बुधवार, 31 जनवरी 2018

योग का परिचय

योग का परिचय


          योग का वर्णन कई ग्रंथों, उपनिषदों, पुराणों व गीता में किया गया है। सभी योगग्रंथों में योग के अलग-अलग रास्ते बताये गये हैं, परन्तु सभी योग का एक ही लक्ष्य है- शरीर और मन को स्वस्थ व शांत बनाना। योग साधना सभी व्यक्ति के लिए वैसे ही जरूरी है जैसे- भोजन, पानी व हवा। योग क्रिया केवल योगियों के लिए है, ऐसा सोचना अज्ञानता है। योगग्रंथों में योग के 8 अंगों का वर्णन किया गया है- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान और समाधि। इन यौगिक क्रियाओं में योगियों के लिए केवल ध्यान की अंतिम अवस्था और समाधि ही है। अन्य सभी क्रियाओं का अभ्यास कोई भी व्यक्ति कर सकता है, क्योंकि योग में आसन का अभ्यास शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए बनाया गया है। प्राणायाम से मन व मस्तिष्क स्थिर व स्वस्थ होता है। प्रत्याहार और धारणा में आंतरिक शक्तियों या दिव्य शक्ति की प्राप्ति के लिए मन को एकाग्र कर स्थिर किया जाता है। ध्यान के अभ्यास में सूक्ष्म शरीर व आंतरिक शक्तियों पर चिंतन व मनन करते हुए शक्ति को प्राप्त किया जाता है और उन शक्तियों का प्रयोग अच्छे कार्य के लिए किया जाता है। ध्यान में निरंतर लगे रहने से व्यक्ति को आलौकिक शक्ति का ज्ञान प्राप्त होता है। ध्यान का अभ्यास करते हुए जब व्यक्ति ऐसी अवस्था में पहुंच जाता है कि उसे बाहरी संसार का कोई ध्यान नहीं रह जाता, तो वह समाधि की अवस्था कहलाती है। ध्यान में लीन होकर समाधि धारण करने वाले व्यक्ति अंतत: मोक्ष को प्राप्त करते हैं। योग क्रिया का अभ्यास 2 कारणों के लिए किया जा सकता है- शारीरिक व मानसिक स्वस्थता तथा आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए।
         मानव जीवन स्थूल पदार्थों, संरचनात्मक अवयवों तथा सूक्ष्म अदृश्य तात्विक संचेतना का एक मिश्रण है। मानव शरीर की संरचनात्मक प्रणाली में सांस-प्रणाली, पाचन-प्रणाली, कर्णेद्रियों, नेत्र-इंद्रियों जैसी अनेक शारीरिक क्रियाएं होती है। संचेतन प्रणाली में मन और मस्तिष्क आदि क्रिया प्रणाली के अतिरिक्त कुछ आंतरिक, सूक्ष्म और अमूर्त रूप अभौतिक तत्व है। चेतन मन से जुड़ी वासनाओं, अनुभूतियों व भावों की आदिम प्रवृत्तियां होती है। यह एक अंत:संचरित तंत्र के जरिए बाहरी संरचनात्मक अंगों के साथ मिलकर समूचे भौतिक शरीर की मानसिक, वाचिक (बोलना) एवं शारीरिक क्रियाओं का संचालन करता है तथा इनका मानसिक स्थिति पर तीव्र नकारात्मक एवं दूषित प्रभाव पड़ता है। इस नकारात्मकता सोच को अपने मन में परिवर्तित करना ही योग एवं ध्यान का परम लक्ष्य है।
          भारतीय संस्कृति में पुराने समय से हीं ´योग साधना´ मनुष्य के जीवन का एक अंग रहा है। ´योग साधना´ की उत्पत्ति कब हुई इसकी वास्तविक जानकारी किसी के पास नहीं है। कुछ योग गुरुओं का कहना है कि इसकी उत्पत्ति लगभग 500 साल पहले हुआ था तथा कुछ योग विद्वानों के अनुसार योग का प्रारंभ लगभग 2500 वर्ष पहले हुआ था। परन्तु हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार योग साधना का अभ्यास युगों से चला आ रहा है। प्राचीन समय में ऋषि-मुनि योग साधना करते हुए अपने शरीर को स्वस्थ रखते थे और फिर योग साधना से मिलने वाली अपनी लम्बी आयु में धारणा, ध्यान व समाधि का अभ्यास करते हुए परमात्मा में लीन हो जाते थे अर्थात वे जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते थे। योग साधना का प्रारंभ संसार में मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बनाया गया है। पहले के समय में योग साधना का अभ्यास सभी लोग करते थे, जिससे वे शारीरिक स्वस्थता प्राप्त करते थे और लम्बी आयु तक जीते थे। यह योग साधना युगों से चली आ रही है।
          आज के परमाणु युग में जहां जनसंख्या से लेकर टेकनालॉजी का विकास तेजी से हो रहा है, वहीं आवश्यकता भी तेजी से बढ़ती जा रही है। विज्ञान द्वारा आज जिस तरह सभी आवश्यकतों की पूर्ति की जा रही है, वहीं मानव जीवन में उतनी ही तेजी से अनेक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही है। आज लोग शारीरिक व मानसिक दोनों ही रूप से अस्वस्थ है। लोगों में अनेक प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोग उत्पन्न हो रहे हैं। कुछ ऐसे भी रोग हैं जिन्हें ठीक करना विज्ञान की पहुंच से बाहर है। चिकित्सा विज्ञान जितनी खोज करता जा रहा है, उतने ही अधिक रोग उत्पन्न होते जा रहे हैं। आज के समय में जहां लोगों के पास किसी भी कार्य को करने के