शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

नवरात्रों में उपवास का महत्व

नवरात्रों में उपवास का महत्व
            भारत वर्ष मे सभी धर्मो मे उपवास को महत्वपूर्ण माना गया हैं। हिन्दु धर्म में वर्ष मे दो बार नवरात्र व महीने मे एकादशी अमावस्या व पूर्णिमा व्रत रखे जाते हैं, इसके अलावा कुछ लोग साप्ताहिक व्रत भी रखते हैं। उपवास दो शब्दो से मिलकर बना हैं, उप-ऊपर या समीप एवं वास-निवास करना अर्थात आत्म स्थित स्वं में स्थित होना उपवास हैं। उपवास के समय जीवनी शक्ति जो परमात्मा का अंश हैं बिना किसी रूकावट के सुचारू रूप से कार्य करती हैं तथा शरीर व मन दोनो की शुधि होती हैं।
        प्राचिन समय मे उपवास स्वास्थ्य प्राप्ति के लिये बनाये गये थें। फिर हमारें ऋषि मुनियों ने इन्हें धर्म के साथ जोंड़ दिया जिससे आस्था के साथ लोगो को स्वास्थ्य लाभ मिलता रहें, परन्तु आज के समय मे मनुष्य ने उपवास को स्वार्थ सिधि का साधन मान लिया हैं। साथ ही यह केवल परम्परा व रिवाज बन कर रहे गये हैं।
         क्योंकि आज उपवास के नाम पर कुटू आटा, आलू की पकोड़ी, इत्यादि गरिष्ट पदार्थ ओर अब तो फास्ट फूड भी सेवन किया जाता हैं, जिससे स्वास्थ्य खराब हो जाता हैं। स्वाद के लिये विभिन्न प्रकार के व्यंजन प्रयोग करे जाते हैं। परन्तु यदि हम स्वास्थ्य की दृष्टि से नवरात्रों का पालन करें तो दैवीय शक्ति तो प्राप्त होगी ही ओर शरीर का शोधन भी हो जायेगा
        हमारें ऋषि मुनियों ने उपवास को नवरात्रो के साथ इसी लिये जोंड़ा जिससे छः महीने तक भोजन करने से हमारे शरीर मे जो दूषित पदार्थ इक्ठठे होते हैं वह नौ दिन के उपवास से शरीर के बहार निकल जायें ओर शरीर उस विष से उत्पन्न होने वाले रोगो से बच जाये।
       ओर इन दिनो होने वाले हवन यज्ञ से घर का वातावरण भी शुद्ध हो जाता हैं तथा उपवास करने से शरीर के पाचन संस्थान को भी विश्राम मिल जाता हैं। जिससे पाचन अंगों को शक्ति प्राप्त होती हैं व उदर सबंधी सभी रोग ठीक हो जाते हैं ओर सात्विक विचारो की वृद्वि होती हैं जिससे हम अन्नत आंनद प्राप्त करते हैं व उस दैवीय शक्ति को प्राप्त कर अपनी इच्छाओ को भी पूरा कर लेते हैं।
       उपवास का सही तरीका केवल पानी का सेवन करना हैं यदि हमें उदर रोग हैं तो गर्म पानी का प्रयोग करें अगर कमजोरी, एनिमिया, शुगर, या बृद्व अवस्था हो तो या तो उपवास करे ही नही या किसी डाक्टर की देखरेख मे फलो का रस, फल, डाई फुट, आदि के उचित प्रयोग के द्वारा करे जिससे स्वास्थ्य भी प्राप्त हो एवं आंनद भी मिले।
       साथ में उचित विश्राम व शिथिलीकरण के साथ चिदआकाश धारणा के द्वारा दैवी की आराधना कर उसे प्रकट कर अध्यात्मिक लाभ प्राप्त करे एवं सत्य का अनुभव कर आनंद को प्राप्त करें ओर शारीरिक, मानसिक, आत्मिक शान्ति को प्राप्त हो।

                                                                    (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी Mob.9958502499)

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