहार घुमने जाते हैं। तो होटल में जो भी कमरा बुक करवाते हैं।, हो सकता है कि वहाँ घुसते ही आपको सुकून महसूस नहीं हो। हालाँकि घर जैसा सुकून तो कहीं नहीं मिलता। फिर भी कुछ कमरे ऐसे होते हैं। जो डरावने से महसूस होते हैं। तो समझ लें की वहाँ नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह घना होता है।
           ध्यान के माध्यम से ओरा के सही प्रवाह को जाना जा सकता है। ओरा विद्या भी एक ऐसी विद्या है जिसमें कोई भी व्यक्ति अपने आध्यात्मिक चक्रों को कुछ इस प्रकार जागृत कर देता है कि उससे निकलने वाली शक्तियों का प्रवाह सामने वाले व्यक्ति के शरीर तक पहुँच सकता है।

ओरा क्या है : प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के चारों और इलेक्ट्रॉनिक मैग्नेटिक फिल्ड का अस्तित्व छाया हुआ है जिसे 'ओरा' कहते हैं। ओरा प्रत्येक व्यक्ति का अपना अलग अलग होता हैं। यह शरीर  का सुरक्षा कवच होता हैं। ओरा का क्षेत्र व्यक्ति के शरीर पर तीन इंच से लेकर 20 से 50 मीटर तक की लंबाई तक हो सकता है। इतना ही नहीं 'ओरा' सजीव व्यक्तियों से लेकर निर्जीव व्यक्ति, जानवर, पे़ड-पौधे व सभी वस्तुओं का भी होता है। ओरा व्यक्ति के आभामंडल को कहते हैं। हर व्यक्ति का अपना एक प्रभाव होता है और उसमें इस ओरा का खास महत्व होता है। स्वयं को प्रभावशाली बनाने के लिए ओरा का प्रभावी होना आवश्यक है।
      
        जीव-अजीव सभी के इर्द-गिर्द एक प्रकाश का घेरा होता है, जानवर, पे़ड-पौधे, इन्सान (आदमी-औरत), वस्तु, पदार्थ सबके इर्द-गिर्द एक प्रकाश पुंज होता है जो हमें नंगी आँखों से नहीं दिखाई देता परंतु वैज्ञानिक यंत्रों से इसे देखा जा सकता है। इसका फोटोग्राफ लिया जा सकता है और इसके प्रभाव क्षेत्र को नापा जा सकता है।

       अपने सभी देवी देवता या संत महात्मा की तस्वीर में सिर के चारों ओर सफेद प्रकाश का घेरा देखा होगा यह उनका ओरा क्षेत्र हैं। लेकिन यह केवल सिर पर ही नहीं होता बल्कि पूरे शरीर के चारों तरफ होता हैं। और यही उसका अपना ऊर्जा क्षेत्र हैं। प्रत्येक पदार्थ इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन से बना होता हैं। यानी (नेगेटिव विधुत अणु + पॉजेटिव विधुत अणु) ये कण निरंतर  गतिमान रहेते हैं। जड़ पदार्थ में इनमें गति कम होती हैं। जीवित में ज्यादा सक्रिय व  कम्पायमान रहते हैं। इसलिए पेड़ पौधों जानवरों व व्यक्तियों में ऊर्जा क्षेत्र को आसानी से देखा जा सकता हैं।
    
ओरा की ऊर्जा -: शरीर क्या है? मनुष्य क्या है? प्राचीन काल से भौतिक शास्त्री यह कहते आये हैं कि बुनियादी स्तर से देखें तो हमारा यह  शरीर शुद्ध रूप से सिर्फ एक ऊर्जा है।  भौकिशास्त्री ने शरीर के बहुस्तरीय ऊर्जा क्षेत्र के अस्तित्व को सिद्ध किया है। इसे  प्रभा-मण्डल, आभा-मण्डल या ओरा कहते हैं। इन्होंने वर्षों तक शोध करके इस ऊर्जा-चिकित्सा (Aura Healing)  से दैहिक और भावनात्मक विकारों के उपचार की कला को विकसित किया है।
           हमारा शरीर एक बड़े ऊर्जा पिण्ड  या ओरा में स्थित रहता है, इसी ऊर्जा पिण्ड के द्वारा हम स्वास्थ्य, रोग आदि समेत जीवन की यथार्थता का अनुभव करते हैं।  इसी ऊर्जा से हमें स्वचिकित्सा या निरामय रहने का सामर्थ्य मिलता है। समस्त रोगों की उत्पत्ति इसी ऊर्जा पिण्ड से होती है।  प्राचीन काल से आधायात्मिक चिकित्साविद् और आयुर्वेदाचार्य  इस के बारे चर्चा करते आये हैं, परन्तु इसका वैज्ञानिक दृष्टि से सत्यापन हाल ही के वर्षों में हुआ है।
           इस आभा-मण्डल में सात चक्र समेत कई परतें होती हैं। इसकी किसी भी परत या चक्र में कोई गड़बड़, असंतुलन या अवरोध आने से वह भौतिक देह में प्रतिबिम्बित और एकत्रित हो जाती है, जिससे भावनात्मक या दैहिक रोग हो जाता है। हर व्यक्ति चाहे तो अपने देखने और सुनने की क्षमता और सीमा को बढ़ा सकता है।  आज ऐसी तकनीक और व्यायाम विकसिक हो चुके हैं, जिससे व्यक्ति अपना आभामण्डल देख सकता है, ओर अपने ग्रहणबोध का विस्तार करके  आध्यात्मिक चिकित्सा को समझ सकता है।  ।  


 

                                  ओरा व रोग
मनुष्य का ऊर्जा क्षेत्र हमेशा ब्रह्माण्ड से ऊर्जा ग्रहण करता है। शरीर में रोग आने से पहले हमारे शरीर के ओरा में वह बहुत पहेले आ चुका होता हैं। ओर ओरा का कलर चेंज होने लगता हैं। यह ओरा कवच हमारे शरीर में रोगों को, नेगेटिव ऊर्जा को आने से रोकता हैं। हमारी देह, मन और भावना का अस्तित्व इसी ऊर्जा के कारण है। प्रभा-मण्डल हमारा आवरण है जो हमारे आंतरिक ऊर्जा पिण्ड और बाहरी देह को लपेट कर रखता है।  हमारे चक्र इस ऊर्जा आवरण के छिद्र हैं जो शरीर में बाहर से अन्दर और अन्दर से बाहर इस अनंत ऊर्जा के प्रवाह और परिवहन को संतुलित रखते हैं।
           यही ऊर्जा क्षेत्र आरोग्य और रोग के कारक हैं। यह जरूरी है कि हम रोग को गहराई से समझें।  हम विश्लेषण करें कि  इस रोग का क्या अभिप्राय है? यह क्या कहना चाह रहा है? रोग हमारे शरीर की तरफ से एक सन्देश हो सकता है, 'देखो शरीर में कुछ गलत चल रहा है। तुम अपने ही अन्तरमन को सुन नहीं पा रहे हो, कुछ बहुत ही जरूरी बात को अनदेखा कर रहे हो।'  कई बार आरोग्य प्राप्ति के लिए चिकित्सक की औषधि लेने से ज्यादा इसी बात को समझने और बदलने की जरूरत होती है।

