मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016

प्राकर्ति ही उपचारक है

प्राकर्ति ही उपचारक है। 

प्रत्येक मनुष्य के अन्दर एक अद्भुत शक्ति होती है। जिससे वह जीवन यापन करता है। ओर जब तक वो शक्ति काम करती है, हम स्वास्थ्य रहेते है। इस शक्ति को ईस्वर, परमात्मा, आत्मा, आदि नमो से जाना जाता है। वोही हमारे शरीर को चलती है, रोगी करती है, ओर फिर स्वाश्थ्य प्रदान करती है।
जब हमारी गलत आदतों की वजह से व अप्राकृतिक आहार के कारण शरीर में विजातीय तत्व जमा हो जाते है, तो प्राकृति स्वयं उनको निकलकर उपचार करती है। अगर हम प्राकृति के कार्यो में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं डाले तो वह हमारे शरीर को स्वस्थ कर देती है।



कोई भी दवा रोगी को ठीक नहीं करती है। ठीक तो प्राकृति को ही करना होता है। जब हड्डी टूट जाती है, तो एक जगह रोकने से फिर से जुड जाती है। ऐसे ही जब पेट खराब होता है, तो दस्त या उल्टी लगती है, ओर पेट सही हो जाता है। इस प्रकार सभी रोंगों का उपचार प्राकृति खुद करती है। हमको केवल प्राकृति के उपचार के तरीके को समझकर उसका सहयोग करना मात्र है, ओर जेसे ही हम उसके उपचार में सहयोग करते है हम निरोगी हो जाते है। इस प्रकार जिसको हम रोंग कहेते है वो प्राकृति का उपचार है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें