सोमवार, 19 सितंबर 2016

बच्चों का सही पालन-पोषण

बच्चों का सही पालन-पोषण

बच्चे के जन्म लेने से बच्चे के तीन महीने तक होने तक- बच्चे के जन्म लेने के बाद जितनी जल्दी हो सके बच्चे को मां का दूध पिलाना चाहिए। बच्चे को मां का पहला दूध (कोलोस्ट्रम) पीने से जीवन जीने की शक्ति मिलती है और मां के दूध में पाये जाने वाले तत्त्व पौष्टिकता देने के साथ-साथ बच्चे को कई रोगों और रोग को फैलने से बचाते हैं। बच्चे को पहले दिन से ही दो-तीन घंटे के बाद ही दूध पिला देना चाहिए। जब बच्चा रोने लगे तब उसको मां का दूध पिलाना सबसे अच्छा आहार है। तीन महीने तक के बच्चे को जब तक वह मां का दूध पीता है, उस समय बच्चे को पानी पीने की जरूरत नहीं पड़ती है। मां का दूध ही बच्चे के पूरे भोजन का काम करता है। फिर भी उस समय पानी पिलाने में कोई नुकसान नहीं है। शुरुआत में दो-तीन महीने बच्चा दूध पीकर अगर उल्टी कर देता है तो इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। जब तक बच्चा मां का दूध पीता है तब तक दूध को हजम करने के लिए बच्चे को किसी घुट्टी या प्राइपवाटर की जरूरत नहीं है। जब तक बच्चा मां का दूध पीए, तब तक मां को चाहिए कि वह खाना खाने के बाद पानी न पीए, बल्कि बच्चे को दूध पिलाने से 15 मिनट पहले थोड़ा सा पानी पी लें, इसके बाद ही बच्चे को स्तनपान (अपना दूध पिलायें) करायें। ऐसा करने से बच्चे को उल्टी-दस्त नहीं होते हैं। मां को सदा खुश होकर और हर दो से तीन घंटे के अंतर पर बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। गुस्से या दिमागी परेशानी में बच्चे को स्तनपान नहीं कराना चाहिए। नहाने के बाद या सिर धोने के तुरंत बाद भी दूध नहीं पिलाना चाहिए। दूध पिलाने के बाद बच्चे को अपने कंधे से लगाकर गोद में लें और धीरे-धीरे उसकी पीठ पर थपकी दें। इससे बच्चे के पेट की हवा डकार के रूप में बाहर निकल जायेगी और बच्चा अपने आपको हल्का महसूस करेगा और अपच (भोजन न पचना) से भी बचा रहेगा। बच्चे को नौवें महीने तक मां अपना दूध पिला सकती है। कमजोर बच्चों को मां का दूध एक साल तक पिलाया जा सकता है।


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