              व्यक्ति की प्रत्येक भावना का, संकल्प का, व मानसिक  स्थिति का प्रभाव तुरंत ओरा पर पड़ता हैं। और वह जैसी भावना करता हैं। ओरा उसी से घटता बढ़ता जाता हैं। साधारणतया किसी भी रोग व्याधि के दो प्रकार होते हैं। 1.बाहरी कारण 2.आंतरिक कारण, आंतरिक कारणों सें मानसिक रोग होते हैं। जैसे नकारात्मकता, चिंतन, क्रोध, घ्रणा, अहंकार, बदले की भावना, कटुता, असुरक्षा की भावना, असफलता, किसी अनभिग्य वस्तु का डर, अपराध बोध, लालच आदि, बाहरी कारणों में दूषित वातावरण कीटाणु विषाणु, आहार बिहार, दिनचर्या आदि का असुंतलन होता हैं। आज विज्ञान इस बात को मानता हैं। कि 90 % बीमारियाँ मन  के कारण से होती हैं। और हम शरीर का इलाज करते रहते हैं। जिससे रोग खत्म नहीं हो पाता हैं।

      

ओरा के सात रंगो की व्याख्या
ओरा में सात रंग होते है जो कभी एक जैसी स्थिति में नहीं होते। जैसे हर एक का DNA अलग होता है, इसी तरह आभा मण्डल अथवा Aura भी अलग-अलग होता है। आभा मण्डल की सात रंगों की स्थिति कहीं ज्यादा गहरी कहीं हल्की, उसकी मोटाई कहीं कम कहीं ज्यादा, कहीं नियमित कहीं अनियमित एवं इन्सान की स्थिति व भावों के अनुसार बदलती  रहती है। ओरा के रंगों के द्वारा हमें निम्नलिखित सामान्य जानकारी मिलती  हैं। रंग, आकार और रंगों के संयोजन ओरा की व्याख्या में अहम  भूमिका निभाते हैं। बाईं ओर के ओरा से महिला की निष्क्रिय ऊर्जा इंगित होती हैं। जबकि दाईं ओर के ओरा से पुरुष की सक्रिय ऊर्जा का पता चलता हैं। जिस ओर का ओरा अधिक चमकीला होता हैं, उस का प्रभाव व्यक्ति में अधिक पाया जाता हैं। रंगों की  व्याख्या बच्चों पर लागू नहीं होती हैं।

1.लाल रंग -: लाल रंग से इच्छा शक्ति, जीवन शक्ति, जीतने के लिए शक्ति, सफलता, अनुभव, कार्य की तीव्रता, नेतृत्व की शक्ति, साहस, जुनून, कामुकता, व्यावहारिकता का खेल, संघर्ष, प्रतियोगिता, बल का प्यार, संपत्ति के लिए इच्छा, साहस की भावना, अस्तित्व वृत्ति का पता चलता हैं। अधिकतर युवा अवस्था में (16-25 वर्ष के बीच के युवा) ओरा  चमकदार लाल रंग का होता  हैं।
2.ऑरेंज रंग -: ऑरेंज रंग से रचनात्मकता, भावनात्मकता, आत्मविश्वास, एक खुले दोस्ताना तरीके, सुशीलता, अंतर्ज्ञान या दूसरों को महसूस करने संबंधित क्षमता. का पता चलता हैं कई प्रतिभाशाली बिक्री कर्ता, उद्यमियों, और जनता के साथ निपटने वाले व्यापारी लोगो का ओरा नारंगी ऑरेंज रंग का होता हैं।

3.पीला रंग -: पीला रंग से नए विचारों, खुशी, गर्मी, विश्राम, हास्य और मज़ा, आशावादीता, बुधिता, खुलेपन की धूप और उत्साह, हंसमुख, उज्ज्वल, महान भावना. बेहिचक व्यापकता, समस्याओं और प्रतिबंध की रिहाई, संगठन के लिए प्रतिभा, आशा और उम्मीद, प्रेरणा का पता चलता हैं। पीले ओरा वाले लोंग सभी लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। और स्वाभाविक रूप से खुद को महान बनाने के लिये दूसरों का समर्थन करते हैं। पीले रंग के ओरा वाले में सूरज की तरह विकीर्ण और जटिल अवधारणाओं का विश्लेषण करने के लिए एक महान क्षमता हो सकती हैं।

4.हरा रंग -: हरे रंग से दृढ़ता, जिम्मेदारी और सेवा की दृढ़ता, धैर्य, समझ, स्वयं मुखरता, उच्च आदर्शों और आकांक्षाओं के लिये समर्पण, काम और कैरियर पर उच्च मूल्य वाला, सम्मान और व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए महत्वाकांक्षी इच्छा, गहराई से ध्यान केंद्रित करने वाला और अनुकूलनीयता का पता चलता हैं। विकास की और दुनिया में सकारात्मक बदलाव बनाने पर ध्यान केंद्रित करने वाले, अपने माता पिता को समर्पित, सामाजिक कार्यकर्ता, सलाहकारों, मनोवैज्ञानिकों, जैसे व्यक्तियों का ओरा हरे रंग का हैं।
5.नीला रंग -: नीले रंग से भावना की गहराई, भक्ति, निष्ठा, विश्वास, संवाद करने की इच्छा, व्यक्तिगत संबंधों पर काफी महत्व रखना, मित्रता रखना, सपने देखने वाले, या कलात्मक क्षमता वाले, खुद से पहले दूसरों की जरूरतों पूरी करने वाले, अंदर की ओर ध्यान केंद्रित करने वाले, एकांतप्रिये, गैर प्रतिस्पर्धा वाले, गतिविधियों का आनंद लेने वाले, ग्रहणशील और इच्छा शक्ति वाले, शांति, प्रेम और दूसरों के साथ रिश्तों में स्नेह बनाने वाले, सहज, भावनात्मक रूप से संवेदनशील हो लोंगों का पता चलता  हैं। वे एक शांत वातावरण में रहेने वाले होते हैं। यह सत्य, न्याय और सभी में सुंदरता की तलाश करते हैं। कलाकारों, कवियों, लेखकों, संगीतकारों, दार्शनिकों, गंभीर छात्रों, आध्यात्मिक चाहने वालों, लोगों का ओरा नीले रंग का मिलता हैं।

6.बैंगनी रंग -: बैंगनी रंग वाले जादुई क्षमता , असीमित मानसिक क्षमता, असामान्य करिश्मे और आकर्षण वाले, अपने सपनों को बनाने के लिए असामान्य क्षमता वाले, या भौतिक संसार में प्रकट अपनी इच्छाओं, आकर्षण और खुशी दूसरों के लिए चाहने वाले, आसानी से चेतना के उच्च स्तरो के साथ जुड़ने वाले, दूसरों के सनकीपन की सहिष्णुता वाले, चंचल. संवेदनशील और दयालु होते हैं। बैंगनी रंग वाले लोग दूसरों में कोमलता और दया की सराहना करते हैं।  विशेष रूप से व्यावहारिक नहीं होते हैं। वे अपने स्वयं के निर्माण के लिए एक सपनों की दुनिया में जीना पसंद करते हैं। बैंगनी रंग मनोरंजन करने वाले, फिल्मी सितारों, स्वतंत्र विचारक, दूरदर्शी, क्रांतिकारी, व्यक्तियों का मिलता हैं। इनमे चुंबकीय शक्ति होती हैं। गहरे बैंगनी रंग वाला व्यक्ति आध्यात्मिकता की गहराईयों में पहुचता हैं।

7.सफेद रंग -: सफेद रंग वाले आध्यात्मिक, प्रेरित करने वाले, परमात्मा या आध्यात्मिक दुनिया को स्वीकार करने की क्षमता वाले, सब के साथ विलय होने वाले, सांसारिक मामलों या महत्वाकांक्षाओं से उदासीन होते हैं। इन्हें रोशनी, अलौकिक ज्ञान, परमात्मा से प्रेम, शांति, आनंद, अपनी ही मस्ती में मस्त रहना पसंद होता हैं। तीव्रता से ध्यान लगाने वाले, सही संत महात्मा, साधु, योगीजन, सामाजिक कार्यकर्ताओं का ओरा सफेद रंग का पाया जाता हैं।