लिए समय नहीं होता, वहीं दूसरी ओर लोगों को उनकी मानसिक परेशानी दूर करने की कोई सही चिकित्सा नहीं मिल पा रही है। आज के समय में कुछ ऐसे भी रोग हैं, जिन्हें ठीक करना अत्यंत कठिन है। चिकित्सा विज्ञान ने ऐसे रोगों के लिए चिकित्सा तो बनाई है, परन्तु वे इतनी महंगी हैं कि सभी लोग उसके अनुसार पैसा खर्च नहीं कर सकते हैं। आमतौर पर शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए जाने वाली दवाईयों के प्रयोग से लोगों को पूर्ण स्वस्थता प्राप्त नहीं होती। चिकित्सा विज्ञान ने अब तक ऐसी कोई भी खोज नहीं की है, जो लोगों को मानसिक शांति व प्रसन्नता दे सके। चिकित्सा विज्ञान ने कुछ ऐसी दवाईयों को बनाया है, जिससे नींद आना या बेहोशी जैसी स्थिति पैदा कर व्यक्ति को कुछ क्षण के लिए शांत किया जा सकता है। परन्तु नींद से उठने के बाद वही समस्या, वही मानसिक परेशानी उत्पन्न हो जाती है। अत: मानव जीवन में उत्पन्न सभी शारीरिक व मानसिक रोगों को दूर करने का एक ही साधन है। इस साधन का उपयोग देवताओं से लेकर आम मानव भी करते आएं हैं। यह साधना है- ´योग´। योग ही ऐसी साधना है, जिससे लोग आज के वातावरण में अपने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को बनाएं रख सकते हैं। योग ही ऐसा साधन है, जो लोगों को रोगों से मुक्त करा सकता है। भारत में प्राचीन काल से ही इस योग साधना का प्रयोग चला आ रहा है। हम जानते हैं कि पहले के लोग आज के लोगों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली, लम्बे, चौड़े व स्वस्थ होते थे। उनकी आयु भी आज की अपेक्षा अधिक होती थी। इसका कारण यह है कि पहले लोगों को योग का ज्ञान था और जिनको इसका ज्ञान नहीं होता था, वे भी किसी न किसी रूप में योग की भिन्न क्रिया का अभ्यास कर लेते थे। उनकी चाहे या अनचाहे रूप से की जाने वाली योग क्रिया ही उन्हें स्वास्थ्य व लम्बी आयु प्रदान करती थी। योग से मिलने वाले लाभों का एक अन्य कारण भी है। हम जानते हैं कि विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होने का कारण वायु में मौजूद दूषित सूक्ष्म परमाणु कण तथा पेड़-पौधे का काटना होता है। वायु में प्रदूषण से शारीरिक स्वस्थता प्रभावित होती और पेड़-पौधों के सम्पर्क में न होने से मानसिक परेशानी बढ़ती है। लोगों के आस-पास प्राकृतिक वातावरण न होने के कारण लोगों को मानसिक शांति नहीं मिल पाती। चूंकि योग का अभ्यास सीधे व्यक्ति को प्रकृति के संपर्क में लाता है। जिससे लोगों को शारीरिक स्वस्थता के साथ मन व मस्तिष्क को शांति व एकाग्रता मिलती है। योग भारत में आदि काल से ही चला आ रहा है और लोग योग से मिलने वाले लाभों को समझने लगें। आज योग साधना का अभ्यास केवल भारत में ही नहीं, बल्कि चीन, जापान, रूस, अमेरिका जैसे देशों में भी हो रहा है। ऐसे देश जहां विज्ञान ने अनेक आश्चर्यजनक खोजें की हैं वहां के लोग भी योग चिकित्सा को मानते हैं। भारत तथा अन्य कई देशों में चिकित्सक अपनी चिकित्सा के साथ योग क्रिया का अभ्यास करने की सलाह देते हैं, जिससे लोगों में स्वास्थ्य दर बढ़ने लगी है। योग सभी व्यक्तियों के लिए लाभकारी है जैसे बूढे़, बच्चे, जवान, स्त्री, रोगी, निरोगी आदि।
          साधारण भाषा में ´योग´ जीवन को सुख व शांति के साथ जीने का सबसे आसान रास्ता है। योग के अभाव में शरीर और मन अनेक प्रकार के रोगों का केन्द्र बन जाता है। योग के बिना व्यक्ति संसारिक व आध्यात्मिक सुख को प्राप्त नहीं कर पाता। अत: योग को अपनाकर व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार फल को प्राप्त कर सकता है। जीवन में मिलने वाली कठिनाईयों को दूर कर सकता है। योग साधना को करने से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रोगों को दूर कर स्वस्थ व प्रसन्न रह सकता है। जिसमें जीवन की उच्च स्थिति अर्थात परमात्मा को जानने की लालसा हो वह योग के मार्ग पर बढ़ते हुए ध्यान और समाधि के द्वारा उस स्थान को भी प्राप्त कर सकता है।
भागवत गीता´ में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं-
तपस्विम्य, अधिक: योगी:, ज्ञामिम्य: अपि, मत अधिक:
कमिम्य: च, अधिक: योगी तस्मात योगी भव अर्जुन
भगवान श्रीकृष्ण ने योग को योगी, तपस्वी, ज्ञान और कर्मों से अधिक श्रेष्ठ माना है। भगवान श्रीकृष्ण महाभारत में ´गीता´ का पाठ सुनाते हुए अर्जुन को कहते हैं- ´´हे अर्जुन! योगी योग रूढ़ होकर मेरी अर्न्तात्मा में प्रवेश कर जाता है अत: तुम भी योगी बन जाओ।

Kalpant Healing Center
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