मिठास मे घुलता जहर
चीनी शक्कर हमारंे आहार का अभिन्न अंग बन चुकी है इसके बिना हम मिठास की कल्पना भी नही कर सकते है हम परोक्ष या अपरोक्ष रुप मंे चीनी का सेवन करते है। शुगर रोगी भी कहते है हम फीकी चाय पीतें है परन्तु वह कितनी चीनी खा रहे है स्वयं भी नही जानते है जैसे चाय, काॅफी नीबू पानी, कोल्डडिंक, आईसक्रीम, मिठाईया, चाकलेट, टाफी, बिस्कुट, केक, रस, ब्रैड, विभिन्न शर्बत व ठडाई आदि अनेंक रुपो मे हम प्रतिदिन चीनी का सेवन कर रहे है। त्यौहारो के नाम पर तो मिठाईयो के भरमार हो जाती है, अनेक रगांे व फलेवर की मिठाईया बजारो मे खूब मिलती है, ओर हम बड़े स्वाद से उनका सेवन करते है परन्तु इस मिठास के साथ कितना रसायन शरीर मे पहँुच रहा है, कोई नही सोचता। यह रसायन शरीर मे पहँुच कर कितने गम्भीर रोगो का निर्माण कर रहे है, इसके बारे मे न तो बनाने वाला ओर न ही खाने वाला सोचता हैं।
मीठा करने के लिए हम जिस चीनी का प्रयोग आज कर रहे है, उसका पहले यह स्वरुप न था लगभग 1940 तक अरसायनिक शक्कर बनती थी, जिसे भूरी शक्कर या खांडसारी कहा जाता था आज मिठाईयो में प्रयोग होने वाला मावा भी मिलावटी ज्यादा है, ओर ऊपर सें विभिन्न रगंांे का रसायन, इस प्रकार मिठाईयो के द्रारा विभिन्न रसायन शरीर मे जा रहे है
चीनी को बनाने मे सल्फर ड्राईआक्साइड, हाइड्रोजन पैराॅक्साईड, फार्मेल्डीहाईट, कैल्शियम आक्साईड, फास्फोरस पेंटाआक्साईड, फास्फोरिक एसिड विभिन्न पाॅलीमर जैसे रसायनो का प्रयोग होता है, जिनकी हल्की सी मात्रा भी शरीर मे पहँुचकर रक्त वाहनियो को सख्त कर देती है। जलन कोलाईटिस जलोदर डायबटीज डिप्रेसन हद्रय रोग आर्थराईटिस जोडो के दर्द विटामिन्स आदि की कमी शरीर मे हो जाती है
वनस्पति द्यी बनाते समय तेलो में कास्टिक सोडा वास किया जाता हैं एवं विभिन्न रसायनो के साथ तेलो को उच्चतापमान पर बार-बार गर्म किया जाता है जिससे पाॅलीमार का निमार्ण होता हैं ओर तेल अपचय बन जाता हैं। जिससें खटटी डकारे, गले मे जलन, एसिडिटी, अल्सर्स, अपेन्डिक्स, अस्थमा, हद्रय रोग, बीपी, आर्थराइटिस जैसे रोग पैदा हंै। इसी प्रकार क्रत्रिम फलेवर व रसायनिक रंगो का प्रयोग मिठाइयो मे किया जाता हैं। जिससे केंन्सर होने के खतरे बढ़ते जा रहे है, ओर नयी नयी बिमारियां पैदा हो रही है।
इस प्रकार विभिन्न मिठाईया हमारे जीवन मे चाहे-अनचाहे हजारो रोग पैदा कर रही है। इससे बचने के लिए बनावटी मिठास न लेकर प्राकृतिक मिठास का प्रयोग करे किसमिस, खजूर, विभिन्न फल व ड्राईफुट आदि सीधे व मिलाकर मिठाईया बनाकर भी प्रयोग कर सकते हैं, जो स्वाद के साथ पोष्टिक व स्वास्थ्य भी होंगी। फैसला आपको करना हंै कि अप्राक्रतिक मिठास से कष्टप्रद रोगी जीवन यापन करना है या प्राकृतिक मिठास से आन्नद, प्रसन्ता, अरोग्यता लाकर जीवन को पूर्ण बनाना है
जगतेश्वर