 

           रेंकी ऊर्जा उपचार में रोगी की भूमिका क्या है?
सबसे पहले तो रोगी में ठीक होने की जबर्दस्त इच्छा होनी चाहिये। यदि आप वास्तव में रोगमुक्त होना चाहते हो तो चिकित्सक के लिए आपका उपचार करना सरल हो जाता है। कुछ लोगों को रोग होता ही इसीलिए है कि वे अपना जीवन त्यागने के लिए ईश्वर से नियमित विनती करते रहते हैं कि वे जीवन के झमेलों से बहुत आहत हो चुके होते हैं और जीना दुश्वार हो चला है। यदि आप ठीक होना ही नहीं चाहते तो ऊर्जा-उपचार में व्यर्थ पैसा और समय मत गंवाइये, शरीर व मन इस उपचार को ग्रहण नहीं करेगा। जब आप ठीक होना चाहते हो, जब आप अपने रोग के प्रत्यक्ष होना चाहते हो और ऊर्जा ग्रहण करने के लिए अपने शरीर के पट खोल देते हो, तभी चिकित्सक आपका रोग दूर कर पाता है। आपको अपने उपचार का साक्षी और सहयोगी बनना पड़ता है। इसका तात्पर्य यह है कि आप चिकित्सक की सलाह को आंख बन्द करके मानने की जगह अपने विवेक से हर बात का मूल्यांकन करते हैं और अपने उपचार में आप उसकी हर संभव मदद भी करते हैं। तभी आपका शरीर, मन और भावना उपचार को सहज ग्रहण करता है।  
        यदि आपने अपने रोग और उसके जनन में अपनी भागीदारी को स्वीकार कर लिया है तो समझ लीजिये कि रोग निवारण की दिशा में आप अपना पहला कदम बढ़ा चुकें हैं। रोग के उपचार के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप यह मान जायें कि इसके लिए आप कितने जिम्मेदार थे। जब  आप समझ जाते हैं कि आपकी बीमारी आपको क्या सन्देश देना चाहती है तो उससे मुक्त होना आसान हो जाता है। जब तक आप यह समझते रहते हैं कि यह रोग आपको ऐसे ही अकस्मात हो गया है तब तक इलाज मुश्किल होता है।

यह रेंकी ऊर्जा चक्र-तंत्र कैसे कार्य करता है?

मनुष्य का आभा-मण्डल उसके स्थूल शरीर में फैला और समाया रहता है तथा शरीर, मन और आत्मा को एकाकार करके रखता है। यह हमेशा गतिशील रहता है आभा-मण्डल के छिद्रों (चक्र) द्वारा स्पन्दन ऊर्जा का आवागमन निरन्तर चलता रहता है। उसके कर्म, विचार तथा भावना और साथ में वातावरण तथा जीवनशैली (व्यायाम भोजन, निद्रा आदि) के आधार पर शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। यदि जीवन प्रेम और आनन्द से परिपूर्ण है तो अपार ऊर्जा का प्रवाह होता है तथा जीवन निरामय हो जाता है। यह प्रेम की शक्ति है जो चक्रों को खोल देती है और ऊर्जा का बहाव उन्मुक्त होता है। तथा जब वह भय, अहंकार, नकारात्मकता या स्वार्थ के वश में  हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव थम जाता है। तब ऊर्जा प्रवाह में असन्तुलन और रुकावट के कारण शरीर तथा मन में रोग जन्म लेता है। इस रुकावट से शरीर के कुछ हिस्सों को ऊर्जा प्रवाह रुक जाता है। लेकिन क्योंकि शरीर में कई चक्र होते हैं इसलिए रुकावट होने के बाद भी तन और मन को कुछ ऊर्जा तो मिलती रहती है। लेकिन रुकावट की जगह शरीर में गड़बड़ हो जाती है। ऊर्जा के प्रवाह में लम्बे समय तक रुकावट होने से छोटा या बड़ा रोग जैसे कैंसर तक हो जाता है। इस स्थिति में उसे अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने और रेंकी ऊर्जा चिकित्सा लेने से रोंगों से मुक्ति मिल जाती हैं।


