गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

कल्पान्त ध्यान साधना

कल्पान्त ध्यान साधना
ध्यान क्या है। :- ध्यान एक ऐसी कला है जो पूर्णताः विज्ञानिक है। इसमे विस्वास नहीं करना है, न ही विस्वास करने की जरुरत है। उसे केवल ओर केवल करने की जरूरत है। बस तुम उसे करों ओर उसे केवल करके ही जाना जा सकता है। एक ऐसा परम आनंद जो आपको आनंद की सीमाओ से पार ले जाये, एक ऐसी शान्ति जो अन्नत गहरी हो, जहाँ सब कुछ शान्त हो जाता हो, जहाँ फिर कोई भी चाहत बाकी नहीं रहती, ओर जहाँ पहुँचकर फिर सभी दौड़ पूरी हो जाती हैं। वह अवस्था ध्यान की अवस्था हैं।ध्यान हमें उस परम आनंद तक ले जाता है जिसकी हम केवल कल्पना करते है। ओर जब उस आनंद को हम प्रकट कर लेते है तो उसकी व्याख्या शब्दों मे नही कर सकते, इसलिये ध्यान का अनुभव पढ़कर नही केवल करके ही पाया जा सकता है।ध्यान को करने से तुम्हारे भीतर अदभुत प्रेम सौन्दर्य फुटने लगता है। तुम नाचने उठोगें, गाने लगोगें, तुम एक ऐसे प्रेमी बन जाओगे कि सारी सृष्टि ही प्रेममय दिखाई देने लगेगी, ओर यह सब करके ही प्रकट होगा। बस यही ध्यान है।

आज से कल्पान्त साधना की श्रखला शुरू हो रही है। इसको शुरू करने से पहले यह समझ ले कि यह साधना कोई क्रिया नही है। ओर मे आपको बहुत सहज तरीकों से ध्यान की उन गहराइयो मे ले जाऊगा जिसकी केवल आपने अब तक कल्पना की है। इसके लिए आपको आपनी बुद्वि का प्रयोग बन्द करना है ओर जो मे कहूँ उसको करना शुरू करना है। ओर आपको जो भी अनुभव हो उनको मेरे पर्सनल नम्बर पर ही बताएं, ग्रुप मे नहीं । क्योंकि सबको अपने कर्मो, संस्कारों, मान्यताओं, के अधार के कारण अलग अलग अनुभव होगे। कुछ लोग बहुत तेजी से अनुभव करेंगे कुछ लम्बे समय तक करने के बाद अनुभव करेंगे। ओर आपके अनुभव ही आपका आगे का रास्ता बनायेंगे। अर्थात सबका रास्ता एक तो होगा परन्तु कोई पहले कोई बाद मे पायेगा, इसलिये जो तेजी से आगे बढ़ेगे उन्हें फिर आगे का रास्ता पर्सनल ही दे दूगा।
इसलिये सभी एक बार फिर समझ ले कि ग्रुप मे कोई भी मैसेज न करे , सभी सवाल व अनुभव पर्सनल नम्बर पर ही करें । ओर एक बात आप इस ग्रुप मे जुड़े है तो मेरे बताये रास्ते पर चले जरूर ओर जो न चलना चाहे वो कभी भी ग्रुप छोड़ सकता है।


प्रथम क्रिया- आपको सबसे पहले एक जगह व समय तय करना है जहाँ आप बिना Disturbing के यह सब कर सके। अब आपको एकही जगह पर खडे होकर जोगिंग शुरू करनी है। 5-15 मिनट तक आप दौड़ सकते है। जिसकी जितनी क्षमता हो उतना करें , जब दौड़ना बस की न रहे तो आप पीठ के बल लेट जाइए और दोनों भुजाओं को शरीर के बगल में रखिए, दोनों हाथ शरीर से 6 इंच दूरी पर हो , तथा हथेलियां उपर की ओर खुली रखें। पैरों को एक दूसरे से थोड़ा दूर कर लें और आखों को बंद कर लीजिए। इसके बाद शरीर को ढीला छोड़ दीजिए। इस अवस्था में ये ध्यान रखिए कि आपको कुछ करना नहीं है ओर कुछ भी हो जाये आँखों को बन्द रखना है ओर कुछ नही करना करना है
आते हुए विचारों को रोकना नहीं है, ओर आपको किसी विचार पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं करनी है , जो महसूस हो उसे करते रहे पर आपनी बुद्बि का प्रयोग बिलकुल न करें न कुछ करने की कोशिश करें न ही ना करने की , आपको बस आँख बन्द करके लेटे रहना है अगर खुद कुछ हो तो उसे केवल महसूस करना है नहीं तो कुछ नही। 15-30 मिनिट आपको बस ऐसे ही लेटे रहना है। कुछ नही करना है। कभी भी जब समय मिले तब करें, कोई समय न हो तो केवल रात को सोने से पहले करे, जब क्रिया को बन्द करना हो चेतना मे वापस आना हो तो पहले दो गहरी श्वास भरे , हाथ पैर की अंगूलीयो मे हलचल करे, फिर हथेलीयों को रगड़ कर गर्म करें, आँखों पर लगाए, चेहरे पर लगाए, ओर धीरे धीरे आँखें खोलते हुये उठकर बैठ जाये। कोई नियम नही है। कोई बन्धन नही है। पूर्ण स्वतंत्र होकर करें, क्या होगा या कुछ होगा या नही यह न सोचे, बस करें, ओर जिसको कोई अनुभव हो वो पर्सनल मे मैसेज करें, नही तो जब तक करते रहे जब तक आगे की क्रिया न डालू,
अगली क्रिया 11-21 दिन के अन्दर मिलेगी तब तक इसको करते रहै। अगर किसी को कुछ समझ न आया हो , कोई शंका हो, तो पर्सनल फोन करके पूछ ले, या मेरे पर्सनल नम्बर पर whatsapp  मैसेज करके पूछ ले,
ऊँ परमात्मा आपको सफलता दे। ओर जो भी सोचकर जो क्रिया को करै वो उसे प्राप्त हो , इसी शुभ आशीष के साथ स्वामी जगतेश्वर आनंद जी

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