चीनी शक्कर हमारंे आहार का अभिन्न अंग बन चुकी है इसके बिना हम मिठास की कल्पना भी नही कर सकते है हम परोक्ष या अपरोक्ष रुप मंे चीनी का सेवन करते है। शुगर रोगी भी कहते है हम फीकी चाय पीतें है परन्तु वह कितनी चीनी खा रहे है स्वयं भी नही जानते है जैसे चाय, काॅफी नीबू पानी, कोल्डडिंक, आईसक्रीम, मिठाईया, चाकलेट, टाफी, बिस्कुट, केक, रस, ब्रैड, विभिन्न शर्बत व ठडाई आदि अनेंक रुपो मे हम प्रतिदिन चीनी का सेवन कर रहे है। त्यौहारो के नाम पर तो मिठाईयो के भरमार हो जाती है, अनेक रगांे व फलेवर की मिठाईया बजारो मे खूब मिलती है, ओर हम बड़े स्वाद से उनका सेवन करते है परन्तु इस मिठास के साथ कितना रसायन शरीर मे पहँुच रहा है, कोई नही सोचता। यह रसायन शरीर मे पहँुच कर कितने गम्भीर रोगो का निर्माण कर रहे है, इसके बारे मे न तो बनाने वाला ओर न ही खाने वाला सोचता हैं।
मीठा करने के लिए हम जिस चीनी का प्रयोग आज कर रहे है, उसका पहले यह स्वरुप न था लगभग 1940 तक अरसायनिक शक्कर बनती थी, जिसे भूरी शक्कर या खांडसारी कहा जाता था आज मिठाईयो में प्रयोग होने वाला मावा भी मिलावटी ज्यादा है, ओर ऊपर सें विभिन्न रगंांे का रसायन, इस प्रकार मिठाईयो के द्रारा विभिन्न रसायन शरीर मे जा रहे है
चीनी को बनाने मे सल्फर ड्राईआक्साइड, हाइड्रोजन पैराॅक्साईड, फार्मेल्डीहाईट, कैल्शियम आक्साईड, फास्फोरस पेंटाआक्साईड, फास्फोरिक एसिड विभिन्न पाॅलीमर जैसे रसायनो का प्रयोग होता है, जिनकी हल्की सी मात्रा भी शरीर मे पहँुचकर रक्त वाहनियो को सख्त कर देती है। जलन कोलाईटिस जलोदर डायबटीज डिप्रेसन हद्रय रोग आर्थराईटिस जोडो के दर्द विटामिन्स आदि की कमी शरीर मे हो जाती है
वनस्पति द्यी बनाते समय तेलो में कास्टिक सोडा वास किया जाता हैं एवं विभिन्न रसायनो के साथ तेलो को उच्चतापमान पर बार-बार गर्म किया जाता है जिससे पाॅलीमार का निमार्ण होता हैं ओर तेल अपचय बन जाता हैं। जिससें खटटी डकारे, गले मे जलन, एसिडिटी, अल्सर्स, अपेन्डिक्स, अस्थमा, हद्रय रोग, बीपी, आर्थराइटिस जैसे रोग पैदा हंै। इसी प्रकार क्रत्रिम फलेवर व रसायनिक रंगो का प्रयोग मिठाइयो मे किया जाता हैं। जिससे केंन्सर होने के खतरे बढ़ते जा रहे है, ओर नयी नयी बिमारियां पैदा हो रही है।
इस प्रकार विभिन्न मिठाईया हमारे जीवन मे चाहे-अनचाहे हजारो रोग पैदा कर रही है। इससे बचने के लिए बनावटी मिठास न लेकर प्राकृतिक मिठास का प्रयोग करे किसमिस, खजूर, विभिन्न फल व ड्राईफुट आदि सीधे व मिलाकर मिठाईया बनाकर भी प्रयोग कर सकते हैं, जो स्वाद के साथ पोष्टिक व स्वास्थ्य भी होंगी। फैसला आपको करना हंै कि अप्राक्रतिक मिठास से कष्टप्रद रोगी जीवन यापन करना है या प्राकृतिक मिठास से आन्नद, प्रसन्ता, अरोग्यता लाकर जीवन को पूर्ण बनाना है
जगतेश्वर
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