ओरा की सफाई
रेंकी हमारे शरीर मन आत्मा तीनों पर समान रूप से कार्य करती हैं। हमारे मन के दूषित होने से हमारा ओरा दूषित हो जाता हैं। और फिर रोग शरीर में पनपने लगते हैं। तो ओरा की सफाई कैसे करें यह जानना जरुरी हैं। और रेंकी देने से पहले भी ओरा की सफाई जरुर कर लेनी चाहिए जिससे अधिक लाभ की आशा होती हैं।
        ओरा की सफाई के लिए रोगी को कुर्सी पर सीधा बैठा ले या योगामेट, बेड, मेज पर सीधा लिटा ले। एक बर्तन में पानी रख ले, अब दोनों हथेंलियों को कप की तरह बनाएं और सिर के ऊपर 2-6 इंच की दूरी पर रखे और वहां से धीरे-धीरे संकल्प करते हुए कि मैं इस व्यक्ति (नाम) की नेगेटिव एनर्जी को अपने हाथों में ले रहा हूँ ओर ऐसा संकल्प करते हुए हाथों को सिर से पैर तक लाकर मुठी बंद कर ले, और विचार करें कि इस व्यक्ति की नेगेटिव ऊर्जा मेरी मुट्ठी में आ गई हैं। और अब उस मुट्ठी को पानी की ओर करके नेगेटिव एनर्जी को पानी में जाने का आदेश दे ओर मुठी झटक कर खोल दें। 3-7 या 21 बार तक ऐसा कर सकते हैं। रोगी के ओरा के अनुसार या नेगेटिव ऊर्जा के अनुसार, सफाई करने के बाद अपने हाथों को साफ दुसरे पानी से धो लें और जिस पानी में एनर्जी डाली हैं। उसे बहा दें और बर्तन को साफ पानी से धो कर रख दें। बैठे हुए व्यक्ति की सफाई भी इसी प्रकार करे। यदि किसी स्थान की मकान, दुकान की सफाई करनी हैं। तो यही क्रिया करो और फिर अपने संकलप के द्वारा मकान के चारों ओर हथेंली को घुमाते हुए नेगेटिव एनर्जी को हाथों में लेकर पानी में छोड़े। उसके बाद वहां पर कपूर जला कर दो लोंग उस में डाल दे जिससे वहां से नेगेटिव ऊर्जा समाप्त हो जाएगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार हो जाएगा

 ओरा कवच
ओरा की सफाई के बाद आप रोगी के चारों और ओरा कवच का निर्माण करें क्योंकि ओरा से आपने नेगेटिव ऊर्जा को हटाया हैं। अगर वहां उसका सुरक्षा कवच तैयार नहीं करेंगे तो फिर वहां नेगेटिव ऊर्जा आ जाएगी।
     इसके लिए मध्यमा और तर्जनी अंगुली से तीन बार आज्ञा चक्र को टच करें फिर दोनों अंगुलियों से क्लोक वाइज दाएं से बाएं घूमाते हुए (शरीर से 3 इंच दूरी पर) सर से पैरो तक 7 चक्कर अपने इष्ट मंत्र का जाप करते हुए या गुरु मंत्र का जाप करते हुए लगा कर फिर आज्ञा चक्र पर जाकर 3 बार टच करते हुए कवच को पूरा कर दे। ओर माथे पर हाथ रखकर संकल्प करे कि अब कोई भी नेगेटिव शक्ति इस कवच का भेदन नहीं कर सकती और सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दे। जिस कार्य के लिए  भी आप हीलिंग दे रहे हैं।

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